दिव्या कुमार
हाल ही में बिग बॉस के नये संस्करण में कुख्यात निर्देशक साजिद खान को एन्ट्री मिली है और इस एन्ट्री के बाद से ही मनोरंजन इन्ड्स्ट्री गर्मा गई है. यही वजह है कि अब बिग बॉस को और भी चर्चा मिल रही है. दरअसल, बिग बॉस-16 प्रतियोगियों पर हो रहे नये हंगामे की वजह बने हैं साजिद खान, जो कि बॉलीवुड में महिला अभिनेताओं और गायिकाओं को लेकर अच्छे खासे बदनाम हो चुके हैं और #MeToo आंदोलन के बाद से लोगों की नकारात्मक चर्चा के केन्द्र में हैं.
वैसे कुछ स्वार्थी तत्वों का मानना है कि नकारात्मक प्रचार भी मूल रूप से बुरा नहीं होता. फिर भी शुद्धतावादी, आदर्शवादी, एवं भुक्तभोगी लोग यहाँ तक कि मैं भी ऐसा कहते हुए किसी तरह का संकोच नहीं करती कि ये भारतीय टेलीविजन की दुनिया में एक बहुत छोटी किस्म की सोच है. सोना महापात्रा और उर्फी जावेद सहित कई हस्तियों ने इस बात पर अपनी अप्रसन्नता व्यक्त करते हुए कहा है कि कलर्स टीवी साजिद खान जैसे यौन-शिकारियों को मुख्यधारा के एक सर्वाधिक संख्या के दर्शकों वाले टेलीविज़न शो का हिस्सा कैसे बना सकता है.
चलिये, जो भी हो, यदि कुछ क्षणों के लिये स्वार्थी चश्में से आलोचक के रूप में इसे देखें तो साजिद खान, #MeToo और बिग बॉस लगातार ऑनलाइन सर्च में बढ़ते देखे जा रहे हैं जो कि SEO आँकड़ों के लिये बहुत हैरतअंगेज स्थिति है. लग ये रहा है मानो साजिद को बिना कुछ किये फायदा मिल गया है. जाहिर है कि ऐसा हो रहा है लोगों को दूर बैठ कर मिलने वाले यौन-आनंद के कारण जो उन्हें मिल रहा है भारतीय टेलीविजन के आंख गड़ा कर देखे जाने वाले बिग बॉस जैसे शोज़ के माध्यम से. यही वो वजह है जो बिग बॉस को हॉट केक की तरह बेचती है.
नीचता और निर्लज्जता के प्रतिनिधियों की संस्कृति की यही विशेषता है कि वह दर्शकों के दिमाग को सम्मोहित करने में कामयाब हो जाती है, भले ही इस तरह वे छोटे हो जाते हों. साजिद अब इस शो में उतर करके अपने नवनिर्मित ‘पवित्र भयंकर’ अवतार में आ चुके हैं. ये उनका अपने पिछले कुकर्मों के लिए पश्चाताप का तरीका भी कहा जा सकता है. इसे बाजार के ज्ञानियों की भाषा में बेहद घटिया प्रतिभा कहा जायेगा.
प्रश्न ये है कि इस बात की शिकायत कौन कर रहा है? निश्चित रूप से विज्ञापनदाताओं को कोई शिकायत नहीं है, न ही चैनल को कोई आपत्ति है और न ही अपनी अल्पकालिक प्रसिद्धि का आनंद ले रहे प्रतियोगियों को इससे कोई परेशानी है.
सच तो ये है कि #MeToo जैसे कार्यस्थलों पर महिलाओं के स्थानीय यौन शोषण को उजागर करने वाले एक गंभीर आन्दोलन को एक रणनीतिक मास्टरस्ट्रोक के साथ, प्राइम टाइम टेलीविजन पर एक खौफनाक बॉलीवुड निर्देशक को बाजार में उतारने और फिर से ब्रांडेड करने के लिए चुना गया है. और इस तरह यह आँखें फाड़ कर देखे जाने योग्य टेलीवीजन शो बन कर ड्राइंग रूम में बातचीत का विषय भी बनेगा और ऑनलाइन पंचायत का भी.
परंतु इसकी सामाजिक कीमत क्या चुकानी होगी? ये बात अब तेजी से मनोरंजन उद्योग में महिलाओं के शोषण के खिलाफ नारीवादी संघर्ष से दूर खिसकती जा रही है और हैश्ड एवं री-हैश्ड साउन्ड बाइट्स बन कर कुत्सित गपशप के लिये ईंधन का कार्य कर रही है.
जरा दर्पण में झांकिये और अपने आप से पूछिये – क्या आप भी बिग बॉस की सब कुछ देख लेने वाली ‘आंख’ को अपने दूर-दृष्टा यौन-आनंद के लिए इस्तेमाल करने के दोषी हैं? ऐसा करते हुए आपके पॉपकॉर्न या डिनर की तश्तरी टेबल पर रखी है और आपकी आंखे बिना झपके हुए स्क्रीन पर चिपकी हुई हैं .. मैं जानती हूं कि आप देख रहे हैं !!
(लेखिका एक स्वतंत्र मीडिया प्रोफेशनल हैं जो एक कम्यूनिकेशन कोच, रेडियो पर्सनालिटी व एंकर के रूप में भी जानी जाती हैं.)
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