दिल्ली हाईकोर्ट
दिल्ली हाईकोर्ट ने कहा कि किसी के मोबाइल में आतंकवादी ओसामा बिन लादेन की तस्वीरें, जिहाद का प्रचार व आईएसआईएस के झंडे जैसी आपत्तिजनक सामग्री पाई जाती है और वह कट्टरपंथी या मुस्लिम प्रचारकों का व्याख्यानों को सुन रहा है तो उसे आईएसआईएस जैसे प्रतिबंधित आतंकवादी संगठन का सदस्य करार देने के लिए पर्याप्त नहीं है. न्यायमूर्ति सुरेश कुमार कैत एवं न्यायमूर्ति मनोज जैन की पीठ ने उक्त टिप्पणी करते हुए यूएपीए के तहत मामले में एक आरोपी अम्मार अब्दुल रहमान को जमानत पर रिहा करने का आदेश दिया.
पीठ ने कही ये बात
पीठ ने कहा कि आज के इलेक्ट्रानिक युग में इस तरह की आपत्तिजनक सामग्री र्वल्ड वाइड वेब पर आसानी से उपलब्ध है. उसे एक्सेस करना और डाउनलोड करना यह मानने के लिए पर्याप्त नहीं होगा कि आरोपी ने खुद को आईएसआईएस से जोड़ लिया है. वैसे कोई भी जिज्ञासु ऐसी सामग्री को एक्सेस कर सकता है और डाउनलोड भी कर सकता है. हमें लगता है कि यह कृत्य अपने आप में कोई अपराध नहीं है.
एनआईए ने लगाए थे ये आरोप
आरोपी को एनआईए ने अगस्त 2021 में गिरफ्तार किया था. उसपर आरोप लगाया गया है कि वह आईएसआईएस के प्रति काफी लगाव रखता है और उसने आईएसआईएस के ज्ञात व अज्ञात सदस्यों के साथ मिलकर जम्मू-कश्मीर और आईएसआईएस के नियंत्रण वाले अन्य क्षेत्रों में आपराधिक साजिश रची थी, जिससे वह खिलाफत की स्थापना के लिए आईएसआईएस में शामिल हो सके और भारत में आतंकवादी गतिविधियों को अंजाम दे सके. एनआईए ने उसपर यह भी आरोप लगाया था कि उसने स्क्रीन रिकॉर्डर का उपयोग करके इंस्टाग्राम से आईएसआईएस और क्रूर हत्याओं से संबंधित वीडियो डाउनलोड किए थे.
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कोर्ट ने उसकी जमानत याचिका स्वीकार करते निर्देश दिया कि रहमान को उन शतरे और नियमों पर जमानत पर रिहा किया जाए जिन्हें संबंधित विशेष अदालत उचित समझे. उसने यह भी स्पष्ट कर दिया कि उसकी ये टिप्पणियां अस्थायी प्रकृति की हैं और यह केवल जमानत तय करने के उद्देश्य से है. विशेष अदालत इस मामले की सुनवाई गुण-दोष के आधार पर करेगा. वह सुनवाई के दौरान उसके टिप्पणियों से सहमत नहीं भी हो सकता है.
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