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मोदी क्यों जीते और फिर क्यों वापसी कर सकते हैं?

कभी-कभार कोई ऐसा सप्ताह आता है जो मुझे यह याद दिलाता है कि क्यों नरेंद्र मोदी दो बार भारत के प्रधानमंत्री बन चुके हैं और तीसरी बार पीएम बनने की राह पर आगे बढ़ रहे हैं, और ये सप्ताह भी उन्हीं बीते हुए सप्ताहों में से एक है. जब मैं तीस साल पहले एक दक्षिण पूर्व एशियाई देश की यात्रा पर गई थी.

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी (फाइल फोटो)

कभी-कभार कोई ऐसा सप्ताह आता है जो मुझे यह याद दिलाता है कि क्यों नरेंद्र मोदी दो बार भारत के प्रधानमंत्री बन चुके हैं और तीसरी बार पीएम बनने की राह पर आगे बढ़ रहे हैं, और ये सप्ताह भी उन्हीं बीते हुए सप्ताहों में से एक है. जब मैं तीस साल पहले एक दक्षिण पूर्व एशियाई देश की यात्रा पर गई थी. जो भारत जैसा गरीब और अव्यवस्थाओं से घिरा हुआ था, लेकिन अब भारत से कई साल आगे निकल चुका है. इससे कतई फर्क नहीं पड़ता है कि वो कौनसा देश है. क्योंकि दक्षिणपूर्व के तमाम ऐसे देश हैं जो अपने लोगों को एक बेहतर जिंदगी देने की खोज में हमसे आगे निकल चुके हैं, और ऐसा सिर्फ सुशासन और निवेश के जरिए ही संभव है. वरिष्ठ पत्रकार तवलीन सिंह इस लेख के जरिए बता रही हैं कि नरेंद्र मोदी पिछले दो चुनावों में क्यों जीते और तीसरी बार फिर से प्रधानमंत्री बनने की राह पर आगे बढ़ रहे हैं.?

तवलीन सिंह ने अपनी 30 साल पहले की गई एक दक्षिणपूर्वी एशियाई देश की यात्रा का जिक्र करते हुए लिखा है कि ” इस बार मैं तीन साल बाद जब वापस लौटी तो कुछ ग्रामीण इलाकों में गई. जहां मैं पहले भी जा चुकी थी, लेकिन इस बार उन गांवों की बदली तस्वीरों को देखकर हैरान रह गई. स्टेट हाईवे पर चलते हुए छोटे शहरों और गांवों से गुजरते हुए मैंने देखा कि काफी हद तक व्यवस्थाएं बदल चुकी हैं. स्वच्छता के साथ ही अन्य योजनाओं को लागू करने में भी तेजी आई है. जिसकी उम्मीद हम बहुत पहले से कर रहे थे. लेकिन इस यात्रा के दौरान जिस बात ने मुझे सबसे ज्यादा प्रभावित किया वह यह थी कि मुझे कहीं भी गंदगी या सड़ता हुआ कचरा नहीं दिखा. इसने मुझे याद दिलाया कि जब तक नरेंद्र मोदी ने अपना स्वच्छ भारत अभियान शुरू नहीं किया था, तब तक हमारे पास एक भी ऐसा प्रधानमंत्री नहीं था जिसने गंदगी और गंदी स्थितियों पर ध्यान दिया हो, जिनमें अधिकांश भारतीय रहने को मजबूर हैं. जाहिर है कि नरेंद्र मोदी भारत को वास्तव में स्वच्छ बनाने में पूरी तरह सफल नहीं हुए हैं, लेकिन कम से कम वह कोशिश तो कर रहे हैं.”

तवलीन सिंह आगे लिखती हैं कि ” हम अधिकांश दक्षिण-पूर्व एशियाई देशों से अभी भी दशकों पीछे हैं. इसका सबसे बड़ा कारण लापरवाह शासन है जो कांग्रेस युग को परिभाषित करता है. हमारे 77वें स्वतंत्रता दिवस पर लाल किले से अपने भाषण में प्रधानमंत्री ने परिवारवाद का जिक्र किया और उसे कुछ इस तरह से कहा ‘ परिवार का शासन, परिवार द्वारा, परिवार के लिए’ ये बिल्कुल वैसा ही था, और परिवार इससे बचा क्योंकि लुटियंस दिल्ली में वे दरबारियों और चापलूसों के मोहपाश में फंसे रहे.

तवलीन सिंह आगे लिखती हैं कि जब वह भारत वापस आईं तो कुछ प्रकाशकों ने उन्हें राजीव दरबार के सबसे समर्पित सदस्यों में एक के द्वारा लिखी गई एक पुस्तक भेजी थी. जिन्होंने कभी ये घोषणा की थी कि नरेंद्र मोदी 21वीं सदी में तो वो कभी प्रधानमंत्री नहीं बन सकते, लेकिन अगर AICC की बैठक में वो चाय बेचना चाहते हैं तो उनका स्वागत है. ये बातें कहना मूर्खतापूर्ण और अहंकार से भरा था, लेकिन इन बयानों से भी नरेंद्र मोदी को 2014 में जीत हासिल करने में मदद मिली.

तवलीन सिंह लिखती हैं कि ” राजीव के दरबारी (मणिशंकर अय्यर) के संस्मरण को पढ़ने का मेरा कारण व्यक्तिगत था. जिसे पढ़ते हुए मैंने पाया कि उन्होंने मेरे बारे में भी बहुत कुछ असभ्य और असत्य बातें कही थीं. मुझे ये जानकर जरा भी आश्चर्य नहीं हुआ कि उनका संस्मरण राजीव गांधी के दाहिने हाथ की तरह उनके समय के बारे में एक बड़े झूठ के अलावा कुछ भी नहीं है. इस दरबारी की दृष्टि से राजीव ने उस समय एक भी गलती नहीं की थी. दरबारी ने उस घटना को भी सही नहीं बताया जिसकी वजह से राजीव के प्रधानमंत्री बनने के एक सप्ताह के अंदर 3 हजार से ज्यादा सिखों की मौत हुई. उन्होंने ये जरूर माना कि राजीव गांधी ने एक भाषण दिया था जिसमें उन्होंने कहा था कि उनकी मां की हत्या के बाद भयानक हिंसा हुई थी, लेकिन जब कोई बड़ा पेड़ गिरता है तो धरती हिलती है, लेकिन इसमें भी उन्होंने राजीव को दोषमुक्त कर दिया कि भाषण घटना के बाद आया था ?

शाहबानो का मामला और तलाकशुदा मुस्लिम महिलाओं को भरण-पोषण का अधिकार न देने का राजीव सरकार द्वारा पारित कानून भी उनकी गलती नहीं थी. यह उसके आसपास के लोगों की गलती थी. बोफोर्स घोटाले का भी राजीव से कोई लेना-देना नहीं था, लेकिन उनके सर्कल में ऐसे लोग हो सकते थे जिन्हें इस हथियार सौदे में रिश्वत दी गई थी. ओत्तावियो और मारिया क्वात्रोची का कोई उल्लेख नहीं है, जिनके स्विस बैंक खातों में बोफोर्स रिश्वत का पैसा पाया गया. चित्रा सुब्रमण्यम की उत्कृष्ट खोजी पत्रकारिता के कारण अगर उन्हें उनके संस्मरणों में शामिल किया जाए, तो उन्हें यह बताना होगा कि राजीव और सोनिया गांधी के सबसे करीबी दोस्तों को बोफोर्स के लिए रिश्वत क्यों दी गई थी. जबकि क्वात्रोची एक उर्वरक विक्रेता था, हथियारों का व्यापारी नहीं.

-भारत एक्सप्रेस



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