दिल्ली हाईकोर्ट
दिल्ली हाईकोर्ट ने हाल ही में दिल्ली विश्विद्यालय (डीयू) के एक सहायक प्रोफेसर डा. रतन लाल के खिलाफ दाखिल आपराधिक मामले को खारिज करने से इनकार कर दिया. उनके खिलाफ वाराणसी की ज्ञानवापी मस्जिद के परिसर में पाए जाने वाले ‘शिव लिंग‘ के बारे में एक्स (पूर्व में ट्विटर) पर एक विवादास्पद पोस्ट करने का आरोप है. वे हिंदू कालेज में इतिहास के सहायक प्रोफेसर हैं. उन्होंने अपने खिलाफ दर्ज मामले को रद्द करने की मांग की थी और याचिका दाखिल किया था.
धार्मिंक भावनाओं को ठेस पहुंचाने वाला बयान
न्यायमूर्ति चंद्र धारी सिंह ने कहा कि सहायक प्रोफेसर की टिप्पणी प्रथम दृष्टया धार्मिंक भावनाओं को ठेस पहुंचाने एवं सार्वजनिक शांति भंग करने की मंशा दिखाती है. उन्होंने कहा कि इस अदालत का प्रथम दृष्टया मानना है कि याचिकाकर्ता ने समाज के सौहार्द को बिगाड़ा है. उक्त ट्वीट/पोस्ट समाज के एक बड़े वर्ग की भावनाओं को ठेस पहुंचाने के इरादे से किया गया था. उन्होंने यह भी कहा कि अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता निरपेक्ष नहीं है. एक प्रोफेसर, शिक्षक या बुद्धिजीवी होने के नाते किसी भी व्यक्ति को इस तरह की टिप्पणी, ट्वीट या पोस्ट करने का अधिकार नहीं है.
ट्वीट पर न्यायालय ने दी सख्त प्रतिक्रिया
न्यायमूर्ति सिंह ने शिव लिंग की व्युत्पत्ति और अवधारणा का वर्णन करने के लिए ‘शिव पुराण, विदेर संहिता‘ से भी उद्धरण दिया. साथ ही उक्त शास्त्रों से कुछ श्लोकों का हवाला देते हुए कहा कि याचिकाकर्ता का कार्य और टिप्पणियां भगवान शिव/शिव लिंग के उपासकों और अपनाई जाने वाली मान्यताओं और रीति-रिवाजों के विपरीत है. शिवलिंग की तस्वीर के साथ अपमानजनक टिप्पणी के साथ ट्विटर और फेसबुक पर पोस्ट करके याचिकाकर्ता का कृत्य न केवल धारा 153ए और 295ए के संदर्भ में प्रतिनिधित्व दर्शाता है, बल्कि उसकी ओर से जानबूझकर एवं दुर्भावनापूर्ण इरादे को भी दर्शाता है.
-भारत एक्सप्रेस
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