Bharat Express

कॉरपोरेट और राजनीति के आपराधिक गठजोड़ की पड़ताल करती Manoj Bajpayee की फिल्म Despatch

‘डिस्पैच’ युवा फिल्मकार कनु बहल की तीसरी फिल्म है, जिसे मुंबई फिल्म फेस्टिवल के बाद भारत के 55वें अंतरराष्ट्रीय फिल्म समारोह गोवा में प्रदर्शित किया गया और बेइंतहा पसंद किया गया.

अक्टूबर में आयोजित मुंबई फिल्म फेस्टिवल (मामी) में मनोज बाजपेयी की मुख्य भूमिका वाली निर्देशक कनु बहल की फिल्म ‘डिस्पैच’ के वर्ल्ड प्रीमियर की खूब चर्चा रही. चर्चा की मुख्य वजह मनोज बाजपेयी के नग्न और सेक्स दृश्य थे. ऐसे दृश्य उन्होंने अपने फिल्मी करिअर में पहली बार दिए हैं. इस फिल्म में मनोज बाजपेयी ने एक उम्रदराज क्राइम रिपोर्टर की भूमिका निभाई है. हालांकि किसी फिल्म का आकलन केवल कुछ दृश्यों के आधार पर नहीं किया जा सकता न हीं कुछ सेक्स दृश्यों के कारण कोई निर्णय दिया जा सकता है.

‘डिस्पैच’ युवा फिल्मकार कनु बहल की तीसरी फिल्म है, जिसे मुंबई फिल्म फेस्टिवल के बाद भारत के 55वें अंतरराष्ट्रीय फिल्म समारोह गोवा में प्रदर्शित किया गया और बेइंतहा पसंद किया गया. यह फिल्म मनोज बाजपेयी के सशक्त अभिनय के लिए भी याद की जाएगी. लंबे समय से असफलता झेल रहे मनोज बाजपेयी ने अमिताभ बच्चन की तरह अपनी दूसरी पारी में ‘अलीगढ़’, ‘सिर्फ एक बंदा काफी है’, ‘गुलमोहर’ (बेस्ट ऐक्टर का स्पेशल मेंशन नेशनल फिल्म अवॉर्ड) आदि फिल्म में अपने सशक्त अभिनय से वापसी की है.

नग्न और सेक्स दृश्य


इस समय वे ओटीटी के सबसे बड़े सुपरस्टार हैं. कनु बहल की ‘डिस्पैच’ उन्हें अंतरराष्ट्रीय स्तर पर प्रतिष्ठित करती है. हालांकि भारत में कुछ लोगों को मनोज बाजपेयी के नग्न और सेक्स दृश्यों से आपत्ति हो सकती है, क्योंकि ऐसे खुले दृश्य उन्होंने अपने फिल्मी करिअर में पहली बार दिए हैं. लेकिन अगर आप मर्लन ब्रांडो (लास्ट टैंगो इन पेरिस), माइकल डगलस (बेसिक इंस्टिंक्ट) जैसे विश्व के महान अभिनेताओं के सेक्स दृश्यों को याद करें तो मनोज बाजपेयी को भूल जाएंगे.

यह भी कहा जा रहा है कि अपने गुरु अनुराग कश्यप की तरह कनु बहल की कोई भी फिल्म सेक्स और गालियों के बिना पूरी नहीं हो सकती. उनकी यह फिल्म भी सिनेमा की नोआर शैली में हैं सेक्स सपने और मृत्यु का त्रिकोण होता है. फिर सवाल यह उठता है कि आज जब हमारे समाज में हर जगह और इंटरनेट पर सेक्स और हिंसा प्रचुर मात्रा में उपलब्ध है तो सिनेमा चर्चा में यह मुद्दा हीं क्यों बनना चाहिए. दुनिया में कहीं भी सिनेमा चर्चा में ऐसे मुद्दे बनते ही नहीं है.

फिल्म ‘आगरा’

10 साल पहले मई 2014 में कान फिल्म फेस्टिवल के ऑफिशियल सेलेक्शन में उनकी पहली ही फिल्म ‘तितली’ (अन सर्टेन रिगार्ड खंड में) दिखाई गई और उन्हें अंतरराष्ट्रीय ख्याति मिल गई. पिछले साल 76वें कान फिल्म फेस्टिवल 2023 में उनकी दूसरी फिल्म ‘आगरा’ (डायरेक्टर्स फोर्टनाइट) का प्रदर्शन हुआ और इसे काफी पसंद किया गया. उसी साल मुंबई फिल्म फेस्टिवल में इस फिल्म को स्पेशल जूरी अवॉर्ड मिला. यह फिल्म आगरा के बारे में प्रेम की नगरी का मिथ तोड़ते हुए आम आदमी का नैरेटिव गढ़ती है.

‘आगरा’ के सिनेमाई दर्शन को आगे बढ़ाते हुए उन्होंने ‘डिस्पैच’ में एक क्राइम रिपोर्टर (मनोज बाजपेयी) की जिंदगी देश की आर्थिक राजधानी मुंबई की चमक-दमक के मिथ को तोड़ने की कोशिश की है. ऐसा लगता है कि यह फिल्म खून और लालच की स्याही से लिखी गई एक चूहेदानी की तरह है, जिसमें भ्रष्टाचार, लेन-देन, खरीद-फरोख्त में तड़प-तड़प कर लोग मर रहे हैं. यह एक ऐसी दुनिया है, जहां प्रोफेशनल और पर्सनल जीवन घुल-मिल गए हैं और सब-कुछ जहरीला होता जा रहा है.

ज्योतिर्मय डे हत्याकांड पर आधारित


ऐसा कहा जा रहा है कि यह फिल्म मुंबई के मिड-डे अखबार के क्राइम जर्नलिस्ट ज्योतिर्मय डे हत्याकांड पर आधारित है. वे मुंबई अंडरवर्ल्ड को लेकर रिपोर्टिंग करते थे और उन्होंने कई बार दाऊद इब्राहिम और छोटा राजन को रिपोर्ट किया था. उन्होंने दो किताबें भी लिखी थीं. वे तीसरी किताब लिख रहे थे, जिसमें वे छोटा राजन के छद्म राष्ट्रप्रेम का भंडाफोड़ करने वाले थे. हालांकि मुंबई पुलिस का कहना है कि वे तेल माफिया के खिलाफ स्टोरी लिख रहे थे. अपने आफिस घाटकोपर से घर लौटते समय 11 जून 2011 को उन्हें गोलियों से भून डाला गया था. यह फिल्म भी 2012 की मुंबई की कहानी कहती है.

मई 2018 में सीबीआई की विशेष अदालत ने इस मामले में सतीश कालिया और उसके साथियों को दोषी करार देते हुए आजीवन कारावास की सजा सुनाई थी. कहा जाता है कि ज्योतिर्मय डे की हत्या छोटा राजन ने कराई थी और इसमें उनकी ही जूनियर रिपोर्टर जिगना बोरा का हाथ था, जिसने बाद में इस हत्याकांड पर एक किताब भी लिखी, ‘बिहाइंड बार इन भैखला, माई डेज इन प्रीजन.’ इस किताब के आधार पर हंसल मेहता ने नेटफ्लिक्स के लिए ‘स्कूप’ नाम से एक वेब सीरीज भी बनाई थी, लेकिन फिल्म तो फिल्म होती है, न्यूज डाक्यूमेंट्री नहीं.

यथार्थ और कल्पना का मेल

कनु बहल ने जाहिर है अपनी जरूरत के हिसाब से चरित्रों और घटनाओं में थोड़ा-जोड़ा घटाया होगा ही. इसकी पटकथा भी उन्होंने इशानी बैनर्जी के साथ मिलकर खुद ही लिखी है. सिद्धार्थ दीवान जैसे समर्थ सिनेमैटोग्राफर ने फिल्म को एक अलग ही ऊंचाई दी है, जहां एक-एक दृश्य और सिचुएशन यथार्थ और कल्पना के मेल से जीवंत होते हैं. फिल्म में क्राइम रिपोर्टर जॉय बाग की मुख्य भूमिका में मनोज बाजपेयी का अभिनय तो जबरदस्त है ही सह कलाकारों में शहाना गोस्वामी, अर्चिता अग्रवाल, ऋतुपर्णा सेनगुप्ता आदि ने भी बहुत उम्दा काम किया है. पटकथा बहुत ही जटिल है और अलेक्जांद्रो गोंजालेज इनारितू की फिल्मों की तरह पटकथा के भीतर कई पटकथाएं चलती हैं.

क्या है फिल्म की कहानी

अपने जमाने का स्टार क्राइम रिपोर्टर जॉय बाग (मनोज बाजपेयी) अधेड़ उम्र पार कर रहा है और उसकी चमक फीकी पड़ रहीं हैं. अब उसकी रिपोर्ट सनसनी पैदा नहीं करती. उसके सामने एक दूसरी पेशेवर चुनौती आ खड़ी हुई है. वह जिस डिस्पैच अखबार में काम करता है, उसके डिजिटल संस्करण का लांच होना और उसकी ही एक जूनियर महिला रिपोर्टर को उसका संपादक बना दिया जाना. जाहिर है नए जमाने की पत्रकारिता में प्रिंट संस्करण का महत्व कम होना तय है. उसके टेबलायड अखबार ‘डिस्पैच’ का संपादक उसके सिर पर सवार है कि वह कोई धमाकेदार खबर लाकर दे. उसका हसीन रोमांटिक जीवन बस अपने ऑफिस की जूनियर महिला रिपोर्टरों के साथ कंपनी की कार पार्किंग में सेक्स तक सिमट गया है.

करिअर और निजी जीवन के तनाव


फिल्म में इन दृश्यों को बहुत गहराई से दिखाया गया है. दूसरी तरफ जॉय बाग के निजी जीवन में भी सब गड़बड़ चल रहा है. उसकी मां और छोटे भाई के कारण उसकी पत्नी (शहाना गोस्वामी) अलग होना चाहती है. दोनों के बीच तलाक की प्रक्रिया शुरू हो चुकी है. करिअर और निजी जीवन के तनाव से मुक्ति का रास्ता जॉय बाग सेक्स में ढूंढता है और उसे यह प्रचुर मात्रा में मिलता भी है. वह अपनी महिला मित्र के फ्लैट में मुफ्त में रहता है, जो एक काबिल पत्रकार है. अपनी पत्नी से तलाक के बाद वह सोचता है कि इससे शादी कर लेगा. दूसरी तरफ उसकी एक जूनियर रिपोर्टर जिसका सचमुच में अंडरवर्ल्ड से गहरा रिश्ता है, जॉय बाग की मदद करती है और उनके बीच भी सेक्सुअल रिश्ता है.

कॉरपोरेट और राजनीति का नेटवर्क


जॉय बाग के जीवन में उस समय बड़ा मोड़ आ जाता है, जब एक हत्या के सिलसिले में वह एक छुटभैये अपराधी का पीछा करते हुए कॉरपोरेट और राजनीति के बड़े आपराधिक नेटवर्क तक पहुंच जाता है. उसे टू जी दूरसंचार घोटाले का सूत्र हाथ लगता है तो लंदन में भागा हुआ आईपीएल घोटाले का मालिक (संभवतः ललित मोदी) भी हाथ लगता है. वह अपने पत्रकारीय पेशे के प्रति पागलपन की हद तक कमिटेड है, इसलिए जहां तहां से मित्रों शुभचिंतकों की मदद से अपराध की खोज में किसी हद तक जाने को हमेशा तत्पर हैं.

क्राइम रिपोर्टर की हत्या

विडंबना देखिए जॉय बाग अपनी जान की बाजी लगाकर, लंदन तक जाकर देश को हिलाकर रख देने वाली कॉरपोरेट और राजनीति के नेक्सस की जो स्टोरी अपने अखबार ‘डिस्पैच’ के लिए तैयार कर रहा है, पता चलता है कि उन्हीं आर्थिक अपराधियों में से एक ने उस अखबार के अधिकतम शेयर खरीद लिया है. उसे उसके खबरी से यह भी पता चलता है कि उन्हीं लोगों ने उसे मरवाने की सुपारी दे दी है. वह दफ्तर से अपने बैग में स्टोरी से संबंधित सारे कागजात लेकर स्कूटर पर छुपते हुए गली कूचों से होते हुए मां और भाई के पास जाता है. उसे लगता है कि कोई हत्यारा लगातार उसका पीछा कर रहा है.

अंतिम दृश्य में हम देखते हैं कि जॉय बाग अपने स्कूटर पर मुंबई की सड़कों पर भाग रहा है और एक जगह बीच सड़क पर मोटरसाइकिल पर सवार शूटर उसे गोलियों से भून देते हैं. उसकी लाश घंटों मुंबई के उस मुख्य सड़क पर लावारिस की तरह पड़ी रहती है. इस तरह इस क्राइम रिपोर्टर का अंत हो जाता है. उसकी हत्या से मुंबई शहर को कोई फर्क नहीं पड़ता. देश ऐसे ही चलता रहता है.

-भारत एक्सप्रेस



इस तरह की अन्य खबरें पढ़ने के लिए भारत एक्सप्रेस न्यूज़ ऐप डाउनलोड करें.

Also Read