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जलवायु परिवर्तन के कारण पृथ्वी पर पड़ रहा है बुरा असर, इतने सालों में खतरनाक बिंदु पर पहुंच जाएगा तापमान…अध्ययन में डरा देने वाला खुलासा

अध्ययन को लेकर शोधकर्ताओं ने कहा है कि एक दशक पहले पहचाने गए जलवायु टिपिंग प्वाइंट्स में से आधे से अधिक अब सक्रिय हो गए हैं.

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सांकेतिक फोटो-सोशल मीडिया

Climate Change: जलवायु परिवर्तन से होने वाले नुकसान को लेकर विशेषज्ञ लगातार दुनिया को चेता रहे हैं और लगातार शोध में ये खुलासा हो रहा है कि पृथ्वी तेजी से विनाशकारी पथ की ओर बढ़ रही है. तो वहीं मौसम में भी तेजी से बदलाव देखा जा रहा है. जब बारिश की आवश्यकता होती है तब बारिश नहीं होती तो वहीं अब पहले ही अपेक्षा गर्मी भी अधिक पड़ने लगी है. फिलहाल एक ताजा अध्ययन सामने आ रहा है जिसमें धरती की कई प्रणालियों को टिपिंग का सबसे अधिक खतरा होना बताया गया है.

पॉट्सडैम इंस्टीट्यूट फॉर क्लाइमेट इम्पैक्ट रिसर्च (पीआईके) के शोधकर्ताओं ने इसको लेकर अध्ययन किया है. यह अध्ययन नेचर कम्युनिकेशंस में प्रकाशित किया गया है. इस अध्ययन में बताया गया है कि मानवजनित जलवायु परिवर्तन से पृथ्वी की अहम प्रणालियों जैसे बर्फ की चादरें और महासागरीय परिसंचरण पैटर्न के टिपिंग तत्वों में भारी अस्थिरता आ रही है. शोध में पाया गया है कि 1.5 डिग्री से अधिक तापमान के हर दसवें हिस्से के साथ टिपिंग के खतरों में वृद्धि होती है. यदि दो डिग्री से अधिक वैश्विक तापमान बढ़ जाए तो टिपिंग के खतरे और भी तेजी से बढ़ेंगे. वर्तमान में जलवायु नीतियों के चलते दुनियाभर में इस सदी के अंत तक तापमान के लगभग 2.6 डिग्री तक बढ़ने का अनुमान है. शोधकर्ताओं का अनुमान है कि अगले 20 से 30 सालों मे पृथ्वी का तापमान टिपिंग प्वाइंट तक पहुंच जाएगा.

अध्ययन को लेकर शोधकर्ताओं ने कहा है कि एक दशक पहले पहचाने गए जलवायु टिपिंग प्वाइंट्स में से आधे से अधिक अब सक्रिय हो गए हैं. इनके सक्रिय होने से जलवायु संबंधी घटनाओं में वृद्धि होने लगी है. दुनिया के अलग-अलग हिस्सों में अचानक भारी बरसात, सूखा, भीषण गर्मी, तूफान इसी का परिणाम हैं.

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अध्ययन में बताया गया है कि जलवायु विज्ञान में टिपिंग प्वाइंट एक महत्वपूर्ण सीमा है, जिसे पार करने पर जलवायु प्रणाली में बड़े, त्वरित और अक्सर अपरिवर्तनीय परिवर्तन होते हैं. शोधकर्ताओं ने अध्ययन में कहा है कि आने वाली शताब्दियों और उससे आगे भी टिपिंग के खतरों को प्रभावी रूप से सीमित करने के लिए हमें नेट-जीरो या कुल शून्य ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जन को हासिल करना और इसे बनाए रखना होगा. इस सदी में वर्तमान नीतियों के चलते हम 2300 तक 45 फीसदी तक टिपिंग के भारी खतरों के जद में होंगे, भले ही बढ़ते तापमान को फिर से 1.5 डिग्री सेल्सियस से नीचे ही क्यों न लाया जाए.

बढ़ेगा खतरा

शोधकर्ताओं ने 1.5 डिग्री सेल्सियस से अधिक तापमान बढ़ने के कारण चार मुख्य जलवायु तत्वों में से कम से कम एक को अस्थिर करने के खतरों के प्रति आगाह किया है. अध्ययन में पाया गया है कि ग्रीनलैंड की बर्फ की चादर, पश्चिम अंटार्कटिक की बर्फ की चादर, अटलांटिक मेरिडियन ओवरटर्निंग सर्कुलेशन और अमेजन वर्षावन, ये चारों पृथ्वी की जलवायु प्रणाली की स्थिरता को नियमित करने में अहम भूमिका निभाते हैं.

-भारत एक्सप्रेस



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