हिंदू कैलेंडर के अनुसार होली इस बार 25 मार्च को मनाई जाएगी. देश के अलग-अलग हिस्सों में विभिन्न परंपराओं के साथ रंगों का यह त्योहार मनाया जाता है. कहीं एक दिन की होली होती है तो किसी शहर में यह दो से तीन दिनों तक चलती है, वहीं कुछ शहर में होली के दिन तो इसे मनाया ही जाता है, लेकिन कुछ दिनों बाद इसे बहुत भव्य तरीके से मनाया जाता है, जिसे रंग पंचमी कहा जाता है.
होली के त्योहार को देखते हुए हम आपको झारखंड के संथाली आदिवासी समुदाय के लोगों की परंपराओं से रूबरू कराने जा रहे हैं, जिसे जानकार आप हैरान हो जाएंगे.
प्रकृति की पूजा का त्योहार
झारखंड के संथाली आदिवासी समुदाय के लोगों में पानी और फूलों की होली लगभग 3 दिन पहले से ही शुरू हो जाती है. संथाली समाज इसे फूल पर्व के रूप में मनाता है. होली के पर्व पर इस समुदाय के बीच रंग डालने से परहेज किया जाता है. इसे बाहा पर्व के नाम से जाना जाता है, जिसका अर्थ होता है फूल.
इस पर्व को मनाने का सिलसिला होली के पहले ही शुरू हो जाता है. यह प्रकृति और मानव के संबंधों से जुड़ा एक त्योहार है. इस दौरान प्रकृति पूजा का विशेष आयोजन होता है. अलग-अलग गांवों में ये पर्व अलग-अलग तिथियों पर शुरू होता है. इस पर्व के दिन संथाल समुदाय के लोग तीर-धनुष की पूजा करते हैं. ढोल-नगाड़ों की थाप पर जमकर नाचते हैं और एक-दूसरे पर पानी फेंकते हैं.
खबरों के अनुसार, बाहा पर्व में आदिवासी समुदाय के लोग अपने सृष्टिकर्ता और प्रकृति के देवता मरांगबुरू, जाहेरआयो, लिटा मोणें व तुरूईको के प्रति अपनी श्रद्धा और आभार प्रकट करते हैं. ऐसी मान्यता है कि समुदाय के लोग प्राकृतिक तत्वों के साथ एक संवाद में रहते हैं, जिसकी वजह से उनके जीवन में संतुलन और समृद्धि होती है.
पानी से खेलने का रिवाज
बाहा (फूल) होली के दिन एक दूसरे पर पानी डालने का नियम है. जिस रिश्ते में मजाक चलता है, पानी की होली उसी के साथ खेली जा सकती है. पर्व को लेकर ऐसी जानकारी भी है कि पानी के अलावा अगर किसी युवक ने समाज की किसी अविवाहित लड़की पर रंग डाल दिया तो उसे या तो लड़की से शादी करनी पड़ती है या भारी जुर्माना देना होता है. अगर लड़की की तरफ से शादी का प्रस्ताव मंजूर नहीं होता है तो संथाल समाज युवक की सारी संपत्ति लड़की के नाम करने की सजा का फैसला भी सुना सकता है.
-भारत एक्सप्रेस