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सोशल मीडिया की लत पर नियंत्रण ज़रूरी

Social Media Addiction: आजकल का युवा जिस कदर सोशल मीडिया के साथ घंटों बिताता है उसे लेकर भी मां-बाप में चिंता बढ़ती जाती है. पिछले दिनों आपने सोशल मीडिया पर होली के उपलक्ष्य में ऐसे कई वायरल वीडियो देखे होंगे जहां लड़के लड़कियां खुलेआम ऐसी हरकतें करते दिखाई दिए.

Social Media Addiction

सोशल मीडिया पर नियंत्रण जरूरी.

Social Media Addiction: कुछ समय पहले तक एक आम धारणा थी कि जब भी कभी घर की बेटी समझदार हो जाए तो उसके विवाह के लिये विचार शुरू हो जाता था. उसी तरह यदि घर का बेटा बिगड़ने लग जाए तो उसे ठीक करने की मंशा से भी उसके विवाह के बारे में सोचा जाता था. परंतु आजकल के दौर में ऐसा नहीं है. आजकल का युवा जिस कदर सोशल मीडिया के साथ घंटों बिताता है उसे लेकर भी मां-बाप में चिंता बढ़ती जाती है. पिछले दिनों आपने सोशल मीडिया पर होली के उपलक्ष्य में ऐसे कई वायरल वीडियो देखे होंगे जहां लड़के लड़कियां खुलेआम ऐसी हरकतें करते दिखाई दिए कि सभी शर्मसार हुए. आख़िर इस समस्या का क्या कारण है और इससे कैसे निपटा जाए?

दिल्ली मेट्रो में दो लड़कियों द्वारा अश्लील वीडियो रील बनाने को लेकर काफ़ी बवाल मचा. जैसे ही इस वीडियो को लेकर दिल्ली वालों ने मेट्रो प्रशासन से सवाल पूछे तो दिल्ली मेट्रो ने इसे ‘डीप फ़ेक’ कह कर इससे पल्ला झाड़ने का प्रयास किया. परंतु जब कुछ लोगों ने इसकी जांच की तो यह वीडियो सही पाया गया और वीडियो में देखी गई लड़कियों ने भी इसे स्वीकारा.यह लड़कियां यहीं नहीं रुकीं उन्होंने दिल्ली से सटे नोएडा में एक स्कूटी पर बैठ ऐसा ही एक और अश्लील वीडियो बना डाला. वीडियो सामने आने के बाद नोएडा पुलिस ने कार्रवाई करते हुए इन लोगों का 33 हजार रुपए का चालान भी काटा. परंतु क्या सिर्फ़ चालान ही इस समस्या का हल है?

वीडियो बनाकर आखिर क्या हासिल होगा?

ऐसा देखा गया है कि न सिर्फ़ ऐसे अश्लील वीडियो बनते हैं बल्कि ऐसे अनेकों अन्य वीडियो भी बनाए जाते हैं जहां युवा ख़तरनाक स्टंट करते हुए दिखाई देते हैं. कभी-कभी तो ऐसे वीडियो जान लेवा भी साबित होते हैं. परन्तु क्या किसी ने सोचा है कि ये युवा इतने बेलगाम क्यों होते जा रहे हैं? सोशल मीडिया पर ऐसे वीडियो डाल कर आख़िर वो क्या हासिल करना चाहते हैं? ऐसी हरकतें कर वे कुछ समय तक तो सोशल मीडिया पर प्रसिद्ध अवश्य हो जाएंगे, पर उसके बाद क्या? क्या इस प्रसिद्धि से उन्हें कुछ आर्थिक लाभ होगा? क्या इस प्रसिद्धि का उनकी शैक्षिक योग्यता पर अच्छा असर पड़ेगा? क्या ऐसा करने से उनका मान-सम्मान बढ़ेगा? इन सभी सवालों का उत्तर ‘नहीं’ ही है. तो फिर ये प्रसिद्धि या ऐसी हरकतें किस काम की?

मोबाइल से निकलकर परिवार को समय देना जरूरी

वहीं यदि इन युवकों के नज़रिए से देखा जाए तो इन हरकतों के पीछे न सिर्फ़ सही संगत की कमी है बल्कि उससे भी ज़्यादा रोज़गार की कमी है. यदि इन युवकों को समय रहते उनकी योग्यता के मुताबिक़ सही रोज़गार मिल जाते तो शायद ऐसे दृश्य देखने को न मिलते. जिस तरह मोबाइल फ़ोन के ज़रिये सोशल मीडिया ने हर घर में अपनी जगह बना ली है, ऐसे क्रियाकलापों से छुटकारा पाना असंभव होता जा रहा है. बच्चा हो, युवा हो या घर का कोई बड़ा सदस्य जिसे देखो उसकी गर्दन झुकी ही रहती है. ऐसे में यह कहना ग़लत नहीं होगा कि आज के दौर में वही सर उठा कर रह सकता है जिसके पास स्मार्ट फ़ोन नहीं है. यह तो हुई मज़ाक़ की बात. परंतु क्या वास्तव में इस समस्या से छुटकारा पाया जा सकता है? ऐसे कई छोटे और सरल उपचार हैं जिससे इस समस्या से निदान पाया जा सकता है.

सबसे पहले तो स्क्रीन टाइम पर राशन लगाना ज़रूरी है. क्या आपने कभी सोचा है कि दिन के 24 घंटों में आप कितना समय अपने मोबाइल फ़ोन या कंप्यूटर पर लगाते हैं? क्या आप अपने परिवार, समाज व सहकर्मियों के साथ उसका कुछ हिस्सा भी बिताते हैं? आज के दौर में मोबाइल फ़ोन और सोशल मीडिया ही हैं जो हमें अपने समाज से दूर कर अराजक बना रहे हैं. यदि हम अपने परिवारों में एक बात निश्चित कर लें कि दिन के 24 घंटों में एक निर्धारित समय ऐसा हो जब परिवार का हर सदस्य अपना-अपना मोबाइल छोड़ एक दूसरे से बात करे, साथ बैठ कर भोजन या भजन करे तो इस समस्या का अंत आसानी से हो जाएगा.

रेस्टाॅरेंट वाला यह फाॅर्मूला काफी कारगर

एक बार कुछ मित्रों ने मिलने का प्लान बनाया. एक महंगे से रेस्टोरेंट में मिलना तय हुआ. सभी मित्र अपने-अपने कार्यक्षेत्रों में काफ़ी प्रसिद्ध और संपन्न थे. सभी के हाथ में महंगे मोबाइल फ़ोन भी थे. जैसे ही सभी मित्र इकट्ठा हुए तो जिस मित्र ने इस पार्टी का आयोजन किया उसने खड़े हो कर एक घोषणा की. उसने सभी मित्रों से कहा कि आज की पार्टी हमेशा की तरह नहीं है. जैसा कि हम सभी मित्र हमेशा करते हैं कि रेस्टोरेंट के बिल का भुगतान मिल-बांट कर करते हैं, आज ऐसा नहीं होगा. सभी ने पूछा तो फिर आज पार्टी कौन दे रहा है? इससे पहले की उत्तर मिलता आयोजक ने टेबल के बीचों बीच रखी एक टोकरी की ओर इशारा किया और सभी से अपना-अपना फ़ोन उसमें रखने को कहा. फिर वो बोला कि यह समय हम सभी एक दूसरे के साथ बिताएं और अपने फ़ोन को भी आराम करने दें. फ़ोन की घंटी बजने पर, जो भी व्यक्ति सबसे पहले इस टोकरी में से अपना फ़ोन उठाएगा वो ही सबका बिल भरेगा.

इस अटपटी शर्त को सभी ने माना. बस फिर क्या था भले ही कइयों के फ़ोन की घंटी बजी लेकिन जितनी भी देर पार्टी चली किसी ने भी फ़ोन नहीं उठाया. अंत में हमेशा की तरह बिल सभी के बीच बराबर बटा और सभी मित्र कुछ पल के लिये ही सही परंतु काफ़ी ताज़ा महसूस करने लगे. यह तो एक उदाहरण है यदि आप खोजेंगे तो आपको इस समस्या के कई हल मिल जाएंगे और युवा हों या अन्य सभी नियंत्रित हो जाएंगे.

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