अवधेश राय की प्रतिमा
बात साल 1991 की है, उत्तर प्रदेश में भारतीय जनता पार्टी की सरकार राम मन्दिर आंदोलन वाली सरकार थी. कल्याण सिंह मुख्यमंत्री तो सूर्य प्रताप शाही गृह राज्य मंत्री थे, उन दिनों देश में जनता पार्टी की सरकार थी.
वाराणसी के बगल में एक जिला है गाजीपुर, वहां का एक परिवार वर्षों पहले आकर बनारस में बस गया. उस परिवार में एक सख्श नहीं बल्कि सख्शियत का जन्म हुआ नाम था अवधेश राय. हम सख्शियत इसलिए भी कर रहे हैं क्योंकि जिसकी मौत पर आधे बनारस के घरों में चूल्हा नहीं जला था वह कोई सामान्य व्यक्ति तो हो नहीं सकता.
अवधेश राय 90 के दशक का बनारस के सर्वाधिक चर्चित नामों में से एक था, अवधेश का सिक्का उन दिनों बनारस के कोयला कारोबार समेत कई प्रमुख कारोबारों में चला करता था. अवधेश राय व्यापारियों के मान सम्मान की लड़ाई लड़ने की वजह से बहुत तेज लोकप्रिय हो गये थे और वह राजनीति में आने का मन बना रहे थे. उन दिनों कांग्रेस के एक कद्दावर नेता हुआ करते थे कल्पनाथ राय, बनारस में उन्हीं की एक जनसभा में अवधेश राय ने कांग्रेस की सदस्यता ली.
उन्हीं दिनों मुख्तार गाजीपुर के अलावा अगल – बगल के जनपदों में अपना प्रभाव बढ़ाने के लिए सक्रिय था, मुख्तार को कई नेताओं का संरक्षण प्राप्त था और उसके बड़े भाई अफजाल अंसारी भी विधायक थे.
अवधेश राय और मुख़्तार में दुश्मनी की शुरुआत
अवधेश राय और मुख्तार अंसारी के बीच टकराव व्यापारियों के सम्मान व रक्षा एवं बाद में कोयले के कारोबार को लेकर हुई. दरअसल मुख्तार ने अपने दबदबे को बनारस में क़ायम करने के लिए बनारस में वसूली की शुरुआत कराई. चेतगंज थाना क्षेत्र में आने वाले लहुराबीर और हथुआ मार्केट बनारस के अच्छे व्यापारिक इलाके हैं. हथुवा मार्केट हथुवा स्टेट के राजा का है जिनसे अवधेश राय के अच्छे रिश्ते थे तो वहीं स्थानीय व्यपारियों से भी रिश्ते काफी अच्छे थे. स्थानीय लोग बताते हैं कि, ‘चेतगंज थाने में ही हैदर अली टाइगर और संजय सिंह नाम के दो सिपाही थे जिन्होंने इस पूरे इलाके में मुख्तार अंसारी के लिए व्यापारियों से वसूली करनी शुरु की. वसूली न देने पर कई व्यपारियों के साथ मारपीट की घटनाएं होने लगीं. एक दिन हथुवा मार्केट में अवधेश राय बैठे हुए थे तभी वसूली करने वाले सिपाही पहुंचे, अवधेश राय को जैसे ही जानकारी हुई उन्होंने उन दोनों सिपाहियों को पकड़ कर रस्सी से बांध दिया. उसके बाद अवधेश राय एसएसपी बनारस को फोन करके कहा कि जबतक यह पुलिसकर्मी निलंबित नहीं हो जाते तबतक व्यापारियों का धरना प्रदर्शन चलेगा और इसी के साथ पूरे प्रदेश में व्यापारी स्ट्राइक पर जाने को तैयार हो गये. बनारस में व्यापारियों ने बंदी कर दी, धरना प्रदर्शन अभी कुछ ही घण्टे चला तबतक दोषी पुलिसकर्मियों को निलंबित कर दिए गये.
इसी निलंबन से अवधेश राय और मुख्तार के बीच दुश्मनी शुरु हुई, बाद में मुख्तार ने बनारस के कोयले के कारोबार को कब्जा करना चाहा तो वहां भी उसका सामना अवधेश राय हुआ. 90 के दशक में रेशम से लेकर कोयले के कारोबार पर सबकी नज़र थी. उन दिनों स्क्रैप, रेशम और कोयले का कारोबार मोटा पैसा देने वाले धंधे थे, बनारस इन सब धंधों का प्रमुख केंद्र था. मुग़लसराय से बनारस नज़दीक होने के चलते कोयले के काले कारोबार का भी यहां से संचालन करना आसान था लेकिन अवधेश राय बार – बार मुख्तार की राह के काटे बनते जा रहे थे.
मारुति वैन से आये हथियारबंद हमलावरों ने वाराणसी के लहुराबीर क्षेत्र में सीढ़ियों से अपने घर में जाते वक्त 3 अगस्त, 1991 मुख्तार के राह में काटे बन रहे अवधेश राय पर अंधाधुंध गोलियां चलाकर मौत की नींद सुला दिया. जब अंधाधुंध गोलियां चल रहीं थीं तो महज चंद कदम पर दूर चेतगंज पुलिस के इक़बाल का भी कत्ल हो रहा था.
बनारस उन गोलियों की आवाज में आमजन के हक़ और अधिकार की आवाज़ उठाने वाली शख्शियत अवधेश राय की आवाज़ मंद पड़ती जा रही थी और व्यापारियों ने अपना नेता, युवाओं ने अपना अभिभावक और समाजसेवियों ने अपना साथी हमेशा के लिए खो दिया.
-भारत एक्सप्रेस
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