Bharat Express

महापौर नहीं स्थाई समिति पर नजर लगी है भाजपा की!

आज भले ही हर और चर्चा हो रही है कि दिल्ली नगर निगम में महापौर आम आदमी पार्टी का बनेगा या भाजपा का. लेकिन असली लड़ाई महापौर नहीं बल्कि स्थाई समिति पर कब्जे की है. क्योंकि नगर निगम में तमाम वित्तीय फैसले इसी समिति से मंजूर होते हैं. ऐसे में जो यहां जीत हासिल करेगा, वही निगम का असली मालिक बनेगा.

UP Politics

प्रतीकात्मक तस्वीर

दिल्ली नगर निगम चुनाव में भाजपा का किला ध्वस्त करने के बाद “आप” के रणनीतिकार महापौर चुनाव में जीत की स्थिति के बावजूद भाजपा को कठघरे में खड़ा करने में जुटे हैं. संख्या गणित में भाजपा कहीं भी जीतती नजर नहीं आ रही है. मगर फिर भी “आप” यह दावा कर रही है कि भाजपा तोड़फोड़ कर अपना महापौर बनाने की कवायद में जुटी है. हालांकि भाजपा की रणनीति महापौर का पद नहीं बल्कि स्थाई समिति पर कब्ज़ा है. क्योंकि निगम की सत्ता की चाबी इसी समिति के पास रहती है.

क्या है संख्या गणित

नगर निगम में जीतने वाली आम आदमी पार्टी के खाते में 134 पार्षद हैं. इसके अलावा तीन राज्यसभा सदस्य और विधानसभा से नामित 14 में से 13 विधायक भी उसी के हैं. जिससे उनका संख्या बल 150 हो जाता है. जबकि भाजपा 104 सीटों पर जीतने के बाद अपने एक बागी विजेता गजेंद्र दराल को साथ लेकर 105 पार्षदों वाली पार्टी बन गई है. महापौर चुनाव में उसके सात सांसद और एक विधायक भी वोट डालेंगे. जिससे उनकी संख्या 113 ही होती है. इसके अलावा नौ पार्षद कांग्रेस से और दो निर्दलीय भी है. यदि भाजपा को इनका समर्थन मिल भी जाता है तो भी आंकड़ा 124 ही रह जाता है. ऐसे में भाजपा का महापौर बनना खयाली पुलाव से ज्यादा कुछ नहीं है.

भाजपा का दावा आप में हो रही बगावत

दिल्ली भाजपा की माने तो “आप” में बगावत हो रखी है. यही वजह है कि पार्टी के अधिकृत उम्मीदवार के तौर पर शैली ओबराय और आले मोहम्मद को महापौर और उप महापौर पद पर नामांकन कराने के बाद “आप” को दो अन्य पार्षदों आशा ठाकुर और जलज कुमार का भी इन्हीं पदों के लिए नामांकन कराना पड़ा. उनमें बगावत होने की स्थिति में भाजपा को फायदा मिल सकता है. लेकिन भाजपा नहीं चाहती कि इस बार महापौर का पद उनके खाते में जाए. क्योंकि भाजपा महापौर के पद को कांटों भरा ताज मान रही है.

स्थाई समिति है लक्ष्य

हालांकि महापौर नगर निगम में सत्तारूढ़ दल का चेहरा होता है. लेकिन निगम के तमाम बड़े वित्तीय फैसले लेने का अधिकार स्थाई समिति के पास होता है. ऐसे में स्थाई समिति पर कब्जे का मतलब है कि नगर निगम के ताले की चाबी हाथ लगना. इस समिति के कुल 18 सदस्यों में से छह सदस्य निगम सदन से तो एक-एक सदस्य सभी 12 निगम ज़ोन से चुने जाते हैं. संख्या बल के हिसाब से निगम सदन से “आप” के तीन और भाजपा के दो सदस्यों की जीत निश्चित है. हालाँकि “आप” ने चार सीटो पर उम्मीदवार उतारे हैं तो भाजपा ने तीन पर. भाजपा तीनों सीट जीतती है तो स्थिति बेहद दिलचस्प हो सकती है.

एल्डरमैन पलटेंगे पासा ?

निगम चुनाव परिणामों की बात करें तो शाहदरा उत्तरी, शाहदरा दक्षिणी, केशव पुरम और नजफगढ़ जोन में भाजपा का बहुमत है. लिहाजा यहां अध्यक्ष और स्थाई समिति अध्यक्ष भाजपा के ही होंगे. जबकि आठ जोन में भाजपा और “आप” में मुकाबला होना है. भाजपा यदि इनमें से तीन जोन में जीत हासिल कर लेती है तो पासा पलट सकता है. इसका सारा दारोमदार उप राज्यपाल द्वारा नियुक्त किए जाने वाले 10 एल्डरमैनों पर टिका है. यदि यह एल्डरमैन सिविल लाइन्स, नरेला और मध्य ज़ोन में नियुक्त किए गए तो भाजपा यहां भी जीत हासिल कर लेगी.

Also Read