दिल्ली हाईकोर्ट.
दिल्ली हाईकोर्ट ने व्यवस्था दी है कि वाणिज्यिक विवादों में जवाबी दावा संबंधी प्रतिवाद दाखिल करने के लिए ‘वाणिज्यिक न्यायालय अधिनियम’ (CCA) के तहत मुकदमे से पहले मध्यस्थता नैसर्गिक तौर पर अनिवार्य है. वाणिज्यिक विवाद से जुड़े हर मुकदमे के लिए मध्यस्थता की प्रक्रिया अनिवार्य है और जब वाणिज्यिक विवाद से जुड़े प्रतिवाद की बात आती है तो न तो मामले-दर-मामले में अंतर किया जा सकता है, न ही तत्काल राहत की बात की जा सकती है.
जस्टिस मनोज जैन की कोर्ट मामले में सुनवाई कर रही है. कोर्ट ने कहा कि मुकदमे से पहले मध्यस्थता का उद्देश्य परोपकारी है. यह प्रक्रिया किसी भी रूप में त्वरित सुनवाई को बाधित नहीं करती है. इसके विपरीत मध्यस्थता का उद्देश्य ऐसी स्थिति की कल्पना करना है, जहां इस तरह की पूर्व-संस्थागत मध्यस्थता के माध्यम से मामले का निपटारा हो जाने के बाद कोई नया मामला शुरू न न हो. इसलिए इसे निर्थक प्रयास नहीं कहा जा सकता है.
उन्होंने सबसे पहले इस बात का उल्लेख किया कि याचिका एक दिलचस्प प्रस्ताव पेश करती है. उन्होंने यह भी कहा कि अनिवार्य प्रावधान को उदारतापूर्वक व्याख्यायित करने का कोई मतलब नहीं है, क्योंकि यह विधायी जनादेश का खंडन और अवमूल्यन करेगा. इस तरह की (गलत) व्याख्या इसकी प्रकृति को अनिवार्य से वैकल्पिक की श्रेणी में ला देगा.
कोर्ट ने कहा कि उपरोक्त विमर्श के मद्देनजर यह बात स्पष्ट रूप से सामने आती है कि वाणिज्यिक विवाद से जुड़े हर मुकदमे के लिए मध्यस्थता की प्रक्रिया अनिवार्य है और जब वाणिज्यिक विवाद से जुड़े प्रतिवाद की बात आती है तो न तो मामले-दर-मामले में अंतर किया जा सकता है, न ही तत्काल राहत की बात की जा सकती है.
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-भारत एक्सप्रेस
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