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हॉलीवुड जलकर हो रहा है खाक

शुरू में महज 10 एकड़ के इलाके में लगी ये आग कुछ ही दिनों में 17,200 एकड़ में फैल गई. पूरे शहर में धुएं के बादल छाए हुए हैं. इस भयावह आग से अभी तक अनुमानित लगभग 135-150 अरब डॉलर का नुकसान हो चुका है.

Hollywood Fire: आज से 50 साल पहले इस्कॉन (ISKCON) के संस्थापक आचार्य स्वामी प्रभुपाद कार में कैलिफोर्निया हाईवे पर जा रहे थे. खिड़की के बाहर दूर से बहुमंजलीय अट्टालिकाओं की कतार दिखाई दे रही थी. श्रील प्रभुपाद के मुंह से अचानक निकला कि इन लोगों ने रावण की सोने की लंका बनाकर खड़ी कर दी है जो एक दिन खाक हो जाएगी. जिस तेजी से लॉस एंजल्स का हॉलीवुड इलाका भयावह आग की चपेट में हर क्षण खाक हो रहा है, उससे 50 वर्ष पूर्व की गई एक सिद्ध संत की भविष्यवाणी सत्य हो रही है.

आग से अब तक 150 अरब डॉलर का नुकसान

कैलिफ़ॉर्निया राज्य के शहर लॉस एंजेलिस के जंगलों में फैली आग (Los Angeles Fire) भयावह रूप लेती जा रही है. अब तक इस आग की चपेट में छह जंगल आ चुके हैं और इसका दायरा निरंतर बढ़ता जा रहा है. आग की वजह से अब तक दस लोगों की मौत हो चुकी है और लगभग दो लाख से अधिक लोगों को अपना घर छोड़ने पर मजबूर होना पड़ रहा है. तेज हवा राहत कार्यों में बाधक बन रही है. चार लाख से अधिक घरों की बिजली कटी हुई है. कैलिफोर्निया के इतिहास में इसे सबसे विनाशकारी हादसा बताया जा रहा है.

शुरू में महज 10 एकड़ के इलाके में लगी ये आग कुछ ही दिनों में 17,200 एकड़ में फैल गई. पूरे शहर में धुएं के बादल छाए हुए हैं. इस भयावह आग से अभी तक अनुमानित लगभग 135-150 अरब डॉलर (12 हजार अरब रुपयों) का नुकसान हो चुका है.

पेरिस हिल्टन के घर की फोटो वायरल

हॉलीवुड की मशहूर अभिनेत्री पेरिस हिल्टन के मकान की तस्वीरें सोशल मीडिया पर खूब वायरल हो रही हैं. मालिबू नगर में समुद्र के किनारे बने फ़िल्मी सितारों के खूबसूरत घर अब मलबे में तब्दील हो चुके हैं और इनके केवल जले हुए अवशेष ही बचे हैं. अमरीका की उपराष्ट्रपति कमला हैरिस का घर भी ख़तरे में है. इसके चलते उनके घर को भी ख़ाली कराया गया है. राजनीति, उद्योग और सिने जगत की कई जानी-मानी हस्तियों के आलीशान मकानों को भी ख़ाली करने के आदेश जारी हुए हैं.

लॉस एंजेलिस में 1 करोड़ से ज्यादा लोग रहते हैं

उल्लेखनीय है कि लॉस एंजेलिस अमेरिका की सबसे ज्यादा आबादी वाला काउंटी है. यहां 1 करोड़ से ज्यादा लोग रहते हैं. कैलिफोर्निया में कई सालों से सूखे के हालात हैं. इलाके में नमी की कमी है. इसके अलावा यह राज्य अमेरिका के दूसरे इलाकों की तुलना में काफी गर्म है. यही वजह है कि यहां पर गर्मी के मौसम में अक्सर जंगलों में आग लग जाती है. यह सिलसिला बारिश का मौसम आने तक जारी रहता है. बीते कुछ सालों से हर मौसम में आग लगने की घटनाएं बढ़ी हैं.

पिछले 50 सालों में कैलिफोर्निया के जंगलों में 78 से ज्यादा बार आग लग चुकी है. कैलिफोर्निया में जंगलों के पास रिहायशी इलाके बढ़े हैं. ऐसे में आग लगने पर नुकसान ज्यादा होता है. 1933 में लॉस एंजिलिस के ग्रिफिथ पार्क में लगी आग कैलिफोर्निया की सबसे बड़ी आग थी. इसने करीब 83 हजार एकड़ के इलाके को अपनी चपेट में ले लिया था. करीब 3 लाख लोगों को अपना घर छोड़कर दूसरे शहरों जाना पड़ा था.

मौसम के हालात और जलवायु परिवर्तन के प्रभाव की वजह से आने वाले दिनों में इस आग के और भड़कने की आशंका जताई जा रही है. अमेरिकी की बीमा कंपनियों को डर है कि यह अमेरिका के इतिहास में जंगलों में लगी सबसे महंगी आग साबित होगी, क्योंकि आग के दायरे में आने वाली संपत्तियों की कीमत बहुत ज़्यादा है.

जलवायु परिवर्तन आग की घटना के लिए जिम्मेदार

यदि आग के कारणों की बात करें तो अमेरिकी सरकार के रिसर्च में स्पष्ट रूप से यह कहा गया है कि पश्चिमी अमेरिका में बड़े पैमाने पर जंगलों में लगी भीषण आग का संबंध जलवायु परिवर्तन से भी है. पर्यावरण विशेषज्ञों का मानना है कि बढ़ती गर्मी, लंबे समय तक सूखा और प्यासे वायुमंडल सहित जलवायु परिवर्तन पश्चिमी अमेरिका के जंगलों आग के ख़तरे और इसके फैलने की प्रमुख वजह रहे हैं. अमेरिका में दक्षिणी कैलिफोर्निया में आग लगने का मौसम आमतौर पर मई से अक्टूबर तक माना जाता है.

परंतु राज्य के गवर्नर गैविन न्यूसम ने मीडिया को बताया कि आग लगना पूरे साल की एक समस्या बन गई है. इसके साथ ही इस आग को फैलाने का एक बड़ा कारण ‘सेंटा एना’ हवाएँ भी हैं, जो ज़मीन से समुद्र तट की ओर बहती हैं. माना जाता है कि क़रीब 100 किलोमीटर प्रति घंटे से ज़्यादा की गति से चलने वाली इन हवाओं ने आग को अधिक भड़काया. ये हवाएं साल में कई बार बहती हैं.

अमरीका हो, भारत हो या विश्व का कोई भी देश, चिंता की बात यह है कि यहां के नेता कभी पर्यावरणवादियों की सलाह को महत्व नहीं देती. पर्यावरण के नाम पर मंत्रालय, विभाग और अंतर्राष्ट्रीय सम्मेलन सब काग़ज़ी ख़ानापूरी करने के लिए हैं. कॉर्पोरेट घरानों के प्रभाव में और उनकी हवस को पूरा करने के लिए सारे नियम और क़ानून ताक पर रख दिये जाते हैं. पहाड़ हों, जंगल हों, नदी हो या समुद्र का तटीय प्रदेश, हर ओर विनाश का ऐसा ही तांडव जारी है. विकास के नाम पर होने वाले विनाश यदि ऐसे ही चलते रहेंगे तो भविष्य में इससे भी भयंकर त्रासदी आएँगीं.

2040 ऐसे कई हादसों सामना करना पड़ सकता है

अमरीका जैसे संपन्न और विकसित देश में जब ऐसे हादसे बार-बार होते हैं तो लगता है कि वहाँ भी जाने-माने पर्यावरणविदों, इंजीनियर और वैज्ञानिकों के अनुभवों और सलाहों को खास तवज्जो नहीं दी जाती. यदि इनकी सलाहों को गंभीरता से लिया जाए तो शायद आनेवाले समय में ऐसा न हो. एक शोध के अनुसार जलवायु परिवर्तन पर नज़र रखने वाले यूएन के वैज्ञानिकों ने अक्टूबर 2018 में चेतावनी दी थी कि अगर पर्यावरण को बचाने के लिए कड़े कदम नहीं उठाए गए तो बढ़ते तापमान की वजह से 2040 तक भयंकर बाढ़, सूखा, अकाल और जंगल की आग का सामना करना पड़ सकता है. दुनिया का कोई भी देश हो क्या कोई इन वैज्ञानिक शोधकर्ताओं और विशेषज्ञों की सलाह को कभी सुनेगा?


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-भारत एक्सप्रेस



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