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Mahavidya: मां महात्रिपुर सुन्दरी की साधना से होती है सभी कामनाओं की पूर्ति, इस विधि और मंत्र से करें मां कि पूजा

Mahatripur Sundari: महाविद्या समुदाय में त्रिपुरा नाम की अनेक देवियां हैं, जिनमें त्रिपुरा-भैरवी, त्रिपुरा और त्रिपुर सुंदरी विशेष रूप से उल्लेखनीय हैं.

Tripura-Sundari

मां महात्रिपुर सुन्दरी

Maa Mahatripur Sundari: माता महा त्रिपुरसुंदरी को अन्य नाम जैस- श्री विद्या, त्रिपुरा, श्री सुंदरी, राजराजेश्वरी, ललित, षोडशी, कामेश्वरी, मीनाक्षी।भैरव : कामेश्वर आदि से भी जाना जाता हैं । माता त्रिपुरी सुंदरी सभी प्रकार की कामनाओं को पूर्ण करने वाली उगते हुए सूर्य के समान हैं ।

महात्रिपुर सुन्दरी श्री कुल की विद्या है। महाविद्या समुदाय में त्रिपुरा नाम की अनेक देवियां हैं, जिनमें त्रिपुरा-भैरवी, त्रिपुरा और त्रिपुर सुंदरी विशेष रूप से उल्लेखनीय हैं। देवी त्रिपुरसुंदरी ब्रह्मस्वरूपा हैं, भुवनेश्वरी विश्वमोहिनी हैं। ये श्रीविद्या, षोडशी, ललिता, राज-राजेश्वरी, बाला पंचदशी अनेक नामों से जानी जाती हैं। त्रिपुरसुंदरी का शक्ति-संप्रदाय में असाधारण महत्त्व है। महात्रिपुर सुन्दरी देवी माहेश्वरी शाक्ति की सबसे मनोहर श्री विग्रह वाली सिद्घ देवी हैं।

साधना विधि 

श्री गणेशाय नमः कामेश्वर भैरवाय नमः

श्री गुरु ध्यान 

ऊँ श्री गुरुवे, ओमकार आदिनाथ ज्योति स्वरूप, उदयनाथ पार्वती धरती स्वरूप । सत्यनाथ ब्रहमाजी जल स्वरूप । सन्तोषनाथ विष्णुजी खडगखाण्डा तेज स्वरूप, अचल अचम्भेनाथ शेष वायु स्वरूप । गजबलि गजकंथडानाथ गणेषजी गज हसित स्वरूप । ज्ञानपारखी सिद्ध चौरंगीनाथ चन्द्रमा अठारह हजार वनस्पति स्वरूप, मायास्वरूपी रूपी दादा मत्स्येन्द्रनाथ माया मत्स्यस्वरूपी । घटे पिण्डे नवनिरन्तरे रक्षा करन्ते श्री शम्भुजति गुरु गोरक्षनाथ बाल स्वरूप, नवनाथ स्वरूप मंत्र सम्पूर्ण भया, अनन्त कोटि नाथजी गुरुजी को आदेष ! आदेष !!

आसन 

‘सुखपूर्वक स्थिरता से बहुत काल तक बैठने का नाम आसन है । आसन अनेकों प्रकार के होते है । इनमे से आत्मसंयम चा‍हने वाले पुरूष के लिए सिद्धासन, पद्मासन, और स्वास्तिकासन – ये तीन उपयोगी माने गये है । इनमे से कोई आसन हो, परंतु मेरूदण्ड, मस्तक और ग्रीवा को सीधा अवश्ये रखना चाहिये और दृष्टि नासिकाग्र पर अथवा भृकुटी में रखनी चाहिये । आंखे बंद कर बैठे ‍है । जिस आसन पर सुखपूर्वक दीर्घकाल तक बैठ सके, वही उत्तम आसन है ।

आसन मंत्र 

सत नमो आदेश । गुरूजी को आदेश । ऊँ गुरूजी ।
ऊँ गुरूजी मन मारू मैदा करू, करू चकनाचूर । पांच महेश्वर आज्ञा करे तो बेठू आसन पूर ।
श्री नाथजी गुरूजी को आदेश ।

 धूप लगाने का मन्त्र 

सत नमो आदेश । गुरूजी को आदेश । ऊँ गुरूजी । धूप कीजे, धूपीया कीजे वासना कीजे ।
जहां धूप तहां वास जहां वास तहां देव जहां देव तहां गुरूदेव जहां गुरूदेव तहां पूजा ।
अलख निरंजन ओर नही दूजा निरंजन धूप भया प्रकाशा । प्रात: धूप-संध्या धूप त्रिकाल धूप भया संजोग ।
गौ घृत गुग्गल वास, तृप्त हो श्री शम्भुजती गुरू गोरक्षनाथ ।
इतना धूप मन्त्र सम्पूर्ण भया नाथजी गुरू जी को आदेश ।

दीपक जलाने का मन्त्र 

सत नमो आदेश । गुरूजी को आदेश ।
ऊँ गुरूजी । जोत जोत महाजोत, सकल जोत जगाय, तूमको पूजे सकल संसार ज्योत माता ईश्वरी ।
तू मेरी धर्म की माता मैं तेरा धर्म का पूत ऊँ ज्योति पुरूषाय विद्येह महाज्योति पुरूषाय धीमहि तन्नो ज्योति निरंजन प्रचोदयात् ॥
अत: धूप प्रज्वलित करें ।

मां त्रिपुर सुंदरी ध्यान मंत्र 

बालार्कायुंत तेजसं त्रिनयना रक्ताम्ब रोल्लासिनों ।
नानालंक ति राजमानवपुशं बोलडुराट शेखराम् ।।
हस्तैरिक्षुधनु: सृणिं सुमशरं पाशं मुदा विभृती ।
श्रीचक्र स्थित सुंदरीं त्रिजगता माधारभूता स्मरेत् ।।

मां त्रिपुर सुंदरी आवाहन मंत्र 

ऊं त्रिपुर सुंदरी पार्वती देवी मम गृहे आगच्छ आवहयामि स्थापयामि ।

आवाहन मंत्र के बाद देवी को सुपारी में प्रतिष्ठित करें । इसे तिलक करें और धूप-दीप आदि पूजन सामग्रियों के साथ पंचोपचार विधि से पूजन पूर्ण करें अब कमल गट्टे की माला लेकर करीब 108 बार नीचे लिखे मंत्र का जप करें ।

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जप मंत्र 

ऊं ह्रीं क ऐ ई ल ह्रीं ह स क ल ह्रीं स क ह ल ह्रीं ।

विसर्जन मंत्रं 

जप और पूजन के बाद में अपने हाथ में चावल, फूल लेकर देवी भगवती त्रिपुर सुंदरी को इस मंत्र का उच्चारण करते हुए माता का विसर्जन करना चाहिए ।

गच्छ गच्छ सुरश्रेष्ठे स्वस्थानं परमेश्वरि त्रिपुर सुंदरी ।
पूजाराधनकाले च पुनरागमनाय च ।।



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