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राज्यों ने पुलिस आधुनिकीकरण का 71 फीसदी पैसा खर्च ही नहीं किया

केंद्रीय गृह राज्य मंत्री नित्यानंद राय द्वारा संसद में दी गई जानकारी में सबसे चौंकाने वाली स्थिति दिल्ली की है.

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प्रतीकात्मक तस्वीर

आज जब अपराधी नई तकनीक और शातिर तरीकों से अपराध को अंजाम दे रहे हैं तो भी कई राज्यों की सरकारें अपनी मूल व्यवस्था को ही दुरुस्त करने में लापरवाही बरत रही हैं. केंद्र सरकार ने बीते तीन वित्त वर्ष में सभी राज्यों को पुलिस के आधुनिकीकरण के लिए सहायता के तौर पर 1042 करोड रुपए की राशि दी. लेकिन उसमे से करीब 742 करोड़ रुपए खर्च ही नहीं किए गए हैं. यही वजह है कि चालू वित्त वर्ष में केंद्र ने किसी भी राज्य को सहायता राशि उपलब्ध नहीं कराई है.

देश के कई राज्यों की सरकारें अपराधों पर रोकथाम लगाने के लिए पुलिस बलों को बेसिक सुविधाएं उपलब्ध कराने तक में गंभीर नहीं है. यही वजह है कि केंद्र ने देश के किसी भी राज्य को पुलिस बलों के आधुनिकीकरण सहित कई महत्वपूर्ण कार्यों के लिए वर्तमान वित्त वर्ष में कोई सहायता राशि उपलब्ध नहीं कराई है. क्योंकि यह राज्य बीते वित्त वर्ष का बकाया करीब 742 करोड़ रुपए खर्च ही नहीं कर पाए हैं. जबकि कई राज्यों में मौजूद हजारों थाने ऐसे हैं जहां वाहन, टेलीफोन, वायरलेस, मोबाइल या सीसीटीवी तक की सुविधा उपलब्ध नहीं थी. हैरानी की बात यह है कि इनमें राजधानी दिल्ली के भी छह ऐसे थाने शामिल रहे हैं, जिनमें आला अधिकारी वायरलेस या मोबाइल तक की सुविधा उपलब्ध नहीं करा पाए.

थानों में फोन और मोबाइल तक नहीं

केंद्र सरकार द्वारा पेश आंकड़ों के मुताबिक देश के सभी 36 राज्यों और संघ शासित प्रदेशों में करीब 17233 पुलिस थाने हैं. लेकिन इनमें से 11 राज्य ऐसे भी हैं, जिनकी सरकारें 233 पुलिस थानों में एक भी वाहन तक उपलब्ध नहीं करा पाई. उत्तर प्रदेश में ऐसे थानों की संख्या 75, आंध्र प्रदेश में 65, झारखण्ड में 47, हिमाचल प्रदेश में 10, मेघालय और मणिपुर में नौ-नौ, पंजाब में पांच, ओडिशा और अरुणाचल प्रदेश में चार-चार, असम में तीन और उत्तराखंड में दो बताई गई है.

नौ सौ थानों में नहीं कोई फोन

आज जब देश में 5जी मोबाइल सेवा शुरू हो रही है तो भी देश में नौ सौ ऐसे थाने सामने आए हैं जहां की राज्य सरकार वहां टेलीफोन तक नहीं लगवा पाई. हैरानी की बात है कि नक्सल प्रभावित झारखंड के कुल 564 में से 211 पुलिस थानों में एक भी टेलीफोन नहीं लगा. असम में ऐसे थानों की संख्या 141, अरुणाचल प्रदेश में 77, उत्तर प्रदेश में 75, पंजाब में 67, मणिपुर में 64, मेघालय में 44, नागालैंड में 36, आंध्र प्रदेश में 34, छत्तीसगढ़ में 28, मिजोरम में 26, त्रिपुरा में दस और ओडिशा में तीन बताई गई है. सबसे ज्यादा हैरान कर देने वाला आंकड़ा जम्मू-कश्मीर का है. यहां के 241 पुलिस थानों में से 70 में टेलीफोन उपलब्ध नहीं कराया गया.

वायरलेस या मोबाइल भी नहीं

देश के दस राज्य और संघ शासित प्रदेश तो ऐसे हैं जिनमें ऐसे थाने भी मौजूद हैं, जिनमें वायरलेस या मोबाइल तक की सुविधा उपलब्ध नहीं है. केंद्रीय गृह राज्य मंत्री नित्यानंद राय द्वारा संसद में दी गई जानकारी में सबसे चौंकाने वाली स्थिति दिल्ली की है. उनके द्वारा दिए गए आंकड़ों के अनुसार देश की राजधानी दिल्ली के 209 में से छह पुलिस थाने ऐसे मिले जहां वायरलेस या मोबाइल तक की सुविधा उपलब्ध नहीं थी. झारखण्ड में ऐसे थानों की संख्या 31 और पंजाब में 28 थी. जबकि यह दोनों ही राज्य नक्सलियों और आतंकियों के निशाने पर रहते हैं.

करीब तीस फीसदी थानों में सीसीटीवी भी नहीं

न्यायालय के आदेश के बावजूद राज्य सरकारों की उदासीनता का आलम यह है कि देश के 5396 पुलिस थानों में सीसीटीवी तक नहीं लगवाए गए. राजस्थान में तो 894 थानों में से महज एक में ही सीसीटीवी लगवाया गया. जम्मू-कश्मीर में भी 241 में से महज 51 पुलिस थानों में ही सीसीटीवी लगवाए गए. महाराष्ट्र में बिना सीसीटीवी वाले थानों की संख्या करीब 54 फीसदी, आंध्र प्रदेश 40 फीसदी से ज्यादा, कर्नाटक के करीब 40 फीसदी, तमिलनाडु में 38 फीसदी थी. आंकड़ों के अनुसार अंतर्राष्ट्रीय पर्यटन स्थल के तौर पर मशहूर गोवा भी नागरिक अधिकारों के प्रति उदासीन राज्यों में शामिल है. यहां भी 43 से 21 पुलिस थानों में सीसीटीवी नहीं लगवाए गए.

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