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फसल अवशेष प्रबंधन के लिए केंद्र सरकार ने खर्च किए 3,623.45 करोड़ रुपये, पंजाब को मिला सबसे ज्यादा फंड

कृषि और किसान कल्याण मंत्रालय ने 2018 में फसल अवशेष प्रबंधन के लिए एक योजना शुरू की थी. इसका उद्देश्य फसल अवशेष प्रबंधन मशीनरी की खरीद को बढ़ावा देना और CHC स्थापित करना था.

फसल अवशेष प्रबंधन- AI जनरेटेड

केंद्र सरकार ने 2018 से दिल्ली, पंजाब, हरियाणा और उत्तर प्रदेश में फसल अवशेष प्रबंधन (Crop Residue Management) के लिए 3,623.45 करोड़ रुपये खर्च किए हैं. केंद्रीय पर्यावरण, वन और जलवायु परिवर्तन राज्य मंत्री किर्ति वर्धन सिंह (Kirti Vardhan Singh) ने लोकसभा में यह जानकारी दी. उन्होंने बताया कि इन राज्यों में सबसे अधिक 1,681.45 करोड़ रुपये पंजाब को मिले हैं.

सरकार ने इस धनराशि का उपयोग फसल अवशेष प्रबंधन के लिए मशीनरी (Machinery) पर सब्सिडी (Subsidy) देने और कस्टम हायरिंग सेंटर (CHCs) स्थापित करने में किया है. मंत्री ने कहा कि अब तक 3 लाख से अधिक मशीनें बांटी जा चुकी हैं, जिनमें 4,500 बैलर और रेक शामिल हैं. इनका उपयोग पुआल (Paddy Straw) को इकट्ठा करने और खेतों के बाहर उपयोग के लिए किया जाता है.

हरियाणा को 1,081.71 करोड़ रुपये, उत्तर प्रदेश को 763.67 करोड़ रुपये, और दिल्ली को 6.05 करोड़ रुपये मिले. इसके अलावा, भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद (ICAR) को 83.35 करोड़ रुपये दिए गए.

फसल अवशेष प्रबंधन योजना का उद्देश्य

कृषि और किसान कल्याण मंत्रालय ने 2018 में फसल अवशेष प्रबंधन के लिए एक योजना शुरू की थी. इसका उद्देश्य फसल अवशेष प्रबंधन मशीनरी की खरीद को बढ़ावा देना और CHC स्थापित करना था. 2023 में इस योजना के दिशा-निर्देशों में बदलाव किए गए. अब इस योजना के तहत मशीनरी और उपकरणों के लिए आर्थिक सहायता भी दी जा रही है.

केंद्र सरकार ने राज्य सरकारों और प्रमुख एजेंसियों के साथ मिलकर फसल अवशेष जलाने की समस्या से निपटने के लिए एक व्यापक कार्य योजना बनाई है. इसमें पंजाब, हरियाणा, यूपी, राजस्थान और दिल्ली सहित ISRO, ICAR और भारतीय कृषि अनुसंधान संस्थान (IARI) जैसे संगठन शामिल हैं.

सरकार ने खेतों में फसल अवशेष प्रबंधन के लिए जरूरी मशीनरी उपलब्ध कराई है. PUSA-44 जैसी लंबी अवधि वाली धान की किस्मों की जगह अब कम समय में तैयार होने वाली नई किस्मों को बढ़ावा दिया जा रहा है.

सुपर स्ट्रॉ मैनेजमेंट सिस्टम का उपयोग अनिवार्य

धान की कटाई के बाद पुआल को खेत में ही काटकर बिखेरने के लिए सुपर स्ट्रॉ मैनेजमेंट सिस्टम (SMS) का उपयोग अनिवार्य कर दिया गया है. इसके अलावा, IARI द्वारा विकसित बायो-डिकम्पोजर (Bio-Decomposer) के उपयोग को भी बढ़ावा दिया जा रहा है. यह पुआल को खाद में बदलने में मदद करता है. सरकार ने फसल अवशेषों के वैकल्पिक उपयोग पर भी ध्यान केंद्रित किया है.

केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड (CPCB) ने पैलेट और टॉरिफेक्शन प्लांट्स (Pelletisation and Torrefaction Plants) की स्थापना के लिए दिशानिर्देश जारी किए हैं. इन प्लांट्स में धान के पुआल को मूल्यवान उत्पादों में बदला जा सकता है. सरकार ने पैलेट प्लांट के लिए 1.4 करोड़ रुपये और टॉरिफेक्शन प्लांट के लिए 2.8 करोड़ रुपये तक की सहायता देने की घोषणा की है.

अब तक 17 प्लांट्स की स्थापना के लिए आवेदन मंजूर किए गए हैं. इनमें से 15 प्लांट्स हर साल 2.70 लाख टन पुआल का प्रसंस्करण करेंगे.

-भारत एक्सप्रेस



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