Plastic waste (Source- IANS)
प्लास्टिक के निपटारे की चुनौतियां बढ़ती जा रही हैं. प्लास्टिक कचरा धरती के लिए बोझ बनता जा रहा है. ये प्राकृतिक संतुल तो बुरी तरह से बिगाड़ रहा ही है साथ ही, इंसानी जिंदगी पर भी खतरे को बढ़ा रहा है. हालत इस कदर बदतर होती जा रही है कि हवा, पानी और जमीन में घुले माइक्रो प्लास्टिक इंसानी शरीर को खोखला कर रहे हैं और कई तरह की जानलेवा बीमारियां पैदा हो रही है. पश्चिमी देशों के प्लास्टिक को रीसाइकिल करके दुनिया में उसे फिर से लौटाने वाले चीन ने भी अब हाथ खड़े कर दिए हैं और इसीलिए अब उसे अल्प विकसित देशों में पहुंचाया जा रहा है. लिहाजा, इसका अंबार बढ़ता जा रहा है और इससे होने वाला नुकसान भी उसी के हिसाब से बढ़ रहा है.
ग्रीन हाउस गैसों से हर साल 40 अरब डॉलर का नुकसान
सिंगल यूज प्लास्टिक के निर्माण की लागत और उससे निकलने वाली ग्रीन हाउस गैसों से हर साल 40 अरब डॉलर का नुकसान होता है. पश्चिमी देशों के प्लास्टिक के कचरे को चीन रिसाइकिल करके उसे और ज्यादा घटिया बनाकर दुनिया को लौटाता रहा है. लेकिन अब चीन ने प्लास्टिक के कचरे का आयात करना बंद करके पश्चिमी देशों की मुश्किलों को बढ़ा दिया है. दरअसल, प्लास्टिक के कचरे का महज 10 प्रतिशत ही रीसाइकिल हो रहा है बाकी का 90 प्रतिशत हिस्सा जल, जंगल और जमीन को नष्ट कर रहा है. धरती का शायद ही कोई हिस्सा बचा है जहां पर प्लास्टिक मौजूद न हों. इसके जमा हो रहे पहाड़ से माइ वातावरण में माइक्रो प्लास्टिक इस तरह से घुल गया है कि वो हवा, पानी और खानपान के जरिए इंसानी शरीर में पहुंच रहा है.
दुनिया के लिए खतरा बनता जा रहा प्लास्टिक कचरा
प्लास्टिक का कचरा दुनिया के लिए सबसे बड़ा खतरा बनता जा रहा है. प्लास्टिक का निपटारा एक गंभीर समस्या है और इसकी सबसे बड़ी वजह है कि चीन ने अब प्लास्टिक के कचरे को खरीदने से साफ मना कर दिया है. हालांकि, चीन उस कचरे को रिसाइकिल करके उसे और घटिया बनाकर दुनिया को लौटाता रहा है. प्लास्टिक के उत्पाद सस्ती कीमत पर उपलब्ध होने के कारण भारत जैसे लो कास्ट कंट्री में इसकी खपत बढ़ती गई. इसके इस्तेमाल में दर्ज हो रही बढ़ोतरी से भारत दुनिया का सबसे बड़ा प्लास्टिक कचरे का उत्पादक देश बन गया.
प्लास्टिक के कचरे को चीन ने लेने से मना कर दिया है और इससे इसके निपटारे का संकट और गहराता जा रहा है. विश्व प्रसिद्ध वैज्ञानिक पद्मश्री डॉक्टर अजय कुमार सोनकर के मुताबिक पूरी दुनिया से पहुंच रहे खतरनाक प्लास्टिक के कचरे के आयात पर 2017 में चीन ने कटौती करना शुरू कर दिया गया था. 2018 में उसने बड़ा धमाका करते हुए इसके आयात पर पूर्णविराम लगा दिया.
अब सबसे बड़ी समस्या ये है कि दुनियाभर में पैदा हो रहे प्लास्टिक के कचरे का क्या होगा? प्लास्टिक के कचरे का बढ़ रहे अंबार से दुनिया में हड़कंप मचा है. प्लास्टिक के कचरे का महज 10 प्रतिशत हिस्सा ही रिसाइकल हो पाता है. इसका 90 प्रतिशत हिस्सा जल, जंगल और जमीन तीनों को नुकसान पहुंचा रहा है. दुनिया की हजारों नदियों, महासागरों में 80 प्रतिशत प्लास्टिक कचरा पहुंच रहा है.
हानिकारक केमिकल से जीव-जंतुओं को नुकसान
प्लास्टिक के उत्पादों में कई सारे उत्पाद शामिल हैं. निर्माण क्षेत्र में इस्तेमाल की जाने वाली बोतलें और प्लास्टिक, फूड पैकेजिंग और बंद बोतलें, जाल और मछली पकड़ने का सामान, समुद्री जहाजों से निकला कचरा जिस तरह से जलस्रोतों में प्लास्टिक का कचरा इकट्ठा हो रहा है वो उसके आकार को तो छोटा कर ही रहा है साथ ही उसके हानिकारक केमिकल से जीव-जंतुओं को भी नुकसान पहुंचा रहा है. प्लास्टिक के कचरे से पैदा हो रही परेशानियों से निपटने के लिए इसके दूसरे इस्तेमाल पर गौर किया जा रहा है. इसमें प्लास्टिक के कचरे का इस्तेमाल सड़क जैसी परियोजनाएं शामिल हैं.
प्लास्टिक रोजमर्रा की जरूरतों में सबसे जरूरी बन गया है. यही वजह है कि ये सबसे ज्यादा पाए जाने वाले सामानों में से एक हो गया और परेशानी की बात ये है कि ये सबसे ज्यादा पॉल्यूशन फैलाने वाले सामानों से भी एक है. एक प्लास्टिक बैग लाखों प्लास्टिक के टुकड़ों में बंट जाता है और माइक्रो प्लास्टिक कणों की संख्या लगातार बढ़ती जा रही है. ये कण हवा, पानी और जमीन में घुलमिल जाते हैं और ये इसी जरिए इंसानी शरीर में पहुंच रहे हैं. प्लास्टिक के असर पर रिसर्च करने वाले वैज्ञानिक डॉ. अजय सोनकर को समुद्री सीप के मेंटल टिशू में माइक्रो साइज के प्लास्टिक के कण होने की पुष्टि कर चुके हैं. प्लास्टिक के कण इतने हल्के होते हैं कि वो बादल में पहुंच जाते हैं और फिर बारिश के जरिए धरती पर पहुंचते हैं. माइक्रो प्लास्टिक अब इंसानी शरीर में पहुंच कर उसे नुकसान पहुंचाना शुरू कर दिया है.
इंसानी जिंदगी पर संकट
प्लास्टिक अर्थव्यवस्था में सबसे ज्यादा पाए जाने वाले सामानों में से एक है. प्लास्टिक दुनिया में तीसरी सबसे ज़्यादा बनाई जाने वाली चीज है. प्लास्टिक कचरा पृथ्वी के प्राकृतिक चक्र में नहीं टूटता और धीरे-धीरे माइक्रो और नैनो प्लास्टिक में टूटता जाता है. रिसर्च में ये बात सामने आई कि हमारे शरीर में ये प्लास्टिक कई स्रोतों से पहुंच रही है. दरअसल, प्लास्टिक के माइक्रो पार्ट्स हर जगह मौजूद हैं. हवा, पानी और यहां तक की हमारे खाने के सामानों में भी उसकी मौजूदगी है.
वातावरण में तैरते प्लास्टिक के सूक्ष्म कण इतने हल्के होते हैं कि वाष्पीकरण के द्वारा बादल में पहुंचकर वर्षा के द्वारा पृथ्वी के पोर पोर में पहुंच गए हैं. आज पूरी दुनिया से मनुष्यों के खून में व तमाम अंगों में प्लास्टिक के सूक्ष्म कण पाये जाने उसके खतरनाक नतीजे सामने आ रहे हैं. दरअसल, प्लास्टिक पेट्रोलियम पदार्थों से बनाए जाते हैं और इसमें तमाम तरह के खतरनाक केमिकल्स पाये जाते हैं जो पर्यावरण के साथ-साथ इंसानों के शरीर को भी आहिस्ता-आहिस्ता खोखला कर रहे हैं. ये पर्यावरण के अस्तित्व के लिये बहुत बड़ा खतरा बन चुके हैं.
ये भी पढ़ें- क्या इस देश को अदालतें चला रही हैं?
प्लास्टिक और उसके कचरे से संकटों के बारे में आम तौर पर इस बात की चर्चा होती है कि उसका निपटारा कैसे हो, लेकिन इस पर गौर नहीं किया जा रहा है कि इसके इस्तेमाल पर किस तरह से पूर्ण विराम लगाया जाए. प्लास्टिक का हर जगह इस्तेमाल ही असल में तबाही का सबसे बड़ा कारण है.
-भारत एक्सप्रेस
इस तरह की अन्य खबरें पढ़ने के लिए भारत एक्सप्रेस न्यूज़ ऐप डाउनलोड करें.