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डिजिटल KYC में होती हैं ये दिक्कतें, Acid Attack Survivors की याचिका पर सुप्रीम कोर्ट ने सरकार को जारी किया नोटिस

Acid Attack Survivors: याचिका में इन युवतियों ने अपनी जैसी सैकड़ों पीड़िताओं की डिजिटल KYC यानी ग्राहकों की पहचान या तस्दीक करवाने में विशेष प्रक्रिया समावेशित करने की मांग की है.

(प्रतीकात्मक तस्वीर: Pixabay)

Acid Attack Survivors Case: सुप्रीम कोर्ट ने शुक्रवार को एसिड हमले से बचे लोगों और आंखों की स्थायी क्षति वाले व्यक्तियों के लिए वैकल्पिक डिजिटल केवाईसी (KYC) प्रक्रिया की मांग करने वाली याचिका पर केंद्र सरकार, भारतीय रिजर्व बैंक (RBI) और अन्य से जवाब मांगा है.

9 एसिड अटैक सर्वाइवर्स द्वारा दायर याचिका को ‘महत्वपूर्ण मुद्दा’ बताते हुए भारत के मुख्य न्यायाधीश (CJI) डीवाई चंद्रचूड़ और जस्टिस जेबी पारदीवाला और जस्टिस मनोज मिश्रा की पीठ ने केंद्र सरकार, आरबीआई, इलेक्ट्रॉनिक्स और सूचना प्रौद्योगिकी मंत्रालय और अन्य को नोटिस जारी किया.

शीर्ष अदालत एसिड अटैक एक्टिविस्ट प्रज्ञा प्रसून और अन्य द्वारा दायर याचिका पर सुनवाई कर रही थी, जिसमें एसिड अटैक के बाद आंखों की विकृति वाले लोगों के लिए वैकल्पिक डिजिटल केवाईसी प्रक्रिया की मांग की गई थी.

डिजिटल केवाईसी/ई-केवाईसी प्रक्रिया

याचिका में कहा गया है कि याचिकाकर्ताओं में से एक, एसिड हमले के कारण गंभीर आंखों की क्षति के साथ, 2023 में बैंक खाता खोलने के लिए आईसीआईसीआई बैंक गई थी.

याचिकाकर्ता ऐसा करने में असमर्थ थी, क्योंकि वह पलकें झपकाकर ‘लाइव तस्वीर’ खींचने की आवश्यकता को पूरा करने के बैंक के आग्रह के कारण डिजिटल केवाईसी/ई-केवाईसी प्रक्रिया को पूरा करने में असमर्थ थी.

याचिका में कहा गया है कि कई एसिड हमले के पीड़ितों की आंखें खराब हो गई हैं और जो इसी तरह की चुनौतियों का सामना कर रहे हैं, उन्हें सिम कार्ड खरीदने या स्वतंत्र रूप से बैंक खाते खोलने में बाधा आ रही है.

सेवाओं तक पहुंचने से रोक

याचिका में तर्क दिया गया कि ये बाधाएं एसिड अटैक सर्वाइवर्स को आवश्यक वस्तुओं और सेवाओं तक पहुंचने से रोकती हैं, जो सम्मान, स्वायत्तता और समानता के साथ जीवन जीने और दिन-प्रतिदिन के जीवन में भाग लेने के लिए आवश्यक हैं.

इसमें कहा गया है कि केंद्र को ‘लाइव फोटोग्राफ’ की व्याख्या का विस्तार या स्पष्टीकरण करना चाहिए, ताकि आंख झपकाने से परे चेहरे की गतिविधियों या आवाज की पहचान जैसे वैकल्पिक मानदंडों को शामिल किया जा सके.

ये होता है नुकसान

याचिका में हाथों की अंगुलियों, आंखों की पुतलियों और अन्य बायोमेट्रिक पहचान का स्थायी नुकसान होने का हवाला दिया गया है. याचिका में यह भी कहा गया है कि इनकी वजह से बैंक खाता खोलने, आधार कार्ड बनवाने, संपत्ति की रजिस्ट्री कराने या अपडेट करने, मोबाइल सिम कार्ड खरीदने जैसी स्थिति में दिक्कतों का सामना करना पड़ता है.

युवतियों ने अपनी याचिका में यह भी कहा है कि केवाईसी की प्रक्रिया में पुतलियों की डिजिटल डिटेलिंग और जीवित होने के प्रमाण देने के लिए पलकें झपकाना, उंगलियों के निशान लेना कई बार मुश्किल होता है. लिहाजा कोर्ट केंद्र सरकार को आदेश दे कि हमारी मुश्किल और मजबूरी के मद्देनजर डिजिटल केवाईसी की समावेशिक और वैकल्पिक प्रक्रिया अपनाई जाए. इसके लिए बैंक और अन्य सभी संबंधित निकायों और प्राधिकरणों के लिए दिशा निर्देश जारी किया जाए.

-भारत एक्सप्रेस

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