Bharat Express

जब तक सिनेमा रहेगा , गोदार प्रासंगिक बने रहेंगे

जब तक सिनेमा रहेगा , गोदार प्रासंगिक बने रहेंगे

जब तक सिनेमा रहेगा , गोदार प्रासंगिक बने रहेंगे

लेखक-अजित राय

विश्व सिनेमा के इतिहास में सबसे ज्यादा चर्चित और महत्वपूर्ण फिल्मकारों में शुमार ज्यां लुक गोदार  (3 दिसंबर 1930- 13 सितंबर 2022) ने 91 साल की उम्र में बीमारियों से तंग आकर स्विट्जरलैंड में इच्छा मृत्यु का वरण करते हुए मंगलवार 13 सितंबर को आत्महत्या कर ली. दुनिया के यदि किसी एक फिल्मकार की कही गई बातों को सबसे ज्यादा दोहराया गया, वह गोदार ही थे. उनका सुप्रसिद्ध कथन हर पीढ़ी के फिल्मकारों को प्रेरित करता रहा है कि ‘ फिल्म का आरंभ, मध्य और अंत होना चाहिए , पर जरूरी नहीं कि यह इसी क्रम में हो, ‘ या ‘ सिनेमा न तो सत्य है न गल्प, वरन यह कुछ कुछ इन दोनों के बीच की चीज है.’ या फिर ‘ यदि आप फिल्म बनाना चाहते हैं तो आपके पास एक लड़की और एक बंदूक होनी चाहिए। ‘ उन्होंने न सिर्फ फिल्म संपादन में ‘ जंप कट ‘ को प्रमुखता दी, बल्कि पारंपरिक पटकथाओं ( आरंभ, मध्य और अंत) को बदल दिया. अपनी हर फिल्म में उन्होंने खुद को ही कला में बदल दिया. उन्हें बेशुमार व्यावसायिक सफलता मिली. हालांकि उनकी बाद की फिल्मों को समझने के लिए दर्शको को काफी मशक्कत करनी पड़ी.
गोदार फ्रेंच न्यू वेव सिनेमा के प्रमुख प्रवर्तक रहे हैं. अपनी पहली फिल्म ‘ ब्रेदलेस ‘(1959) से लेकर आखिरी फिल्म ‘ इमेज बुक ‘(2018) तक इस जीनीयस फिल्मकार ने दुनिया भर में न सिर्फ तहलका मचाए रखा, वल्कि सिनेमा के मायने बदल दिए. उन्हें बेहिसाब शोहरत और इज्जत मिली.लोग फिल्में बनाते हैं, गोदार ने सिनेमा बनाया. उनकी आखिरी तीन फिल्में लैंग्वेज ट्रायलॉजी कही जाती है जिसमें उन्होंने सिनेमा की अपनी सैद्धांतिकी पेश करते हुए कहा था कि सिनेमा में भाषा या संवाद के लिए कोई जगह नहीं होनी चाहिए क्योंकि यह दृश्य माध्यम है. ये फिल्में है – ‘ फिल्म सोशलिज्म ‘(2010), गुडबाय टू लैंग्वेज ‘(2014) और ‘ इमेज बुक ‘(2018).
71वें कान फिल्म समारोह (2018) में” इमेज बुक” के लिए ज्याँ लुक गोदार को ” स्पेशल पॉम डि ओर पुरस्कार से सम्मानित किया गया था. उनके सम्मान में उनकी फिल्म” पियरो द मैड मैन ‘ के चुंबन दृश्य को समारोह का मुख्य पोस्टर बनाया गया था. इसके दो साल पहले भी कान फिल्म समारोह (2016) का पोस्टर उनकी फिल्म ” कंटेंप्ट” से डिजाइन किया गया था.
गोदार के युवा दिनों पर बनी माइकेल हाजाविसियस की फिल्म ” द रिडाउटेबल “(2017) को 70 वें कान फिल्म समारोह के प्रतियोगिता खंड में दिखाया गया था.
इमेज बुक” कला और सिनेमा की बेमिसाल जुगलबंदी है जिसका दूसरा उदाहरण विश्व सिनेमा के इतिहास मे नही मिलता . इसमें न कोई कहानी है न संवाद, न कोई अभिनेता । यह एक विलक्षण वीडियो आलेख है. कान के ग्रैंंड थियेटर लूमिएर में फिल्म के प्रदर्शन के दूसरे दिन उन्होने अपने सिनेमैटोग्राफर फाबरिक अरानो के आई फोन पर प्रेस कांफ्रेंस में सवालों के जवाब दिए. कान के इतिहास मे पहली बार ऐसी प्रेस कांफ्रेंस हुई जिसमें आई फोन पर सवाल जवाब हुए। गोदार 13 साल बाद प्रेस से मुखातिब हुए थे . तब उन्होंने घोषणा की थी कि जबतक उनके हाथ- पाँव और आँखें सही सलामत हैं वे फिल्में बनाते रहेंगे . तब किसे पता था कि यह उनका आखिरी प्रेस वक्तव्य साबित होगा. उन्होंने कहा था कि यूरोप को रूस के बारे में नरमी बरतनी चाहिए और अरब देशों के प्रति उदार नजरिया रखना चाहिए . उन्होंने सिनेमा के भविष्य के बारे में कहा कि ” दस साल बाद सारे थियेटर मेरी फिल्में दिखाएँगे और गंभीर सिनेमा का लोकप्रिय दौर लौटेगा .” उन्होंने कहा कि सिनेमा की अपनी भाषा होती है . उसे किसी दूसरे के शब्दों की जरूरत नही .” वे पिछले 70 सालों से सिनेमा में सक्रिय है और फ्रेंच न्यू वेव आंदोलन को शुरू करनेवालों में प्रमुख रहे हैं.
ज्याँ लुक गोदार हमेशा से हॉलीवुड और मुख्यधारा -सिनेमा के खिलाफ रहे है . वे दुनिया के अकेले ऐसे फिल्मकार हैं जिन पर सबसे ज्यादा लिखा गया है  उन्हें जब 2010 में लाइफ टाइम अचीवमेंट का ऑनरेरी ऑस्कर सम्मान घोषित हुआ तो वे सम्मान लेने नहीं गए. उन्होने 1968 में छात्र आंदोलन के पक्ष मे कान फिल्म समारोह को बंद करा दिया था.
उनकी आखिरी फिल्म “इमेज बुक ” एक तरह से सिनेमा में उनकी इसी प्रतिरोधी चेतना की ही अभिव्यक्ति है और उनकी पिछली फिल्मों – फिल्म सोशलिज्म ( 2010) और गुडबाय टू लैंग्वेज (2014 )- का विस्तार है जिनमें केवल दृश्यों के कोलाज है.
” इमेज बुक ” में एक तरह से उन्होने आज की दुनिया का दिल दहलाने वाला आइना दिखाया है . पचास और साठ के दशक की फिल्मों से लेकर न्यूजरील वीडियो तक, दुनिया भर मे छपी खबरों के कोलाज और मानव सभ्यता पर मंडराते खतरों से जुड़े चित्र – सबकुछ हजारों कहानियाँ बयान कर रहे है . एक पूरा खंड उनके वीडियो महाकाव्य ” सिनेमा का इतिहास ” से लिया गया है जिसे बनाने में उन्होने दस साल लगाए थे (1988-1998)। यह आज के संसार की क्लाईडोस्कोपिक यात्रा है जो कई खंडों में चलती है मसलन वन रीमेक, सेंट पीट्सबर्ग , अरब , युद्ध, औरतें, शब्द आदि। इस्लामिक स्टेट आई एस आई एस के वीडियो है तो सामूहिक नरसंहार की क्लिपिंग . एक दृश्य में कुत्तों की तरह रेंगते नंगे स्त्री पुरूष है ( उत्तर कोरिया), तो औरतों की योनि में गोली मारते सैनिक है . एक जगह वे बताते हैं कि प्रेम के इजहार में सदियों से मर्द झूठ बोलते आ रहे है और यह कि हमारी सभ्यता साझा हत्याओं पर आधारित है.
एक बहस में गोदार ने कहा था कि – “यदि लोग अब मेरी फिल्में नही पसंद करते तो उनकी सोच में गड़बड़ है, फिल्मों में नहीं।” आज वे हमारे बीच नहीं हैं, लेकिन जब तक सिनेमा रहेगा – गोदार प्रासंगिक बने रहेंगे.



इस तरह की अन्य खबरें पढ़ने के लिए भारत एक्सप्रेस न्यूज़ ऐप डाउनलोड करें.

Also Read