भारत एक्सप्रेस के देहरादून में हुए कॉन्क्लेव में अखिल भारतीय वैष्णव अखाड़ा परिषद के महासचिव हठयोगी जी भी शामिल हुए और उत्तराखंड के रजत जयंती वर्ष पर अपने विचार रखे.
क्या यह सनातन का स्वर्णिम काल है, इसके जवाब में हठयोगी जी ने कहा, ‘देखिए आप सनातन के स्वर्णिम काल की बात कर रहे हैं, मैं इस बात से थोड़ा कम सहमत हूं. हम एकतरफा अगर इस तरह की बात कह देते हैं कि हम उत्कर्ष के ऊपर हैं और मेरे हिसाब से ये बात मिथ्या है. हम सनातन को जिस तरह से मानते हैं, मेरे विचारों में हमारे यहां धर्मशास्त्रों में धर्म के 10 लक्षण बताए बताए हैं. बहुत सारे महात्मा लोग कहते हैं कि सनातन की उत्पत्ति सूर्य से हुई है और जब तक सूर्य रहेगा सनातन रहेगा. तो कभी-कभी मैं उनको बोलता हूं कि आप जनता को गुमराह न करें, आप सरासर जनता के सामने झूठ बोल रहे हैं.’
सनातन में चेतना आ गई
उन्होंने कहा, अगर सनातन की उत्पत्ति सूर्य से और जब तक सूर्य चांद रहेगा तब तक सनातन रहेगा तो अफगानिस्तान, पाकिस्तान, ईरान और इराक में सनातन कहां गया. चलो इन देशों की बात छोड़ दो, भारत का संविधान, भारत की सेना, भारत का लोकतंत्र, भारत के नेता, कश्मीर में सना है कहां है? तो सनातन अगर इतना उत्कर्ष पर रहता तो फिर दुनिया में राज करता. हां ये कह सकते हैं कि जिस तरह ज्ञान, भक्ति और वैराग्य की कथा भागवत में सुनाते हैं तो जान और वैराग्य मूर्छित हुए पड़े थे, उसी तरह सनातन भी थोड़ा मूर्छित था तो अब उसमें थोड़ी-थोड़ी चेतना आने लगी है, ये मैं मान सकता हूं.’
जियो और जीने दो
हठयोगी जी ने कहा, ‘चेतना आ रही है और अगर ये चेतना बरकरार रहे, धीरे-धीरे हम इसके लिए प्रयत्न करें. सनातन का हम गलत अर्थ लगाते हैं. जितने भी धर्म की बात हम करते हैं, कोई भी धर्म नहीं है, सब पंथ हैं. हम एक चीज को श्रेष्ठ मानते हैं, बाकी को कहते हैं कि वो बेकार है.’
वे कहते हैं, ‘समाजशास्त्र में क्या कहा जाता है जियो और जीने दो, सनातन वही है, जियो और जीने दो, सनातन एक जीवन पद्धति है. हम सनातन पद्धति से जिएंगे, सनातन का आचार विचार करेंगे, सनातन से रहेंगे तो हम समाज में सबको एक समान दृष्टि से देखेंगे कोई ना बुरा होगा ना भला तभी हमारे यहां धर्म की जय होगी, अधर्म का नाश होगा, प्राणियों में सदभावना हो, विश्व का कल्याण हो, ये कौन कह सकता है, सनातन कह सकता बाकी कोई नहीं कह सकता तो सनातन की ये विशेषता है.’
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-भारत एक्सप्रेस
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