भगत सिंह व बटुकेश्वर दत्त
Batukeshwar Dutt: भारत को यूं ही नहीं त्यागियों और बलिदानियों की भूमि कहा जाता है क्योंकि भारत देश में तमाम ऐसे महापुरुष रहे हैं जिन्होंने खुद के बजाय त्याग और समर्पण को ज्यादा महत्व दिया.
आज ऐसी ही एक सख्शियत क्रांतिकारी बटुकेश्वर दत्त की जयंती है, उनका जन्म 18 नवंबर 1910 को बंगाल के वर्धमान में हुआ था. क्रांतिकारी बटुकेश्वर दत्त भारत को आजाद कराने के लिए उस गरम दल के सदस्य बने जिसने असेंबली में बम फेंका था. उन्होंने भगत सिंह के साथ दिल्ली असेंबली में बम फेंका था लेकिन उन्हें इस बात का हमेशा अफसोस रहा कि काला पानी की ही सजा हुई थी जबकि उनको भगत सिंह से साथ उन्हें फांसी क्यों नहीं दी गई. आजाद भारत में उनकी बहुत उपेक्षा हुई. वह सम्मान नहीं मिल सका असल में जिसके वे हकदार थे.
महान क्रांतिकारी बटुकेश्वर दत्त की कहानी कुछ ऐसी ही है. उनके अनेक किस्से हैं, जो यह बताने को पर्याप्त हैं कि उन्होंने देश की आजादी में कितना और किस तरह योगदान दिया. कानपुर में पढ़ाई चल रही थी. देश में आजादी की अलख जग चुकी थी. अपने-अपने तरीके से लोग आंदोलन कर रहे थे. क्रांतिकारी बटुकेश्वर दत्त यूपी के कानपुर में पढ़ाई के दौरान चंद्रशेखर आजाद और भगत सिंह जैसे आज़ादी के नायकों के सम्पर्क में आए और फिर यह दोस्ती आखिरी लम्हे तक बनी रही. उन दिनों भगत सिंह, चंद्रशेखर आजाद जैसे युवा भी ब्रिटिश रूल के खिलाफ थे. वे अपने तरीके से अंग्रेजों से मोर्चा लेने पर आमादा थे. बटुकेश्वर दत्त इनका साथ पाकर न केवल खुश हो गए बल्कि आजादी के आंदोलन में कूद गए.
भगत सिंह से थी गहरी दोस्ती
भगत सिंह से उनकी दोस्ती बहुत ही गहरी थी और बटुकेश्वर दत्त को हमेशा इस बात का मलाल रहा कि उनको भगत सिंह के साथ फांसी की सजा क्यों नहीं दी गई. आज़ादी के बाद बटुकेश्वर दत्त को दिल्ली एम्स में एडमिट किया गया, तो उस वक्त के पंजाब के मुख्यमंत्री राम किशन उनसे मिलने एम्स दिल्ली पहुंचे. मुख्यमंत्री से उन्होंने कहा कि उनकी एक ही अंतिम इच्छा है कि उनका अंतिम संस्कार दोस्त भगत सिंह की समाधि के पास किया जाए. 20 जुलाई 1965 को जब बटुकेश्वर दत्त का निधन एम्स दिल्ली में हुआ तो पंजाब सरकार ने उनकी इच्छा के मुताबिक भारत-पाकिस्तान सीमा के पास हुसैनीवाला में भगत सिंह, राजगुरु, सुखदेव की समाधि के पास उनका अंतिम संस्कार कराया.
फांसी नहीं मिलने का था अफसोस
बटुकेश्वर दत्त ने भगत सिंह के साथ दिल्ली में चलती हुई असेंबली में दो बम फेंके थे. वहीं वे गिरफ्तार भी हो गए फिर अलग-अलग जेल में रहते हुए उन्हें कालापानी की सजा हुई. ब्रिटिश सरकार ने उन्हें अंडमान भेज दिया. उन्हें जीवन पर्यंत इस बात का अफसोस रहा कि भगत सिंह की तरह उन्हें फांसी क्यों नहीं हुई.
लाला लाजपत राय के नेतृत्व में आंदोलन करने वाले क्रांतिकारियों पर लाठीचार्ज का आदेश देने वाले एसपी से जेम्स ए स्कॉट से भगत सिंह खफा थे और उन्होंने एसपी के हत्या की योजना बना ली और पहचानने में हुई चूक की वजह से स्कॉट की जगह एक दूसरे अफसर जॉन की हत्या हो गई और इसी हत्या में भगत सिंह और उनके अन्य साथियों को फांसी हुई. बटूकेश्वर दत्त इसलिए फांसी से बचे क्योंकि उनकी इस हत्या में कोई भूमिका नहीं थी और दिल्ली असेंबली में बम फेंकने के आरोप में हुई सजा में ही उन्हें काला पानी भेज दिया गया था.
जब दूसरी बार फिर हुए गिरफ्तार
साल 1937 में ब्रिटिश सरकार ने उन्हें अंडमान से पटना जेल शिफ्ट कर दिया. अगले साल वे छूट गए लेकिन फिर असहयोग आंदोलन में हिस्सा लेने की वजह से गिरफ्तार कर लिए गए. करीब पांच साल बाद फिर छूटे तो देश आजादी की ओर बढ़ चुका था. वे खुश थे कि उनकी मेहनत साकार हो रही थी, दुखी थे कि उनके दोस्त भगत सिंह को फांसी हो चुकी थी और उन्हें नहीं हुई. उसके बाद बटुकेश्वर दत्त बिहार की राजधानी पटना में ही रहने लगे. वहां उनके सामने जीवन चलाने की चुनौती थी. तमाम छोटे-मोटे काम करके वे अपना जीवनयापन करते रहे. एक समय ऐसा आया जब उनकी सेहत खराब हुई. पटना अस्पताल में उन्हें ठीक से इलाज नहीं मिल सका. तब पंजाब सरकार ने बिहार सरकार को संपर्क करके सारा खर्च उठाने की पहल की तब बिहार सरकार सक्रिय हुई और उनका इलाज शुरू हुआ.
भगत सिंह की मां उन्हें मानती थी अपना बेटा
हालत बिगड़ने पर उन्हें जब दिल्ली लाया गया तो दत्त ने पत्रकारों से कहा कि उन्हें नहीं पता था कि जिस दिल्ली में अंग्रेजी रूल में हमने अपने साथी भगत सिंह के साथ बम फोड़ा था, उसी दिल्ली में वे स्ट्रेचर पर लाए जाएंगे. उन्हें एम्स में भर्ती कराया गया. जांच के दौरान पता चला कि कैंसर है. पंजाब के सीएम न केवल उनका ख्याल रख रहे थे, बल्कि निश्चित अंतराल पर मिल भी रहे थे. भगत सिंह की मां भी दत्त को बेटे की तरह ही प्यार करती थीं. वे भी दत्त से मिलने एम्स दिल्ली पहुंची थीं.
-भारत एक्सप्रेस