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राष्ट्र निर्माण के लिए सतत भूख और सतत चेतना के साथ कैरेक्टर और क्रेडिबिलिटी भी जरूरी- बोले भारत एक्सप्रेस के चेयरमैन उपेंद्र राय

वरिष्ठ पत्रकार उपेंद्र राय ने कहा, “मैंने जहां तक पढ़ा, सोचा और चिंतन किया कि आखिर ऐसा कैसे हुआ कि केवल 3 करोड़ अंग्रेजों ने पूरे एशिया को गुलाम बनाया जिसकी आबादी 46 करोड़ थी.”

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भारत एक्सप्रेस के चेयरमैन उपेंद्र राय

All India Achievers’ Conference: ऑल इंडिया अचीवर्स कॉन्फ्रेंस (AIAC) द्वारा दिल्ली के चाणक्यपुरी स्थित होटल सम्राट में ‘अचीवर्स कन्वेंशन’ का आयोजन किया गया. इस कार्यक्रम में पत्रकारिता के क्षेत्र में उच्च शिखर पर पहुंचे भारत एक्सप्रेस न्यूज नेटवर्क के चेयरमैन, एमडी व एडिटर-इन-चीफ उपेन्द्र राय को ‘आइकन्स एंड ट्रेलब्लेज़र अवार्ड्स’ से सम्मानित किया गया. इस सेमिनार में भारत एक्सप्रेस के चेयरमैन उपेंद्र राय बतौर मुख्य अतिथि शामिल हुए. उन्होंने अपने संबोधन के दौरान कहा कि व्यक्तिगत उपलब्धि एक व्यक्ति की होती है लेकिन कलेक्टिव उपलब्धि पूरे राष्ट्र की होती है.

भारत एक्सप्रेस के चेयरमैन उपेंद्र राय ने कहा, “राष्ट्र निर्माण की बात करें तो ऐसे में वर्तमान, भूत और भविष्य की बात करनी भी जरूरी हो जाती है. जिस देश में हम रहते हैं उस देश ने चेतना की उन ऊंचाइयों को छुआ है जितना इस धरती पर शायद किसी और देश ने नहीं. भारत की वैदिक परंपरा या आध्यात्मिक परंपरा में एक शब्द है – मोक्ष, यह शब्द दुनिया के किसी और धर्मशास्त्रों में नहीं है, केवल भारत में है. दुनिया में जितने भी धर्मगुरु हुए, उन्होंने ये तो सिखाया कि मन पर कंट्रोल कैसे करें, अपनी चेतना को जागृत कैसे करें. लेकिन इन सबसे पार कैसे निकला जा सके… प्रार्थना के बाद भक्ति, भक्ति के बाद परमात्मा और परमात्मा के पार भी कैसे निकला जाया जा सकता है, ये बातें केवल भारतीय आध्यात्मिक चेतना के बीच आईं जो हमारे ऋषियों ने दिया.”

वरिष्ठ पत्रकार उपेंद्र राय ने कहा, “मैंने जहां तक पढ़ा, सोचा और चिंतन किया कि आखिर ऐसा कैसे हुआ कि केवल 3 करोड़ अंग्रेजों ने पूरे एशिया को गुलाम बनाया जिसकी आबादी 46 करोड़ थी. ये सोचने पर बड़ा अजीब लगता है कि 40 आदमी पर कैसे तीन लोग भारी पड़ गए. आए दिन हम ऐसी घटनाएं देखते हैं कि 4 गुंडे खड़े हो जाते हैं और 200 लोग वहां खड़े रहते हैं और आपस में कानाफुसी करते हैं लेकिन कोई हिम्मत नहीं जुटा पाता कि उन्हें रोकें. जिस राष्ट्र की चेतना या समाज की चेतना ऐसी रहेगी वह पुन: गुलाम होने के लिए तैयार है. भारत एक आध्यात्मिक देश था, महान देश था, किसी पर आक्रमण नहीं करता… ये सारी बातें अपनी जगह सही हैं लेकिन भारत एक बात भूल गया कि अपने को किसी के आक्रमण से कैसे रोकना है. हम इस बात को भूलते चले गए. इस एक वजह से हम चाहें जितने अच्छे आदमी हों, जितने सज्जन आदमी हों, लेकिन एक बेवकूफ आदमी आकर हमारी पूरी मर्यादा को तार-तार कर जाए… हम सामने वाले आदमी को अपने ऊपर आक्रमण की छूट दे दें… ये बुद्धिमत्ता नहीं है.”

उपेंद्र राय ने कहा, “जब चीन ने हमारे ऊपर आक्रमण किया था और 42 लाख वर्ग मीटर हमारी जमीन पर कब्जा कर लिया तो यहां के कवियों ने बहुत सारी कविताएं लिखीं कि – सोते हुए शेर को मत छेड़ो, जाग जाएगा.. लेकिन मैं पूछना चाहता हूं कि शेर ने अपने बारे में कभी नहीं कहा कि मुझे मत जगाओ या मैं जगा हुआ हूं कि सोया हुआ हूं. वैसे तमाम कविता लिखने वालों को उस वक्त भी पद्म पुरस्कार से सम्मानित किया गया. परिणाम क्या हुआ? हमारे नेताओं ने कहा कि वो जमीन बंजर थी, पथरीली थी. ऐसे में कुछ जागरूक लोगों ने सवाल किया कि जब जमीन बंजर थी तब इतने सैनिकों को मरवाने की क्या जरूरत थी? ऐसे ही जमीन को दान कर देते. हमारी इस चेतना ने, इस कायर मन ने हिंदुस्तान को 2000 सालों तक गुलाम रखा.”

 

वरिष्ठ पत्रकार उपेंद्र राय ने एक कहानी का जिक्र करते हुए कहा, “अमेरिका के एक चित्रकार ने वहां की बिलियनेयर लेडी की तस्वीर बनाई. सात दिनों तक उसे सामने बिठाया और तस्वीर बनाता रहा. तस्वीर पूरी होने के बाद वह महिला उस तस्वीर को लेने के लिए आने वाली थी. ऐसे में चित्रकार के मन में सवाल आया कि इस तस्वीर के लिए कितना पैसा मांगें..100, 200 या 500 डॉलर? तब 100 डॉलर बड़ी बात होती थी. फिर उसके मन में आया कि इतनी अमीर महिला से 100 डॉलर मांगें तो बहुत छोटी बात होगी. महिला ने आने के बाद चित्रकार से पूछा कि इसके लिए आपको कितना पैसा दिया जाए. चित्रकार ने कहा कि जो समझ में आए दे दीजिए. महिला ने तस्वीर को निहारा और उसकी तारीफ करने के बाद अपना पर्स उसे दे दिया. चित्रकार का दिल बैठ गया कि इसका क्या करूंगा. इससे अच्छा तो 100 डॉलर मांग लेता. महिला से उसने यही बात कही तो उन्होंने पर्स वापस ले लिया और उसमें से निकालकर 100 डॉलर चित्रकार को देते हुए कहा- मैंने तो वैसे आपको दो लाख डॉलर दिए थे इस खूबसूरत तस्वीर के लिए.”

उन्होंने आगे कहा, “मैं ये सब इसलिए कह रहा हूं कि हम परमात्मा से क्या मांगते हैं. हमारी मांग भिखारियों की तरह है तो 100 डॉलर मिलेगा लेकिन अगर हम परमात्मा को ही मांग लेते हैं तो कुछ मांगने की जरूरत ही नहीं रहेगी. इसलिए जब भी हम मांगें या चेष्टा करें तो कुछ बड़े की करें. राष्ट्र निर्माण तभी होता है जिसके लिए एक सतत भूख हो, एक सतत चेतना हो, टैलेंट के साथ-साथ कैरेक्टर और क्रेडिबिलिटी भी हो.”

-भारत एक्सप्रेस



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