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मांसाहार से परहेज़ क्यों?

कुछ वर्ष पहले बनी एक फ़िल्म ‘नायक’ आज तक चर्चा में है. इस फ़िल्म में दिखाया गया कि किस तरह एक दिन का मुख्य मंत्री जनता के विकास के लिए वो सब करता है जो एक मुख्य मंत्री को वास्तव में करना चाहिए.

प्रतीकात्मक तस्वीर

प्रतीकात्मक तस्वीर

जयपुर के हवा महल विधान सभा क्षेत्र से चुनाव जीते बाबा बालमुकुंद आचार्य, विधान सभा में शपथ लेने के पहले ही मीडिया की सुर्ख़ियों में छा गये. अपने इलाक़े के ‘नॉन-वेजीटेरियन’ होटलों और ‘नॉन-वेजीटेरियन’ पकवान बेचने वाले ठेलों को बंद कराने के लिए उन्होंने निगम और पुलिस के अधिकारियों को सरेआम लताड़ना शुरू कर दिया. होटल मालिकों और ठेले वालों को भीड़ के सामने धमकाते हुए उनका वीडियो सोशल मीडिया पर तेज़ी से वायरल हुआ. लगता है उनके इस कारनामे की खबर भाजपा के बड़े नेताओं तक भी पहुंच गई. क्योंकि अगले ही दिन बाबा बालमुकुंद आचार्य ने उसी होटल में भोजन भी किया और लंबी दाढ़ी वाले होटल के मालिक मौलाना के साथ गलबइयां देते हुए फ़ोटो खिंचवाया.

ये पहली घटना नहीं है. अक्सर मांसाहार को लेकर भाजपा और संघ के कार्यकर्ता इस तरह के हंगामें देश भर में खड़े करते रहते हैं. ख़ासकर बीफ का व्यापार करने वालों के ख़िलाफ़. उल्लेखनीय है कि भारत दुनिया में बीफ के निर्यात का दूसरा सबसे बड़ा देश है. इस कारोबार में 60 प्रतिशत से ज़्यादा हिंदू व्यापारी लगे हुए हैं. अगर भाजपा का लक्ष्य मांसाहार को बंद करवाना है तो पहले बीफ के इन हिंदू निर्यातकों के कारोबार बंद करवाये जाने चाहिए. पर इस दिशा में आजतक कोई प्रयास नहीं किया गया. बल्कि भारत सरकार का तो घोषित लक्ष्य बीफ के व्यापार में तेज़ी से वृद्धि करना है.

एक और पक्ष महत्वपूर्ण है. देश के अलग-अलग प्रांतों में रहने वाले करोड़ों हिंदू, जिनमें ब्राह्मण भी शामिल हैं, मांसाहारी हैं. कश्मीर के ब्राह्मण मटन खाते हैं और जगन्नाथ पुरी के ब्राह्मण मछली को जल तोरई कहते हैं. भारत के प्रधान मंत्री रहे पंडित अटल बिहारी वाजपेयी जी भी मांसाहार के बेहद शौक़ीन थे. दिल्ली के पंडारा पार्क इलाक़े के नॉन-वेजीटेरियन होटलों से अक्सर उनके लिए चिकन, मटन और कबाब जाया करते थे. इतना ही नहीं आरएसएस की प्रेरणा के स्रोत स्वामी विवेकानंद जी भी मांसाहारी थे. ये सब तथ्य शायद आम जनता को मालूम नहीं हैं. इसीलिए ये राजनैतिक कार्यकर्ता ऐसी वाहियात हरकतें करते रहते हैं.

अपनी ताक़त का इस्तेमाल करने से पहले क्या विधायक जी यह भूल गये थे कि अभी तक उन्होंने विधायक की शपथ भी नहीं ली? क्या विधायक जी को उनके सलाहकारों ने भारत के क़ानून के तहत उनकी सभी ज़िम्मेदारियों की जानकारी कुछ ही घंटों में दे दी, जिसके तहत उन्होंने वर्दी में तैनात पुलिस अधिकारियों तक को धमका डाला? क्या विधायक जी ने ऐसी तेज़ी अपने क्षेत्र की जनता की अन्य समस्याओं को निपटाने में भी दिखाई? विधायक जी के वीडियो में साफ़-साफ़ दिखाई दे रहा है कि जिस सड़क पर वो ये कार्यवाही कर रहे हैं उस सड़क का बुरा हाल है और वो जगह-जगह से खुदी पड़ी है. क्या विधायक जी ने नगर निगम के अधिकारियों को इस समस्या के चलते हो रही असुविधा का ज़िम्मेदार ठहराते हुए कोई कार्यवाही की? यदि विधायक जी का उद्देश प्रचार पाना ही था तो वो इसे एक बेहतर ढंग से भी पा सकते थे. ग़ौरतलब है कि प्रधान मंत्री मोदी जी ने भी, पांच राज्यों में हुए चुनावों के नतीजों के बाद अपने भाषण में कहा था कि “आज की विजय ऐतिहासिक है, अभूतपूर्व है. आज सबका साथ, सबका विकास की जीत हुई है…आज ईमानदारी, पारदर्शिता और सुशासन की जीत हुई है.” यानी प्रधान मंत्री भी सभी का साथ और सभी का विकास चाहते हैं. परंतु विधायक जी द्वारा की गई कार्यवाही तो केवल एक समुदाय विशेष के विरुद्ध ही दिखाई दी.

कुछ वर्ष पहले बनी एक फ़िल्म ‘नायक’ आज तक चर्चा में है. इस फ़िल्म में दिखाया गया कि किस तरह एक दिन का मुख्य मंत्री जनता के विकास के लिए वो सब करता है जो एक मुख्य मंत्री को वास्तव में करना चाहिए. स्वाभाविक है कि फ़िल्म का लोकप्रिय होना निश्चित ही था. परंतु जो ‘रील लाइफ’ में दिखाया गया क्या ऐसा ‘रियल लाइफ’ में हो सकता है? जवाब है, जहां चाह, वहां राह. यदि हमारे देश के सभी नेता जनता के विकास के बारे सोचेंगे और ऐसे ठोस कदम उठाएंगे तो जो नायक फ़िल्म में हुआ वो वास्तव में भी हो सकता है. परंतु क्या आजकल के नेताओं में ऐसी इच्छा शक्ति दिखाई देती है? मात्र 600 मतों से जीते विधायक बाबा बालमुकुंद आचार्य ने चुनाव जीतते ही जिस तरह क़ानून की परवाह किए बिना अवैध दुकानें बंद करनी शुरू कर दी उससे जनता और विधायक जी के समर्थकों को यह लगने लगा कि ये विधायक जी तो क्रांति ले आएंगे.

बात जयपुर की हो या देश के अन्य किसी नगर की, तमाम तरह के सामान बेचने वाले अवैध दुकानें और ठेले, हर शहर में बढ़ते जा रहे हैं. इनके कारण जगह-जगह ट्रैफ़िक जाम भी हो जाता है. स्थानीय निवासियों को इन दुकानों से असुविधा भी होती है. क़ानून व्यवस्था में भी दिक़्क़त आती है. परंतु भ्रष्टाचार के चलते नगर निगम और पुलिस के अधिकारी ऐसी अवैध दुकानों को न सिर्फ़ लगने देते हैं बल्कि उनसे नियमित रूप से ‘सुविधा शुल्क’ भी लेते हैं. इसीलिए यदि कोई भी इन अवैध दुकानों को हटाने की शिकायत भी करता है तो कोई कार्यवाही नहीं की जाती. जिस तरह राजस्थान के विधायक बाबा बालमुकुंद आचार्य ने बिना विधायक की शपथ लिए, चुनाव जीतते ही केवल मांस बेचने वालों की अवैध दुकानों पर कार्यवाही की है उन्हें अपने चुनावी क्षेत्र में ऐसी कार्यवाही हर उस दुकान पर करनी चाहिए जो अवैध हो. तभी यह संदेश जाएगा कि विधायक जी और उनका दल किसी धर्म विशेष के ख़िलाफ़ नहीं है, केवल ग़ैर-क़ानूनी धंधों के ख़िलाफ़ हैं.

लेखक दिल्ली स्थित कालचक्र समाचार ब्यूरो के प्रबंधकीय संपादक हैं.

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