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“मां… इतना पैसा कमाऊंगा कि सोचोगी रखूं कहां”, 8 साल की उम्र में गंवाया हाथ, जानें कौन हैं पैरा चैंपियन निषाद कुमार

Nishad Kumar: हाथ गंवाने के बाद जब निषाद पूरी तरह से टूट चुके थे, तब उनकी मां ने उन्हें कभी यह महसूस नहीं होने दिया कि वह दिव्यांग हो गए हैं.

पैरा चैंपियन निषाद कुमार

Nishad Kumar: मंजिल उन्हीं को मिलती है, जिनके सपनों में जान होती है. कुछ ऐसी ही शख्सियत निषाद कुमार की है, जिन्होंने देश-दुनिया में अपनी अलग पहचान बनाई है और अब सफलता की मिसाल बन गए हैं. निषाद ने पेरिस पैरालंपिक में पुरुषों की हाई जंप T-47 स्पर्धा में सिल्वर मेडल जीता. इससे पहले टोक्यो में भी उनके नाम रजत पदक था. उनके समर्पण ने उन्हें भारतीय पैरा-एथलेटिक्स में एक चमकता सितारा बना दिया है.

हाथ गंवाने के बाद मां ने बढ़ाया हौसला

इस पैरा एथलीट का मानना है कि उनकी सफलता के पीछे उनकी मां का हाथ रहा है. हाथ गंवाने के बाद जब निषाद पूरी तरह से टूट चुके थे, तब उनकी मां ने उन्हें कभी यह महसूस नहीं होने दिया कि वह दिव्यांग हो गए हैं. जब निषाद आठ साल के थे. उस समय घर में मां मवेशियों के लिए चारा काट रही थीं. निषाद अपनी मां का हाथ बटाने के लिए मशीन में चारा डालने लगें, इस दौरान मशीन में हाथ आने के कारण कट गया.

इस घटना का जिक्र करते हुए निषाद की मां ने बताया कि घटना के बाद यह सोचकर परेशान हो जाती थी कि इसका गुजारा कैसे होगा. अपने जीते जी तो इस पर कोई आंच नहीं आने देंगे, लेकिन हमारे बाद बेटे का क्या होगा. इस पर एक बार निषाद ने कहा था कि मां मेरी चिंता मत करो. इतना पैसा कमाऊंगा कि सोचोगी कि इतना पैसा रखूं कहां. बेटे ने अपनी मेहनत से वो कर दिखाया. जब पहली बार बेटे को अंतरराष्ट्रीय प्रतियोगिता के लिए दुबई जाना था तो ढाई लाख रुपये कर्ज लिया. स्थानीय लोगों की सहायता से उसे दुबई भेजा था.

पिता ने सब्जियां बेचकर बेटे के प्रशिक्षण का उठाया खर्च

निषाद ने बचपन के इस हादसे के बाद टूटकर बिखरने के बजाय एक कस्बे के सरकारी स्कूल से शुरू हुए अपने खेलों के सफर को ओलंपिक के विक्ट्री पोडियम तक पहुंचा दिया. उनका जन्म 3 अक्टूबर, 1999 को हुआ था. वे हिमाचल प्रदेश के ऊना जिले के बदायूं गांव के रहने वाले हैं. परिवार का इकलौता बेटा होने के कारण उसका हाथ कट जाना परिवार के लिए किसी सदमे से कम नहीं था.

निषाद ने अपना ध्यान खेलों की तरफ केंद्रित किया और इसके लिए गरीबी के बावजूद खेलों में उच्च स्तरीय प्रशिक्षण के लिए जमा दो कक्षा की पढ़ाई के बाद वह पंचकूला के ताऊ देवीलाल स्टेडियम में पहुंच गए. कोच नसीम अहमद ने उसकी प्रतिभा को पहचाना और उसकी खेल प्रतिभा को तराशा.

परिवार में गरीबी के हालात थे. पिता ने खेतों में सब्जियां उगाकर बेची और माता ने मवेशियों का दूध बेचा. जिससे वह बेटे के प्रशिक्षण में खर्च के लिए सहयोग दे पाए, लेकिन निषाद ने भी उन्हें निराश नहीं किया. टोक्यो पैरालंपिक में रजत पदक जीतने के साथ ही इनामों की बरसात ने आज करोड़पति बना दिया.

तिरंगे झंडे के प्रति अद्वितीय सम्मान

पेरिस में सिल्वर के लिए छलांग से पूर्व निषाद का देश के तिरंगे झंडे के प्रति अद्वितीय सम्मान का प्रमाण भी दिखा, जिसे देखकर हर देशवासी का सिर गर्व से ऊंचा होगा. जब पैरालंपिक में निषाद कुमार का हाई जंप मुकाबला शुरू होना था. वह मैदान में जैसे ही अपनी बारी के लिए बढ़े तो उन्होंने रास्ते में सिंथेटिक ट्रैक पर तीन रंग के बीच लगे स्टिकर को चस्पा देखा.

ट्रैक पर एथलीट के गुजरने पर यह स्टिकर पैरों के नीचे आ रहे थे. हालांकि वहां पर विभिन्न देशों के स्टिकर लगे हुए थे, लेकिन भारतीय होने के नाते संस्कारों का उदाहरण देते हुए निषाद कुमार ने सिंथेटिक ट्रैक पर गुजरते समय तिरंगे को दर्शा रहे स्टिकर को पैरों के नीचे आने से पहले झुककर वहां से हटा दिया. उन्होंने स्टिकर को सम्मानपूर्वक सिंथेटिक ट्रैक के एक छोर की ओर जाकर रख दिया. इस बीच पूरा मैदान में तालियों की गड़गड़ाहट शुरू हो गई.

Nishad Kumar: महत्वपूर्ण उपलब्धियां

वर्ष 2019 में उन्होंने दुबई में हुई विश्व पैरा एथलेटिक्स में 2.05 मीटर छलांग लगाकर स्वर्ण जीतने के साथ ही टोक्यो का टिकट पक्का कर लिया था. इसके बाद टोक्यो 2020 पैरालंपिक में पुरुषों की ऊंची कूद T47 में 2.06 मीटर की एशियाई रिकॉर्ड छलांग के साथ रजत पदक जीता और यूएसए के डलास वाइज के साथ पोडियम साझा किया.

वैश्विक मंच पर लगातार उनके शानदार प्रदर्शन को देखकर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी भी उनकी सराहना कई बार कर चुके हैं. उनकी प्रतिभा और हौसलों को देखकर यह कहना गलत नहीं होगा कि वो आगे भी कई बड़े मंच पर भारत के लिए मेडल जीतेंगे क्योंकि उन्हें अभी अपने करियर में लंबा सफर तय करना है.

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-भारत एक्सप्रेस

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