सांकेतिक तस्वीर
Uttarakhand: आज के जमाने में युवा जहां बड़े शहरों में स्थित मल्टीनेशन कंपनियों और मोटी सैलरी के पीछे भाग रहे हैं, वहीं उत्तराखंड के चमोली जिले में रोजगार की समस्या से जूझ रहे और बड़ी कंपनियों में मैकेनिकल इंजीनियर जैसे पदों पर कार्य कर रहे युवाओं ने इस चुनौती को स्वीकार करते हुए घर पर ही रहकर कुछ करने की ठानी है. इसके लिए चमोली के युवा नौकरी छोड़ बागवानी को अपने रोजगार का साधन बना रहे हैं. स्वरोजगार की उनकी इस पहल से क्षेत्र के अन्य युवा भी प्रभावित हो रहे हैं.
हो रही है अच्छी आमदनी
बागवानी कर स्वरोजगार अपनाने वाले युवाओं को इससे अच्छी आमदनी भी हो रही है. वहीं इस व्यवसाय से जुड़े कुछ लोग आगे आते हुए युवाओं को बागवानी का प्रशिक्षण भी दे रहे हैं. बड़े शहरों में काम करने वाले इंजीनियर से लेकर मैनेजर तक लाखों का पैकेज छोड़ अपने गांव लौट आए है और बागवानी से अच्छी खासी आमदनी कर रहे हैं.
इंजीनियर की नौकरी छोड़ कर रहे खेती
ऐसे ही एक युवा हैं महेंद्र बिष्ट जो अपनी मैकेनिकल इंजीनियर की नौकरी छोड़ गांव में बागवानी कर रहे हैं. महेंद्र की सफलता देख कई संस्थानों ने उन्हें सम्मानित भी किया है. अब क्षेत्र के बेरोजगार युवा भी उनकी उन्नति से प्रभावित होकर बागवानी से स्वरोजगार करने की सोच रहे हैं.
आज से 17 साल पहले बेहतर जीवन की चाह में महेंद्र मैकेनिकल इंजीनियरिंग की पढ़ाई पूरी करने के बाद दिल्ली चले गए थे. जहां एक कंपनी में प्रोडक्शन मैनेजर के पद पर 10 लाख रुपये से ज्यादा के पैकेज पर कार्य कर रहे थे.
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सब्जी की खेती और दुग्ध उत्पादन
वह 2019 का साल था जब सितंबर के महीने में महेंद्र अपने गांव लौट आए और गांव वालों की बंजर पड़ी कुछ जमीन को 20 सालों के लिए लीज पर लेते हुए सब्जियों की खेती शुरु कर दी इसके साथ ही उन्होंने कुछ पशुओं को रखते हुए दूध उत्पादन भी शुरु कर दिया. आज महेंद्र अपने गांव में अपने लोगों के बीच रहकर ही 60 हजार रुपये महीने कमा रहे हैं. इंडियन सोसाइटी ऑफ हॉर्टिकल्चर रिसर्च एंड डेवलपमेंट इंस्टीट्यूट में आयोजित कार्यक्रम में उन्हें ‘देवभूमि बागवानी’ पुरस्कार प्रदान किया गया.
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