दिल्ली हाईकोर्ट और रोहिंग्या शरणार्थी बच्चे.
Rohingya Refugee Children: रोहिंग्या शरणार्थियों के बच्चों को दिल्ली के एमसीडी स्कूलों में दाखिला देने की मांग वाली याचिका को दिल्ली हाई कोर्ट ने खारिज कर दिया है. कोर्ट ने कहा कि यह सरकार का नीतिगत मामला है. कोर्ट इसमें दखल नहीं दे सकता है. कोर्ट ने यह भी कहा कि देश के शिक्षा के अधिकार सिर्फ देश के नागरिकों के लिए है. म्यांमार से आए रोहिंग्या शरणार्थी बच्चों को आधार कार्ड न होने के कारण एमसीडी के स्कूलो में दाखिला देने से इनकार करने के बाद यह जनहित याचिका दायर की गई है.
किसने दायर की थी याचिका?
यह याचिका सोशल ज्यूरिस्ट नामक एक गैर सरकारी संगठन की ओर से दाखिल की गई थी. दाखिल याचिका में कहा गया था कि यह आचरण इन बच्चों के लिए शिक्षा के मौलिक अधिकार का उल्लंघन करता है, जैसा कि भारत के संविधान के अनुच्छेद 14, 21 और 21-ए के साथ-साथ बच्चों के निःशुल्क और अनिवार्य शिक्षा के अधिकार अधिनियम, 2009 द्वारा गारंटीकृत है.
याचिका में क्या कहा गया
याचिका में कहा गया था कि एमसीडी स्कूल बच्चों को इस आधार पर प्रवेश देने से मना कर रहा है कि उनके पास आधार कार्ड, बैंक खाते और अन्य दस्तावेज नहीं हैं, सिवाय यूएनएचआरसी द्वारा जारी शरणार्थी कार्ड के. याची ने कहा गया था, यह ध्यान रखना आवश्यक है कि जब तक ये बच्चे भारत में रहेंगे, वे भारत के संविधान और प्रासंगिक वैधानिक कानूनों द्वारा गारंटीकृत शिक्षा के मौलिक और मानवाधिकार के हकदार हैं. इसलिए, इस अधिकार से वंचित करना उनके मौलिक और मानवाधिकारों का उल्लंघन है.
याचिका में यह भी कहा गया था कि शिक्षा निदेशालय और दिल्ली नगर निगम की यह जिम्मेदारी है कि वे यह सुनिश्चित करें कि 14 वर्ष से कम आयु के सभी छात्रों को श्री राम कॉलोनी, खजूरी चौक क्षेत्र में सरकारी या एमसीडी स्कूलों में दाखिला मिले, जहाँ ये बच्चे रहते हैं. याचिका में इस बात पर जोर दिया गया था कि इन अधिकारियों को यह गारंटी देनी चाहिए कि उनके स्कूलों में नामांकित सभी छात्रों को वे वैधानिक लाभ मिलें जिनके वे हकदार हैं.
-भारत एक्सप्रेस
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