एचडी कुमारस्वामी. (फोटो: IANS)
PM Narendra Modi Oath Taking Ceremony: कर्नाटक के दो बार मुख्यमंत्री और पांच बार विधायक रहे जनता दल (सेक्युलर) (JDS) के नेता एचडी कुमारस्वामी ने केंद्रीय मंत्रिपरिषद में जगह हासिल करके एक बार फिर अपनी राजनीतिक सूझबूझ का परिचय दिया है.
कुमारस्वामी की पार्टी JD(S) पिछले साल सितंबर में ही भारतीय जनता पार्टी (BJP) के नेतृत्व वाले राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन (NDA) में शामिल हुई थी और भाजपा के साथ गठबंधन में लोकसभा चुनाव लड़ने का फैसला किया था.
वर्ष 1999 में अपनी स्थापना के बाद से JD(S) ने कर्नाटक में कभी भी अपने दम पर सरकार नहीं बनाई है, लेकिन कम सीट होने के बावजूद दो राष्ट्रीय दलों के साथ गठबंधन में यह दो बार सत्ता में रहा है- फरवरी 2006 से 20 महीने तक भाजपा के साथ और मई 2018 के विधानसभा चुनाव के बाद 14 महीने तक कांग्रेस के साथ. इन दोनों ही अवसरों पर कुमारस्वामी ही मुख्यमंत्री रहे थे.
देवेगौड़ा के बेटे हैं कुमारस्वामी
JD(S) के संरक्षक और पूर्व प्रधानमंत्री एचडी देवेगौड़ा के बेटे कुमारस्वामी ने भाजपा के साथ गठबंधन करके केंद्रीय मंत्रिपरिषद में जगह हासिल करने में कामयाबी हासिल कर ली है. मौजूदा समय में उनकी पार्टी अपना अस्तित्व बचाए रखने के लिए संघर्ष कर रही है.
कर्नाटक में वोक्कालिगा समुदाय के नेता 64 वर्षीय कुमारस्वामी ने कृषि मंत्री बनने की अपनी इच्छा को किसी से छुपाया नहीं है. मांड्या लोकसभा सीट जीतकर उन्होंने न केवल JD(S) के खोए हुए गढ़ को फिर से हासिल करने में कामयाबी हासिल की है, बल्कि भाजपा के साथ गठबंधन करके यह भी दिखाया है कि कर्नाटक में उनकी पार्टी अभी भी सत्ता के दावेदारों में है.
पांच बार विधायक रह चुके हैं
इस बार के लोकसभा चुनाव में कुमारस्वामी ने कांग्रेस के वेंकटरमण गौड़ा को 2,84,620 मतों के अंतर से हराया. JD(S) की कर्नाटक इकाई के अध्यक्ष कुमारस्वामी पांच बार विधायक रह चुके हैं और हाल तक चन्नपटना विधानसभा सीट का प्रतिनिधित्व करते थे.
ऐसा कहा जाता है कि कुमारस्वामी को उम्मीद थी कि 2023 के कर्नाटक विधानसभा चुनाव में त्रिशंकु जनादेश आएगा और वह तीसरी बार ‘किंगमेकर’ या खुद ‘किंग’ बनकर उभरेंगे, लेकिन उनकी पार्टी के निराशाजनक प्रदर्शन और कांग्रेस की शानदार जीत ने उनका यह सपना तोड़ दिया.
अपनी पार्टी को बचाए रखने और राज्य में राजनीतिक रूप से प्रासंगिक बने रहने की मजबूरी के चलते कुमारस्वामी ने लोकसभा चुनाव से पहले गठबंधन बनाने के लिए एक बार फिर से भाजपा से हाथ मिला लिया.
भाजपा की योजना सफल
भाजपा नेतृत्व ने कुमारस्वामी को तीन सीट में से एक पर चुनाव लड़ने के लिए राजी किया. उन्हें उम्मीद थी कि इससे अन्य दो सीट पर उनकी पार्टी की संभावनाओं को बल मिलेगा.
ऐसा प्रतीत होता है कि यह योजना सफल रही, क्योंकि JD(S) ने जिन तीन सीट पर चुनाव लड़ा था, उनमें से दो पर जीत हासिल कर ली तथा भाजपा ने राज्य में, जहां कुल 28 निर्वाचन क्षेत्र हैं, 25 में से 17 सीट पर जीत हासिल की.
सिनेमा से प्यार
कुमारस्वामी ने अचानक ही संयोगवश राजनीति में प्रवेश किया, इसलिए उन्हें एक ‘आकस्मिक राजनीतिज्ञ’ के रूप में भी देखा जाता है. कुमारस्वामी का पहला प्यार फिल्में थीं. कन्नड़ अभिनेता डॉ. राजकुमार के प्रशंसक कुमारस्वामी कॉलेज के दिनों से ही सिनेमा की ओर आकर्षित थे. उन्होंने फिल्म निर्माण और वितरण का काम संभाला और कई सफल कन्नड़ फिल्मों का निर्माण भी किया, जिनमें उनके बेटे निखिल अभिनीत ‘जगुआर’ भी शामिल है.
वर्ष 2018 के विधानसभा चुनाव के दौरान कुमारस्वामी ने कहा था, ‘मैं किंग बनूंगा, किंगमेकर नहीं.’ कुमारस्वामी की भविष्यवाणी सही साबित हुई, क्योंकि वोक्कालिगा नेता दूसरी बार कर्नाटक के मुख्यमंत्री बने, बावजूद इसके कि उनकी पार्टी JD(S)) चुनाव में तीसरे स्थान पर रही थी. यह कांग्रेस के साथ एक गठबंधन सरकार थी.
लेकिन उनका कार्यकाल अल्पकालिक रहा, क्योंकि उनके नेतृत्व वाली अस्थिर गठबंधन सरकार 13 महीने सत्ता में रहने के बाद गिर गई. कुमारस्वामी ने इससे पहले 2006 में JD(S)-भाजपा सरकार के प्रमुख के रूप में 20 महीने तक मुख्यमंत्री के रूप में कार्य किया था.
1996 में चुनावी राजनीति में कदम रखा
राजनीतिक माहौल में पले-बढ़े कुमारस्वामी ने 1996 में कनकपुरा लोकसभा सीट से सफलतापूर्वक चुनाव लड़कर चुनावी राजनीति में कदम रखा. इसके बाद वह संसदीय और विधानसभा दोनों ही चुनाव हार गए.
वह पहली बार 2004 में विधानसभा के लिए चुने गए थे, जब चुनावों में त्रिशंकु सदन की स्थिति बनने के बाद JD(S), कांग्रेस के धरम सिंह के नेतृत्व वाली गठबंधन सरकार में शामिल हो गया था.
वर्ष 2006 में कुमारस्वामी 42 विधायकों के साथ गठबंधन से बाहर चले गए. उन्होंने गठबंधन को पार्टी के लिए खतरा बताते हुए कथित तौर पर अपने पिता की इच्छा के विरुद्ध यह कदम उठाया. इसके बाद उन्होंने भाजपा के साथ मिलकर सरकार बनाई और विधायक के रूप में अपने पहले कार्यकाल में ही मुख्यमंत्री बन गए.
किसान हितैषी कार्यक्रम
बारी-बारी से मुख्यमंत्री पद की व्यवस्था के तहत उन्होंने 20 महीने तक राज्य की कमान संभाली. जब भाजपा के मुख्यमंत्री बनने की बारी आई, तो वह सत्ता हस्तांतरण के वादे से मुकर गए और सात दिन के भीतर येदियुरप्पा सरकार को गिरा दिया.
वर्ष 2008 के विधानसभा चुनाव में भाजपा सत्ता में आई. वर्ष 2009 में कुमारस्वामी ने बैंगलोर ग्रामीण से लोकसभा चुनाव सफलतापूर्वक लड़ा. कुमारस्वामी के किसान हितैषी और ग्रामीण हितैषी कार्यक्रमों जैसे कृषि ऋण माफी और ‘ग्राम वस्तु’ परियोजना ने उन्हें मुख्यमंत्री के रूप में लोकप्रियता दिलाई.
उन्होंने इन योजनाओं के माध्यम से ग्रामीणों तक पहुंच बनाई, जिसके तहत वे गांवों में जाकर उनकी समस्याओं को समझते थे. विज्ञान विषय में स्नातक कुमारस्वामी की पत्नी अनीता पूर्व विधायक हैं.
-भारत एक्सप्रेस
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