General Election 2024: लोकसभा चुनाव में किसी लोकसभा क्षेत्र में जैसे-जैसे मतदान की तारीखें नजदीक आ रही हैं वैसे – वैसे वहां का सियासी माहौल गर्म होते जा रहा है. शादी ब्याह में जैसे बारातियों की आवभगत होती है और पूछ बढ़ जाती है ऐसा ही कुछ हाल चुनाव से पहले मतदाताओ का भी होता है. मतदाता चुनाव में मतदान से पहले खुद को स्पेशल समझते नज़र आते हैं तो वहीं कुछ सियासी मठाधीश ऐसे भी होते हैं जो चुनाव से पहले बिल्कुल वैसे ही नाराज़ हो जाते हैं जैसे शादी ब्याह में प्रॉपर सम्मान ना मिलने की वजह से फूफा हो जाते हैं. फिर सियासी दलों के प्रत्याशी और उनके समर्थक उनकी मान मनौव्वल करते नज़र आते हैं.
अब जब मान मनौव्वल की बात हो रही है तो चर्चा उत्तर प्रदेश के एक ऐसे लोकसभा क्षेत्र की भी होगी जहां के वर्तमान सांसद की जगह भारतीय जनता पार्टी ने उनके पुत्र को प्रत्याशी बना दिया लेकिन उससे पहले सांसद का भाजपा के नेता मान मनौव्वल भी करते नज़र आये क्योंकि अगर वह नेता बगावत करता तो देवीपाटन मण्डल की सियासत ही बदल जाती.
बात हो रही कैसरगंज संसदीय क्षेत्र से सांसद बृजभूषण शरण सिंह और कैसरगंज संसदीय सीट की. कैसरगंज की सियासी चर्चा में अगर बृजभूषण शरण सिंह का ज़िक्र ना हो तो वह चर्चा वैसे ही अधूरी है जैसे खाने में मसाले का ना होना, यानी उसे आप खा तो सकते हैं लेकिन उसका स्वाद नहीं समझ सकते इसलिए यह जानना जरुरी हो जाता है कि आखिर कौन हैं बृजभूषण शरण सिंह?
बृजभूषण शरण सिंह
बृजभूषण शरण सिंह का परिवार भले कभी कांग्रेस से ताल्लुक़ात रखता था लेकिन बृजभूषण सिंह ने अपने सियासी पारी की शुरुआत भाजपा के साथ ही की, बीच में वह 6 वर्षों के लिए 2008 से 2014 तक समाजवादी पार्टी के साथ रहे लेकिन 2014 में उन्होने भगवा ब्रिगेड में अपनी वापसी की. बृजभूषण शरण सिंह तीन संसदीय क्षेत्रों से लोकसभा सांसद निर्वाचित हो चुके हैं और उनका पूरा परिवार सियासी तौर पर सक्रिय है.
अयोध्या के साकेत कॉलेज में पढ़ने के दौरान बृजभूषण सियासी तौर पर सक्रिय हुए और 1991 में गोंडा संसदीय सीट से पहली बार सांसद बने. 1996 के लोकसभा चुनाव के वक्त बृजभूषण शरण सिंह जेल में थे, ऐसे में भारतीय जनता पार्टी ने उनकी पत्नी केतकी सिंह को गोंडा से प्रत्याशी बनाया और वह भी सांसद बन गईं. हालांकि, 1998 के लोकसभा चुनाव में गोंडा से बृजभूषण सिंह को हार का सामना करना पड़ा लेकिन एक साल बाद ही 1999 में हुए लोकसभा चुनाव में बृजभूषण शरण ने अपनी हार को जीत में बदल दिया. 2004 के लोकसभा चुनाव में भारतीय जनता पार्टी ने बृजभूषण शरण सिंह को बलरामपुर लोकसभा क्षेत्र से प्रत्याशी बना दिया और वह फिर चुनाव जीते लेकिन संसदीय सीट बदले जाने एवं एक अन्य मामले को लेकर बृजभूषण शरण सिंह के रिश्ते तल्ख़ होने लगे.
2008 में यूपीए सरकार को बचने के लिए जब संसद में विश्वास मत हासिल करने के लिए मतदान हुआ तो बृजभूषण यूपीए के पाले में खड़े नज़र आये. 2008 के लोकसभा परिसीमन में बलरामपुर संसदीय सीट श्रावस्ती के तौर पर बदल गई और 2009 के लोकसभा चुनाव में समाजवादी पार्टी के प्रत्याशी के तौर पर कैसरगंज संसदीय सीट से चुनावी मैदान में थे और यहां से भी जीत का सिलसिला शुरू किया. 2014 के लोकसभा चुनाव से पहले बृजभूषण की भाजपा में वापसी हुई और वह 2014 तथा 2019 का लोकसभा चुनाव भाजपा के प्रत्याशी के तौर पर कैसरगंज से जीते.
विवाद में क्यों हैं?
बृजभूषण शरण सिंह खिलाफ तो वैसे तो कई मामले दर्ज हैं एवं बृजभूषण शरण सिंह टाडा के एक मामले में भी जेल जा चुके हैं. हालांकि, टाडा वाले मामले में वह बाइज्जत बरी भी हो चुके हैं. बृजभूषण शरण सिंह सियासत के साथ – साथ कुश्ती में काफी रूचि लेते हैं और वह भारतीय कुश्ती संघ के 12 वर्ष तक अध्यक्ष भी रह चुके हैं. कुश्ती से जुड़े लोगों का कहना है कि बृजभूषण ने कुश्ती के खिलाडियों को प्रोत्साहित करने का काम किया और कुश्ती संघ को सशक्त बनाया लेकिन कुश्ती खेल से जुड़े खिलाडियों ने बृजभूषण शरण सिंह के खिलाफ यौन शोषण का आरोप लगाया जिसके बाद सियासी दलों ने बृजभूषण शरण और भारतीय जनता पार्टी को घेरने का काम किया वहीं बृजभूषण शरण ने इसे कुश्ती संघ से जुड़ा हुआ सियासी साजिश बताया. लेकिन अभी मामले की जांच चल रही है इस वजह से भाजपा ने इस बार बृजभूषण को प्रत्याशी नहीं बनाया.
कैसरगंज संसदीय सीट
कैसरगंज संसदीय सीट का परिसीमन यूपी के 2 जिलों गोंडा और बहराइच में आता है. कैसरगंज संसदीय सीट में पयागपुर, कैसरगंज, कटरा बाजार, करनैलगंज और तरबगंज विधानसभा सीटें हैं. गोंडा जिले में कटरा, करनैलगंज और तरबगंज विधानसभा सीट आती हैं तो वहीं बहराइच जिले में पयागपुर और कैसरगंज विधानसभा सीट आती हैं. साल 2022 में उत्तर प्रदेश में हुए विधानसभा चुनाव में को 5 में से 4 सीटों पर भाजपा और कैसरगंज विधानसभा सीट पर समाजवादी पार्टी को जीत मिली थी.
सियासी जंग में कौन है सेनापति
कैसरगंज लोकसभा सीट पर भाजपा की तरफ से करण भूषण सिंह, सपा की तरफ से राम भगत मिश्रा और बसपा की तरफ से नरेन्द्र पाण्डेय प्रत्याशी हैं. उत्तर प्रदेश की कैसरगंज लोकसभा सीट पर बृजभूषण शरण सिंह की लोकप्रियता और भारतीय जनता पार्टी (बीजेपी) की प्रतिष्ठा दोनों दांव पर है. वहीं सपा और बसपा को भी अपने प्रत्याशियों से जीत की आस है. विपक्षी इंडिया गठबंधन बीजेपी पर परिवारवाद” का आरोप लगा रहा है और बृजभूषण पर लगे गंभीर आरोपों को चर्चा में बनाये रखने का प्रयास कर रहा है. तो बसपा प्रत्याशी बहुजन हितों की बात कर रहे हैं.
भाजपा प्रत्याशी करण भूषण पहली बार सियासी मैदान में हैं. हालांकि, वह यूपी कुश्ती संघ के अध्यक्ष भी हैं. करण भूषण के पिता 6 बार के सांसद रहे हैं और बड़े भाई प्रतीक 2 बार के विधायक हैं. करण भूषण की माता भी सांसद रह चुकी हैं और परिवार के अन्य लोग भी सियासत में सक्रिय हैं.
सपा प्रत्याशी राम भगत मिश्रा 2004 में बहुजन समाज पार्टी से बहराइच संसदीय सीट से लोकसभा का चुनाव लड़ चुके हैं और उनकी पत्नी श्रावस्ती की जिला पंचायत अध्यक्ष रह चुकी हैं. राम भगत मिश्रा भाजपा के पूर्व सांसद दद्दन मिश्रा के रिश्ते में भाई लगते हैं. बसपा प्रत्याशी नरेन्द्र पाण्डेय पहली बार लोकसभा का चुनाव लड़ रहे हैं.
प्रत्याशी न बनने का मलाल लेकिन पुत्र का कर रहे प्रचार
कैसरगंज संसदीय सीट पर गाड़ियों के लंबे – लंबे क़ाफ़िलों के साथ बृजभूषण शरण सिंह, उनके बड़े बेटे विधायक प्रतीक भूषण और छोटे बेटे करण भूषण सिंह ग्रामीण इलाक़ों में प्रचार करते दिख दे रहे हैं. बृजभूषण अपने बेटे के लिए वोट मांग रहे हैं, लेकिन भाषणों में अक्सर टिकट न मिलने का दर्द भी झलक जाता है. वहीं, प्रतीक भूषण और करण भूषण अपने पिता के नाम पर वोट मांग रहे हैं.
एक गांव में एक नुक्कड़ सभा को संबोधित करते हुए बृजभूषण शरण कहते हैं कि जैसे भगवान राम के राजतिलक की तैयारी के समय उनको कैकेई ने वनवास करा दिया था, वैसे ही कुछ लोगों ने उनका भाग्य बदल दिया. बृजभूषण ने कहा कि वह संसद जा रहे थे और जनता उनको संसद भेजना भी चाहती थी, लेकिन 500 किलोमीटर दूर बैठे लोगों ने उनके भाग्य में कुछ और लिख दिया. बृजभूषण जनता से करण भूषण को जिताने की अपील करते हुए कहते हैं कि ”जब मैं पहली बार संसद गया तो युवा था और अब आप युवा करण भूषण को जिताकर संसद भेजिए.”
क्या कहना है स्थानीय लोगों का?
स्थानीय व्यापारी श्याम गुप्ता का कहना है कि ‘मोदी की गारंटी पुरे देश में चल रही है और वह मोदी के नाम पर वोट देंगे.’घनश्याम मिश्रा एक सब्जी की दुकान पर सब्जी पर कहते हैं कि ‘ वह भगत राम मिश्रा के साथ हैं क्योंकि वह उनके रिश्तेदार हैं नहीं तो मोदी के नाम पर वोट देते.’ महिला खिलाड़ियों से यौन उत्पीड़न के मामले की चर्चा भले देशभर में हो लेकिन एक महिला ने कहा ‘ सांसद जी कुछ भी कर सकते हैं लेकिन यह सब नहीं.’
कैसरगंज के कई लोग आज भी बृजभूषण को अपने सुख-दुख का साथी मानते हैं और करण में वह लोग उनके पिता बृजभूषण का ही चेहरा देख रहे हैं. यहां लोगों का मानना है की बीजेपी ने बृजभूषण सिंह के सियासी प्रभाव एवं स्थानीय लोगों के दबाव में आकर बृजभूषण के बेटे को करण भूषण को प्रत्याशी बनाया है. महिला खिलाड़ियों के आरोपों से जुड़े सवाल पर ज़्यादातर कैसरगंज के लोग ख़ामोश रहना पसंद करते हैं. उनका कहना है कि इसका चुनाव पर कोई ख़ास असर नहीं पड़ेगा.
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स्थानीय समीकरण
कैसरगंज लोकसभा क्षेत्र के स्थानीय समीकरण के अनुसार भाजपा और सपा में सीधी लड़ाई देखने को मिल रही है. वहीं भाजपा को बृजभूषण शरण सिंह की वजह से सियासी लाभ तो सपा प्रत्याशी को बसपा प्रत्याशी की वजह से सियासी नुकसान उठाना पड़ रहा है. सपा प्रत्याशी राम भगत मिश्रा ने अपनी ताकत दिखाने के लिए हजारों गाड़ियों के साथ रैली निकाली लेकिन वह बृजभूषण सिंह की आमजन तक की पहुंच के विकल्प को तलाशते नज़र आ रहे हैं. ऐसे में यह देखना दिलचस्प होगा की जब 4 जून को मतों की गणना होगी तो कैसरगंज का भविष्य बेहतर करने की जिम्मेदारी किसके कन्धों पर आती है.