बांग्लादेश (Bangladesh) को आजादी दिलाने में भारत (India) की अहम भूमिका रही है. 1971 में पाकिस्तान (Pakistan) के अत्याचार से जब पूर्वी पाकिस्तान परेशान था तब तारणहार के तौर पर भारत उसका अहम साथी बना. भारत ने मुक्तिवाहिनी की मदद की इसके बाद पाकिस्तान ने भारत पर हमला किया और युद्ध में पाकिस्तान को धूल चटा दी.
पाकिस्तान के जनरल नियाजी को सरेंडर करना पड़ा था और एक नए देश बांग्लादेश का निर्माण हुआ है. हालांकि अपने निर्माण के बाद से यह देश लगातार राजनीतिक संकट के दौर से गुजरता रहा है. इस दौरान यहां कई बार तख्तापलट भी हुए. पाकिस्तान के चंगुल से बांग्लादेश को बाहर निकालने में भारत की अहम भूमिका रही है. यही वजह है कि बांग्लादेश भारत का एहसानमंद है.
1965 की जंग के बाद पाकिस्तान कुछ साल तक शांत रहा था. 1970 के दशक में पूर्वी पाकिस्तान (अब बांग्लादेश) में हालात तेजी से बदलने लगे थे. वहां के लोग पाकिस्तान से खुद को अलग करने की मांग करने लगे. हालात इतने बिगड़ गए कि पाकिस्तान ने अपनी सेना वहां उतार दी. पाकिस्तानी सेना ने पूर्वी पाकिस्तान में लोगों पर जमकर अत्याचार किए.
इन स्थितियों को देखते हुए भारत ने 3 दिसंबर 1971 को पाकिस्तान की सेना पर हवाई हमला किया. उस समय पाकिस्तानी सेना के खिलाफ मुक्ति वाहिनी ने मोर्चा संभाला था. बांग्लादेश मुक्ति युद्ध के दौरान बांग्लादेशी सेना, अर्धसैनिक और नागरिकों से मिलकर बना यह गुरिल्ला प्रतिरोध आंदोलन था.
इस युद्ध में भारत के कूदने के बाद पाकिस्तान की वायुसेना ने भारत पर हमला कर दिया और दोनों देशों के बीच युद्ध शुरू हो गया. युद्ध के आखिर में पाकिस्तानी जनरल नियाजी को सरेंडर करना पड़ा और पाकिस्तान दो टुकड़ों में बंट गया.
शेख मुजीबुर रहमान (Sheikh Mujibur Rahman) और अवामी लीग ने 26 मार्च 1971 को स्वतंत्रता की घोषणा कर दी. पूर्वी पाकिस्तान को बांग्लादेश नाम दिया गया और भारत ने सबसे पहले इसे अलग राष्ट्र के तौर पर मान्यता दे दी और 1972 में शेख मुजीबुर रहमान देश के पहले प्रधानमंत्री बने.
शेख मुजीबुर रहमान देश के पहले प्रधानमंत्री बने और बाद में जनवरी 1975 में एकदलीय प्रणाली लागू करते हुए राष्ट्रपति पद संभाला था. हालांकि बांग्लादेश की पहली सरकार अधिक दिनों तक सत्ता में बरकरार नहीं रह सकी. 15 अगस्त 1975 को देश के पहले प्रधानमंत्री और शेख हसीना के पिता शेख मुजीबुर रहमान का सेना ने तख्तापलट कर दिया था.
इस दौरान बंगबंधु के नाम से मशहूर मुजीबुर रहमान और उनके पूरे परिवार की हत्या कर दी गई. इस तख्तापलट के दौरान सिर्फ उनकी दो उनकी बेटियां शेख हसीना (पूर्व प्रधानमंत्री, जो 5 अगस्त 2024 की शाम को भारत पहुंचीं) और शेख रेहाना (जो हसीना के साथ ही भारत आईं) ही बच सकी थीं.
यह तख्तापलट सेना के अधिकारियों ने खोंडेकर मुश्ताक अहमद (Khondaker Mostaq Ahmad) के नेतृत्व में किया था. इस तख्तापलट ने सैन्य शासन की एक लंबी अवधि की शुरुआत की.
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मुजीबुर रहमान की हत्या और तख्तापलट के बाद भी देश के राजनीतिक संकट का दौर खत्म नहीं हुआ था. मुश्ताक अहमद का शासन भी बस कुछ महीनों का मेहमान था. उस साल 2 और तख्तापलट किए गए. 3 नवंबर 1975 को खांडेकर मुश्ताक अहमद को भी तख्तापलट के जरिये हटा दिया गया.
ब्रिगेडियर खालिद मुशर्रफ, जिन्हें मुजीबुर रहमान का समर्थक माना जाता था, ने इस तख्तापलट को अंजाम दिया था और खुद को नया सेना प्रमुख नियुक्त कर लिया था. मुशर्रफ ने तब जियाउर रहमान (Ziaur Rahman) को नजरबंद कर दिया, क्योंकि उनका मानना था कि मुजीबुर रहमान की हत्या के पीछे जियाउर रहमान का हाथ था.
और फिर 7 नवंबर 1975 को तीसरा तख्तापलट हुआ. यह वामपंथी सैन्यकर्मियों द्वारा जातीय समाजतांत्रिक दल के वामपंथी राजनेताओं के साथ मिलकर किया गया था. इस दौरान ब्रिगेडियर खालिद मुशर्रफ की हत्या कर दी गई और जियाउर रहमान देश के राष्ट्रपति बन गए.
5 अगस्त 2024 को शेख हसीना (Sheikh Hasina) सरकार का तख्तापलट हो गया. सरकारी नौकरियों में आरक्षण को लेकर भड़की हिंसा के बीच उन्हें न सिर्फ प्रधानमंत्री पद से इस्तीफा देना पड़ा बल्कि देश छोड़कर भारत में शरण लेनी पड़ी. इस कदम के साथ बांग्लोदश में उनके 15 साल के शासन का अंत हो गया.
5 अगस्त को बांग्लादेश के सेना प्रमुख जनरल वकार-उज-जमान ने टीवी पर दिए एक बयान में कहा था कि देश में एक अंतरिम सरकार कार्यभार संभालेगी. उन्होंने कहा, ‘हम सभी हत्याओं की जांच करेंगे और जिम्मेदार लोगों को दंडित करेंगे. सेना और पुलिस दोनों को गोलीबारी में शामिल न होने के लिए कहा गया है.’
-भारत एक्सप्रेस
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