Bharat Express DD Free Dish

कुतुब मीनार के 1,600 साल पुराने लोहे के पिलर में आज तक जंग क्यों नहीं लगा? वैज्ञानिकों ने बताई ये वजह

दिल्ली के कुतुब मीनार परिसर में स्थित एक लौह स्तंभ ने वैज्ञानिकों को लंबे समय से आकर्षित किया है, क्योंकि यह बिना जंग लगे 1,600 सालों से अधिक समय से खड़ा है. 7.2 मीटर ऊंचा और छह टन वजनी यह लौह स्तंभ कुतुब मीनार परिसर से भी पुराना है, जिसमें यह स्थित है.

QUTUB MINAR IRON PILLAR

कुतुब मीनार स्थित लौह स्तंभ. (फोटो: X @sagarsamrat)

Qutub Minar Iron Pillar: यूनेस्को की सूची में शामिल दिल्ली के कुतुब मीनार परिसर में स्थित एक लौह स्तंभ ने वैज्ञानिकों को लंबे समय से आकर्षित किया है, क्योंकि यह बिना जंग लगे 1,600 सालों से अधिक समय से खड़ा है. 7.2 मीटर ऊंचा और छह टन वजनी यह लौह स्तंभ कुतुब मीनार परिसर से भी पुराना है, जिसमें यह स्थित है.

भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण (ASI) के अनुसार, गुप्त साम्राज्य के चंद्रगुप्त विक्रमादित्य को समर्पित शिलालेखों वाला लौह स्तंभ अब भी अपने पुराने हाल में वैसे ही है. आमतौर पर, नमी के संपर्क में आने वाले लोहे और लोहे के मिश्र धातु के ढांचे समय के साथ ऑक्सीकरण करते हैं, जिससे जंग की परत बन जाती है, जब तक कि उन्हें विशेष पेंट की परतों से सुरक्षित न किया जाए. लेकिन अपने लंबे इतिहास के बावजूद, यह लोहे का पिलर अपने प्राचीन स्थिति में बना हुआ है.

आखिर इसे जंग क्यों नहीं खाता?

भारत और विदेश के कई वैज्ञानिकों ने 1912 में इस रहस्य की जांच शुरू की. रुड़की इंजीनियरिंग कॉलेज के मरे थॉम्पसन और स्कूल ऑफ माइंस के पर्सी ने इसकी संरचना का रासायनिक विश्लेषण किया और पाया कि यह 7.66 विशिष्ट गुरुत्व वाला गढ़ा लोहा (Wrought Iron) था.

हालांकि, 2003 तक भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान (IIT)-कानपुर के शोधकर्ताओं द्वारा किए गए एक अध्ययन से संरचना के पीछे के वास्तविक इंजीनियरिंग रहस्य का पता नहीं चल पाया था.

अध्ययन के निष्कर्षों से पता चला कि स्तंभ मुख्य रूप से गढ़े हुए लोहे से बना है, जिसमें फास्फोरस की मात्रा अधिक (लगभग एक प्रतिशत) है. इसके अतिरिक्त, पिलर के ऊपर लोहे, ऑक्सीजन और हाइड्रोजन के यौगिक “मिसावाइट” की एक पतली परत भी पाई गई.


ये भी पढ़ें: 12 घंटे चल कर पहुंच गए श्रद्धांजलि देने, हाथियों का हैरान करने देने वाल कारनामा


रिपोर्ट में बताया गया है कि दिल्ली के इस पिलर के लोहे की सूक्ष्म संरचना और संरचनागत विषमताएं अपने ऊपर बनने वाली सुरक्षात्मक परत पर कोई प्रभाव नहीं डालती हैं. इसका असल कारण लौह स्तंभ के लोहे में फास्फोरस की उच्च मात्रा होने के कारण यह उत्कृष्ट जंग के खिलाफ भी अवश्यक प्रतिरोध प्रदान करता है.

आधुनिक लोहे के विपरीत, पिलर की संरचना में सल्फर और मैग्नीशियम की कमी है. प्राचीन कारीगरों ने लोहे के स्तंभ का निर्माण करने के लिए “फोर्ज-वेल्डिंग” नामक तकनीक का उपयोग किया था. इस तकनीक में, लोहे को गर्म किया जाता है और हथौड़ा मारा जाता है, जिससे उच्च फास्फोरस की मात्रा बरकरार रहती है. ऐसी विधि अब देखने को नहीं मिलती है.

रिपोर्ट के लेखक और आर्कियो मेटालर्जिस्ट आर. बालसुब्रमण्यम ने कहा कि इस अपारंपरिक विधि ने पिलर को इतनी मजबूती प्रदान की है कि वह सदियों तक कायम रहा है.

800 साल पुराना है कुतुब मीनार

कुतुब मीनार का निर्माण 1199 में कुतुब अल-दीन ऐबक द्वारा शुरू हुआ था और उसके उत्तराधिकारी शम्सुद्दीन इल्तुतमिश ने 1211 और 1503 के बीच इसके निर्माण को अंतिम रूप से पूरा करवाया. वहीं ऐसा माना जाता है कि परिसर से पहले का लौह स्तंभ, लगभग 402 ई. में चंद्रगुप्त द्वितीय द्वारा बनवाया गया था.


ये भी पढ़ें: जब एक हाथी को भीड़ के सामने दे दी गई थी फांसी, अमेरिका का ये काला इतिहास आपको झकझोर देगा


-भारत एक्सप्रेस



इस तरह की अन्य खबरें पढ़ने के लिए भारत एक्सप्रेस न्यूज़ ऐप डाउनलोड करें.

Also Read