महंत रविंद्र पुरी (फोटो सोशल मीडिया)
UP News: सुप्रीम कोर्ट द्वारा समलैंगिक विवाह को अमान्य करार देने के बाद से इस पर एक बार फिर से बहस छिड़ गई है. जहां तमाम लोग सुप्रीम कोर्ट के फैसले पर नाराज हैं तो वहीं कई लोगों ने इस निर्णय का स्वागत किया है. हरिद्वार के संतों ने कोर्ट के फैसले की प्रशंसा की है तो वहीं ताजा बयान अखिल भारतीय अखाड़ा परिषद के अध्यक्ष महंत रविंद्र पुरी की ओर से सामने आया है. उन्होंने सुप्रीम कोर्ट के फैसले को सही कहते हुए समलैंगिकता को एक विकृति बताया है और कहा है कि सुप्रीम कोर्ट के फैसले से इस पर रोक लग सकेगी. इसी के साथ उन्होंने कहा कि अगर समाज में समलैंगिक शादियां होंगी तो संतान उत्पन्न नहीं होगी और पीढियां आगे नहीं बढ़ सकेंगी. इसलिए सुप्रीम कोर्ट के फैसले का स्वागत किया जाना चाहिए. इसी के साथ उन्होंने समलैंगिक विवाह को समाज के लिए भद्दा मजाक बताया.
अखाड़ा परिषद के अध्यक्ष महंत रविंद्र पुरी ने मीडिया से बात करते हुए कहा कि सेम सेक्स मैरिज हमारे समाज के लिए भद्दा मजाक है. उन्होंने कहा कि हम जैसे आध्यात्मिक लोग हैं वो सेम सेक्स मैरिज को गाली की तरह मानते हैं. उन्होंने आगे कहा कि कैसे शादी हो, किसके साथ शादी हो, पुरुष और स्त्री, ये तो भगवान ने बनाया है. उन्होंने रीति-रिवाज का हवाला देते हुए कहा कि पुरुष की शादी स्त्री से हो, स्त्री की पुरुष से हो, आज तक यही रीति है, यही रिवाज है. अब आदमी ही आदमी के साथ शादी कर ले ये कैसे हो सकता है. ये अच्छी बात नहीं कि एक स्त्री भी स्त्री से शादी करे. उन्होंने कहा कि अगर ये सब होने लगा तो बच्चे कहां से पैदा होंगे.
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बता दें कि मंगलवार को सुप्रीम कोर्ट ने समलैंगिक विवाह को कानूनी मान्यता देने से मना कर दिया है. इसी के बाद से इस पर बहस छिड़ गई है. तो वहीं कोर्ट ने ये भी कहा है कि कानून द्वारा मान्यता प्राप्त विवाह को छोड़कर शादी का “कोई असीमित अधिकार” नहीं है. गौरतलब है कि मंगलवार को चीफ जस्टिस डी वाई चंद्रचूड़ की अगुवाई वाली पांच सदस्यीय संविधान पीठ ने समलैंगिक विवाहों को कानूनी मान्यता देने की मांग करने वाली 21 याचिकाओं पर सुनवाई की. इस मौके पर उन्होंने इन याचिकाओं की सुनवाई करते हुए चार अलग-अलग फैसले दिए. इस मामले में पीठ ने सर्वसम्मति से ऐतिहासिक फैसला दिया है और समलैंगिक विवाह को विशेष विवाह कानून के तहत कानूनी मान्यता देने से मना कर दिया है. इसी के साथ कोर्ट ने ये भी कहा है कि इस बारे में कानून बनाने का काम संसद का है. तो वहीं कोर्ट समलैंगिक लोगों को लेकर आम जनता से संवेदनशील होने का आह्वान कर चुकी है ताकि समलैंगिक लोगों के साथ समाज में किसी तरह का भेदभाव का सामना न करना पड़े. इसी के साथ कोर्ट समलैंगिक लोगों के समान अधिकारों और उनकी सुरक्षा को लेकर पहले ही मान्यता दे चुकी है.
-भारत एक्सप्रेस