पंजाब सीएम भगवंत मान और दिल्ली के सीएम अरविंद केजरीवाल
जालंधर आरक्षित संसदीय सीट के उपचुनाव के नतीजों ने पारंपरिक दलों को सबक सिखाया है. चुनाव के नतीजों ने पारंपरिक पार्टियों के कट्टर ढांचों को भी ध्वस्त कर दिया और एक समतावादी पंजाब की ओर इशारा किया. पंजाब के लोगों ने दिखा दिया है कि सिखों का प्रतिनिधित्व करने वाली एकमात्र पार्टी होने का दावा करने वाले शिरोमणि अकाली दल की धर्म आधारित राजनीति राज्य के शांतिप्रिय धर्मनिरपेक्ष लोगों के साथ ज्यादा मेल नहीं खाती है. कांग्रेस की हार का श्रेय कैप्टन अमरिंदर सिंह के शासन के पिछले खुले तौर पर भ्रष्ट और लापरवाह रवैये के अलावा इसकी संदिग्ध धर्मनिरपेक्ष साख को भी दिया जा सकता है.
शिरोमणि अकाली दल और बहुजन समाज पार्टी गठबंधन, जो एक प्री पोल गठबंधन था, वह दलित बहुल जालंधर की आबादी को जाट बहुल अकाली दल के उम्मीदवार डॉ. सुखमिंदर सुखी के पक्ष में माहौल बनाने में नाकाम रहा. गुरु ग्रंथ साहिब की बेअदबी के मामले ने न केवल अकाली दल का सफाया किया, बल्कि बसपा को भी अपराध में भागीदार बना दिया.
पंजाब में ऐतिहासिक जीत दर्ज करने के बाद चार महीनों के भीतर ही आम आदमी पार्टी संगरूर का उपचुनाव हार गई थी. चुनाव के ठीक पहले, सिद्धू मूसेवाला की हत्या ने चुनावी समीकरण को आम आदमी पार्टी के खिलाफ कर दिया था. इस चुनाव में सिमरनजीत सिंह मान की जीत हुई, जिनका समर्थन करने का वादा मूसेवाला ने किया था. हालांकि, अब आम आदमी पार्टी अपनी खोई हुई जमीन वापस पाने की दिशा में मजबूती से कदम बढ़ाए हैं. इसका मतलब यह भी है कि सिद्धू मूसेवाला के पिता बलकौर सिंह द्वारा चुनाव प्रचार करने से समय बीतने के साथ लोगों की हमदर्दी खोती जा रही है.
आप को क्यों मिल रहा जनता का साथ?
भगवंत मान सरकार की भ्रष्ट्राचार के खिलाफ नीति भी लोगों को पसंद आ रही है. पंजाब में एक कैबिनेट मंत्री और एक विधायक भ्रष्ट्राचार के मामले गिरफ्तार हुए थे. ट्रक वालों से रंगदारी मांगने का ऑडियो सामने आने के बाद एक और कैबिनेट मंत्री को हटाया गया. बिजली आपूर्ति के लिए जीरो-बिल पॉलिसी – निश्चित रूप से खराब नीति है क्योंकि पंजाब पहले से ही गंभीर रूप से कर्ज में डूबा हुआ है – फिर भी इसने पार्टी को वोट दिलाया है.
-भारत एक्सप्रेस