Bharat Express

Africa महाद्वीप से निकलने के बाद आदिमानव पहली बार कहां गया था..? नए अध्ययन में कुछ सुराग मिले…

New Research: इंसानों की प्रजाति 300,000 वर्ष से अधिक पहले अफ्रीका में उभरी थी.​ फिर 60,000 से 70,000 वर्ष पहले इस महाद्वीप से बाहर प्रवास के साथ होमो सेपियन्स के वैश्विक प्रसार की शुरुआत हुई थी.

(प्र​तीकात्मक फोटो साभार: विकिपीडिया/Charles R. Knight)

मानव विकास के क्रम में अभी कई ऐसे सवाल हैं, जिनके जवाब हमें अब तक नहीं मिल सके हैं. दूसरी तरफ इस विकास क्रम के विभिन्न पहलुओं को जानने के लिए किए गए शोध के दौरान तमाम जानकारियां भी सामने आई हैं. इस संबंध में हमारे वैज्ञानिकों द्वारा लगातार रिसर्च और अध्‍ययन किए जा रहे हैं, ताकि हमारे विकास क्रम के बारे में और अधिक जानकारी सामने लाई जा सके.

शोध के इस क्रम में हमारी यानी इंसानों की प्रजाति को ‘Homo Sapiens’ नाम​ दिया गया. लैटिन भाषा में Homo का अर्थ है, ‘मानव’ और Sapiens मतलब होता है ‘बुद्धिमान’ यानी Homo sapiens को ‘बुद्धिमान इंसान’ कहा गया है. हमने खुद को बुद्धिमान इसलिए भी कहा, क्योंकि पृथ्वी पर हम ही एकमात्र प्रजाति रहे हैं, जिसने समय के साथ खुद में बदलाव किया और क्रमिक तौर पर खुद को विकसित करते चले गए. इंसानों ने ही दुनिया भर में विभिन्न प्रकार के भूमि क्षेत्रों को अपनी मेहनत से सफलतापूर्वक आबाद किया है.

एक नया अध्ययन सामने आया

समाचार एजेंसी रॉयटर्स के मुताबिक, हमारी प्रजाति 300,000 वर्ष से अधिक पहले अफ्रीका में उभरी.​ फिर 60,000 से 70,000 वर्ष पहले इस महाद्वीप से बाहर प्रवास के साथ होमो सेपियन्स के वैश्विक प्रसार की शुरुआत हुई, सवाल ये है कि अफ्रीका छोड़ने के बाद हमारे अग्रदूत या कहें तो पूर्वज कहां गए?

वर्षों की बहस और शोध के बाद एक नया अध्ययन इस सवाल का जवाब सामने लेकर आया है. अध्ययन में शामिल वैज्ञानिकों ने कहा कि ऐसा प्रतीत होता है कि शिकारियों (इंसान) के ये समूह लगभग 45,000 साल पहले पूरे एशिया और यूरोप में बसने से पहले ईरान, दक्षिण-पूर्व इराक और उत्तर-पूर्व सऊदी अरब तक फैले एक भौगोलिक केंद्र में एक सजातीय आबादी के रूप में हजारों वर्षों तक रहे थे.

वैज्ञानिकों के निष्कर्ष प्राचीन DNA और आधुनिक Gene Pool से तैयार किए गए जीनोमिक डेटासेट (Genomic Datasets) पर आधारित थे, जिन्हें पेलियोकोलॉजिकल सबूतों (Paleoecological Evidence) के साथ जोड़ा गया था, जिससे पता चला कि यह क्षेत्र कभी एक आदर्श निवास स्थान होता होगा.

शोधकर्ताओं ने इस क्षेत्र को जिसे फारसी पठार (Persian Plateau) कहा जाता है, इन लोगों के लिए एक ‘Hub’ (निवास का स्थान) कहा – जिनकी संख्या तब शायद केवल हजारों में थी. सहस्राब्दियों के बाद हमारे पूर्वज और अधिक दूर के स्थानों पर चले गए थे. अनुमान है कि जलवायु में बड़े बदलाव और सूखे जैसी स्थितियों ने उन्हें अफ्रीका से बाहर निकलने की प्रेरणा दी होगी. वैज्ञानिकों का सुझाव है कि अफ्रीका में सूखे के कारण भुखमरी की स्थिति पैदा हो गई, जिससे मनुष्यों में दूसरी जगहों का पता लगाने की तलब पैदा हुई होगी.

शोधकर्ताओं ने क्या कहा

नेचर कम्युनिकेशंस पत्रिका में प्रकाशित अध्ययन के वरिष्ठ लेखक लूका पगानी ने कहा, ‘हमारे नतीजे यूरेशिया के उपनिवेशीकरण के शुरुआती चरणों में सभी वर्तमान गैर-अफ्रीकियों के पूर्वजों के ठिकाने की पहली पूरी तस्वीर प्रदान करते हैं.’ लूका इटली की यूनिवर्सिटी ऑफ पडोवा (University of Padova) में आणविक मानवविज्ञानी (Molecular Anthropologist) हैं.

मानवविज्ञानी और अध्ययन के सह-लेखक माइकल पेट्राग्लिया ने कहा, ‘अध्ययन हमारे और हमारे इतिहास की एक कहानी है. हमारा लक्ष्य हमारे विकास और हमारे विश्वव्यापी फैलाव के बारे में कुछ रहस्य को उजागर करना था.’

माइकल ऑस्ट्रेलिया की ग्रिफिथ यूनिवर्सिटी में ऑस्ट्रेलियन रिसर्च सेंटर फॉर ह्यूमन इवोल्यूशन के निदेशक हैं.’ उन्होंने कहा, ‘आनुवांशिक और पुरापारिस्थितिकी मॉडल के संयोजन ने हमें उस स्थान की भविष्यवाणी करने की अनुमति दी, जहां प्रारंभिक मानव आबादी ने अफ्रीका से बाहर निकलते ही सबसे पहले निवास किया था.’

क्या खाते थे हमारे पूर्वज

शोधकर्ताओं ने कहा कि ये लोग शिकारियों के छोटे और गतिशील समूहों में रहते थे. इनके निवास स्थान में जंगलों से लेकर घास के मैदानों और सवाना तक विभिन्न प्रकार की पारिस्थितिक स्थितियां शामिल थीं. जिसमें शुष्क (सूखा) और गीली (बरसात) मौसमी स्थितियां शामिल थीं.

माइकल पेट्राग्लिया ने कहा, ‘वहां पर्याप्त संसाधन उपलब्ध रहे होंगे, जिसमें जंगली हिरण, भेड़ और बकरी के शिकार के सबूत मिले हैं. उनका आहार खाद्य पौधों और छोटे से बड़े आकार के जानवरों के शिकार से बना होगा. ऐसा लगता है कि शिकारी समूह यानी हमारे पूर्वज मौसमी जीवनशैली अपनाते थे. वे ठंडे महीनों में निचले इलाकों में और गर्म महीनों में पहाड़ी क्षेत्रों में रहते थे.’

त्वचा काली, बाल भी काले थे

लूका पगानी ने कहा, ‘उस समय Hub में रहने वाले लोगों की त्वचा काली और बाल काले थे, शायद वे अब पूर्वी अफ्रीका के कुछ हिस्सों में रहने वाले गुमुज (Gumuz) या अनुआक (Anuak) लोगों से मिलते-जुलते थे. जैसे ही लोगों ने Hub छोड़ा, गुफा में उकेरी जाने वाली कला (Cave Art) नजर आने लगीं, इसलिए ये सांस्कृतिक कलाएं Hub में रहते हुए बनाई गई होंगी.’ शोधकर्ताओं ने कहा कि हब से परे अलग-अलग दिशाओं में उनका अंतिम फैलाव वर्तमान पूर्वी एशियाई और यूरोपीय लोगों के बीच आनुवंशिक विचलन (Genetic Divergence ) का आधार तैयार करता है.

अध्ययन में यूरोपीय और एशियाई लोगों के आधुनिक और प्राचीन जीनोमिक डेटा का उपयोग किया गया. जर्मनी में यूनिवर्सिटी ऑफ पाडोवा और यूनिवर्सिटी ऑफ माइंज के आणविक मानवविज्ञानी और अध्ययन के प्रमुख लेखक लियोनार्डो वलिनी ने कहा, ‘हमने 45,000 से 35,000 साल पहले के सबसे पुराने जीनोम को विशेष रूप से उपयोगी पाया.’

अफ्रीका से बाहर छोटे पैमाने पर यात्राएं हुई थीं

शोधकर्ताओं ने इस क्षेत्र को इंगित करने के लिए हब के बाहर फैलाव के बाद से हुई आबादी के व्यापक आनुवंशिक मिश्रण को सुलझाने का एक तरीका तैयार किया. 60,000 से 70,000 साल पहले महत्वपूर्ण प्रवासन से पहले होमो सेपियन्स की अफ्रीका से बाहर छोटे पैमाने पर यात्राएं हुई थीं.

होमो सेपियन्स अफ्रीका के बाहर रहने वाली पहली मानव प्रजाति नहीं थी – जिसमें Hub के आसपास का क्षेत्र भी शामिल था. हमारी प्रजाति द्वारा प्राचीन अंतर्प्रजनन (Interbreeding) ने आधुनिक गैर-अफ्रीकियों के डीएनए में निएंडरथल का एक छोटा सा योगदान छोड़ा है. वलिनी ने कहा, ‘होमो सेपियंस के आगमन से पहले इस क्षेत्र में निएंडरथल के अस्तित्व की पुष्टि की गई है, इसलिए यह Hub वहीं रहा होगा, जहां यह अंतर्प्रजनन हुई था.’

-भारत एक्सप्रेस

Bharat Express Live

Also Read