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भारत के लिए खतरे की घंटी…! लगातार घटता जा रहा है धरती के नीचे का पानी, क्या होगा भविष्य? पढ़ें ये रिपोर्ट

उत्तर भारत में साल 2002 से लेकर 2021 तक लगभग 450 घन किलोमीटर भूजल घट गया और निकट भविष्य में जलवायु परिवर्तन के कारण इसकी मात्रा में और भी गिरावट आने का दावा एक रिपोर्ट में किया गया है.

india water problem

सांकेतिक फोटो-सोशल मीडिया

India Water Problem: गर्मी के मौसम में हर साल भारत के तमाम हिस्सों में सूखे की स्थिति देखने को मिलती है. तो वहीं देश के कई ऐसे राज्य हैं जहां पर पानी के लिए त्राहि-त्राहि मच जाता है. तो वहीं जब मॉनसून आता है तो कहीं पर इतनी बारिश हो जाती है कि भूस्खलन और बाढ़ की स्थिति से लोग त्राहिमाम कर उठते हैं तो कहीं पर बहुत ही कम मात्रा में बारिश होती है और कहीं पर न के बराबर बारिश होती है, जिससे सूखे की स्थिति बन जाती है.

तो वहीं बारिश कम होने के कारण बड़े स्तर पर लोग भूजल यानी धरती के नीचे मौजूद पानी पर निर्भर हो जाते हैं, इससे खेतों में सिंचाई आदि की भी जरूरत पूरी की जाती है. फिलहाल भारत के लोगों को डरा देने वाली एक रिपोर्ट सामने आई है, जिसमें साफ कहा गया है कि भारत में धरती के नीचे मौजूद पानी लगातार कम होता जा रहा है और इस वजह से आने वाले समय में देश के कई राज्यों की स्थिति बहुत ही खराब होने वाली है.

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भविष्य में बत्तर होने वाली है स्थिति

हैदराबाद स्थित राष्ट्रीय भूभौतिकी अनुसंधान संस्थान (NGRI) के शोधार्थियों की टीम ने दावा किया है कि आने वाले समय में और भी स्थिति भयावह होने वाली है. मानसून के दौरान कम बारिश होने और सर्दियों के दौरान तापमान बढ़ने के कारण सिंचाई के लिए पानी की मांग बढ़ेगी और इसके कारण भूजल पुनर्भरण में कमी आएगी, जिससे उत्तर भारत में पहले से ही कम हो रहे भूजल संसाधन पर और अधिक दबाव पड़ेगा.

सर्दियों में भी बढ़ा जा रहा है तापमान

शोधार्थियों ने अध्ययन में पाया कि 2022 की सर्दियों में अपेक्षाकृत गर्म मौसम रहा. इस दौरान यह पाया गया कि मानसून के दौरान बारिश कम होने से फसलों के लिए भूजल की अधिक जरुरत पड़ती है और सर्दियों में तापमान अधिक होने से मिट्टी अपेक्षाकृत शुष्क हो जाती है, जिस कारण फिर से सिंचाई करने की आवश्यकता होती है.

जलवायु परिवर्तन वजह

घटते भूजल को लेकर रिपोर्ट में जलवायु परिवर्तन एक बड़ी वजह बताई गई है. रिपोर्ट में कहा गया है कि इसके कारण मानसून के दौरान बारिश की कमी और उसके बाद सर्दियों में अपेक्षाकृत तापमान अधिक रहने से भूजल पुनर्भरण में लगभग 6-12 प्रतिशत की कमी आने की सम्भावना है. रिपोर्ट में ये भी कहा गया है कि सर्दियों के दौरान मिट्टी में नमी में कमी आना पिछले चार दशकों में काफी बढ़ गई है, जो सिंचाई की बढ़ती मांग की संभावित भूमिका का संकेत देती है. इसके अलावा अध्ययन के दौरान ये भी पाया गया है कि पूरे उत्तर भारत में 1951-2021 की अवधि के दौरान मानसून के मौसम (जून से सितंबर) में बारिश में 8.5 प्रतिशत कमी आई. इस अवधि के दौरान इस क्षेत्र में सर्दियों के मौसम में तापमान 0.3 डिग्री सेल्सियस बढ़ गया है.

जानें कितना घटा भूजल?

एक नए अध्ययन में दावा किया गया है कि उत्तर भारत में साल 2002 से लेकर 2021 तक करीब 450 घन किलोमीटर भूजल घटा है और कहा जा रहा है कि आने वाले समय में जलवायु परिवर्तन के कारण इसकी मात्रा में और भी कमी देखने को मिलेगी. इस समस्या को लेकर भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान (IIT) गांधीनगर में सिविल इंजीनियरिंग और पृथ्वी विज्ञान के ‘विक्रम साराभाई चेयर प्रोफेसर और अध्ययन’ के मुख्य लेखक विमल मिश्रा ने मीडिया को बताया कि यह भारत के सबसे बड़े जलाशय इंदिरा सागर बांध की कुल जल भंडारण मात्रा का करीब 37 गुना है.

-भारत एक्सप्रेस

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