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High Court: केंद्रीय कानून मंत्रालय ने कानून और न्याय व्यवस्था की भर्तियों को लेकर संसदीय स्थायी समिति से कहा कि पिछले पांच सालों में हाईकोर्ट में जितनी भी नियुक्तियां हुई हैं, उनमें से 79 फीसदी सामान्य वर्ग के हैं. कानून मंत्रालय ने बिहार के पूर्व उपमुख्यमंत्री और बीजेपी सांसद सुशील मोदी (Sushil Modi) की अध्यक्षता वाले पैनल के समक्ष हाई कोर्ट के जजों की नियुक्तियों के संबंध में एक रिपोर्ट दी है.
अपनी रिपोर्ट में कानून मंत्रालय ने बताया कि साल 2018 से दिसंबर 2022 तक भारत के तमाम हाई कोर्ट में 537 जजों की नियुक्ति हुई, जिसमें से 79 फीसदी जज सामान्य वर्ग के थे. जबकि 11 फीसदी ओबीसी से, 2.6 फीसदी अल्पसंख्यक समुदाय से, 2.8 फीसदी अनुसूचित जाति समुदाय से और अनुसूचित जनजाति समुदाय से सिर्फ 1.3 फीसदी जज बने हैं. अपनी रिपोर्ट में मंत्रालय में यह भी कहा कि 20 जजों की सामाजिक पृष्ठभूमि के बारे में कोई जानकारी नहीं मिल सकी. इसके अलावा कहा गया कि बेंच में विविधता को तय करने की जिम्मेदारी न्यायपालिका पर है.
बता दें कि सुप्रीम कोर्ट की तरफ से 1993 में दिए गए एक फैसले में कहा गया था कि हमारी लोकतांत्रिक राजनीति सिर्फ अल्पतंत्र के लिए नहीं बल्कि देश के सभी लोगों के लिए है और अगर समाज के कमजोर वर्गों को पूरी तरह नजरअंदाज किया जाता है तो हम इस बात का दावा नहीं कर सकते कि हम लोकतंत्र के सहभागी हैं. इस फैसले के बाद ही सुप्रीम कोर्ट का कॉलेजियम सिस्टम अस्तित्व में आया था.
पिछले कुछ महीनों में केंद्रीय कानून मंत्री किरेन रिजिजू ने कॉलेजियम सिस्टम को लेकर लगातार सवाल खड़े किए हैं जिसके जवाब में पूर्व सीजेआई यूयू ललित कॉलेजियम को बेहतर बता चुके हैं. साथ ही सुप्रीम कोर्ट ने भी कहा है कि केंद्र सरकार को कॉलेजियम सिस्टम मानना ही होगा. किरेन रिजिजू ने कहा था कि- केंद्र सरकार हाई कोर्ट के सभी चीफ जस्टिस से यह अनुरोध करती रही है कि जजों की नियुक्ति के संबंध में प्रस्ताव भेजते समय अनुसूचित जातियों, अनुसूचित जनजातियों, अन्य पिछड़े वर्गों, अल्पसंख्यकों व महिला वर्ग के उम्मीदवारों पर उचित विचार किया जाना चाहिए.
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