पूर्व प्रधानमंत्री भारत रत्न अटल बिहारी वाजपेयी.
Atal Bihari Vajpayee: दिवंगत भाजपा नेता अटल बिहारी वाजपेयी ने सियासत के मैदान में लंबी पारी खेलते हुए देश के तीन बार प्रधानमंत्री रहे थे. वह ऐसे विलक्षण इंसान थे, जिनकी राजनीति में तो अच्छी पकड़ थी ही, वह साहित्य के क्षेत्र में भी दखल रखते थे.
पहली बार साल 1996 में वे देश के 10वें प्रधानमंत्री बने थे. हालांकि उस साल सिर्फ 13 दिन ही उनकी सरकार चल सकी. इसके बाद 1998 में दोबारा वह प्रधानमंत्री बने लेकिन सिर्फ 13 महीने ही इस पद पर बरकरार रह सके. तीसरी बार उन्होंने 1999 से 2004 तक प्रधानमंत्री पद संभाला था. तब वह देश के प्रधानमंत्री के तौर पर अपना कार्यकाल पूरा करने वाले पहले गैर-कांग्रेसी पीएम बने थे.
ऐतिहासिक भाषण और इस्तीफा
भारत रत्न से सम्मानित पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी का जन्म 1924 में मध्य प्रदेश के ग्वालियर शहर में हुआ था. 93 साल की उम्र में 16 अगस्त 2018 को दिल्ली में उनका निधन हो गया था. आज उनकी पुण्यतिथि पर हम साल 1996 में संसद में दिए गए उनके भाषण को आपके सामने रख रहे हैं. इस भाषण के आखिर में उन्होंने अपने इस्तीफे की घोषणा कर दी थी.
जाने-माने कवि होने के साथ ही वह एक कुशल वक्ता भी थे. सदन में जब वे भाषण देना शुरू करते थे तो ऐसा कहा जाता है कि उनकी पार्टी के साथ ही विरोधी पार्टी के नेता भी उनकी बातें ध्यान से सुना करते थे. मई 1996 में दिया गया उनका ऐतिहासिक भाषण इस प्रकार है…
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निंदक नियरे राखिए
मैंने 40 साल आलोचना की है. आज भी अधिकांश में आलोचना सुननी पड़ी है. मराठी में एक कहावत है, ‘निंदका चे घर असावे शेजारी’, ‘निंदक नियरे राखिए आंगन कुटी छवाय’… निंदा करने वाले को साथ में रखना चाहिए. नहीं तो चापलूस बिगाड़ देंगे. अगर निंदक रहेगा तो बिना साबुन और पानी के सफाई करता रहेगा.
ऐसी सत्ता को छूना पसंद नहीं करूंगा
बार-बार इस चर्चा में एक स्वर सुनाई दिया है कि वाजपेयी तो अच्छा है, लेकिन पार्टी ठीक नहीं है. (इस दौरान सदन के कुछ नेता कहते हैं कि सही बात है, इस पर वाजपेयी कहते हैं) अच्छा… तो अच्छे वाजपेयी के साथ क्या करने का इरादा रखते हैं. अध्यक्ष महोदय, मैं नाम नहीं लेना चाहता, लेकिन पार्टी तोड़कर सत्ता के लिए नया गठबंधन करके अगर सत्ता हाथ में आती है तो मैं ऐसी सत्ता को चिमटे से भी छूना पसंद नहीं करूंगा.
देश की सेवा
भगवान राम ने कहा था, ‘मैं मृत्यु से नहीं डरता, अगर डरता हूं तो बदनामी से डरता हूं.’ हम भी अपने ढंग से देश की सेवा कर रहे हैं और अगर हम देशभक्त न होते और अगर हम नि:स्वार्थ भाव से राजनीति में अपना स्थान बनाने का प्रयास न करते और हमारे इन प्रयासों के पीछे 40 साल की साधना है. ये कोई आकस्मिक जनादेश नहीं है, कोई चमत्कार नहीं हुआ है. हमने मेहनत की, हम लोगों में गए हैं, हमने संघर्ष किया है, पार्टी 365 दिन चलने वाली पार्टी है, ये कोई चुनाव में कुकुरमुत्ते की तरह खड़ी होने वाली पार्टी नहीं है.
ध्रुवीकरण नहीं होना चाहिए
देश में ध्रुवीकरण नहीं होना चाहिए. न सांप्रदायिक आधार पर, न जातीय आधार पर. न राजनीति ऐसे दो खेमों में बंटनी चाहिए कि जिनमें संवाद न हो, जिनमें चर्चा न हो, देश आज संकटों से घिरा है और ये संकट हमने पैदा नहीं किए हैं. जब-जब कभी आवश्यकता पड़ी, संकटों के निराकरण में हमने उस समय की सरकार की मदद की है.
परंपरा नहीं, ये हमारी प्रकृति रही है
उस समय के प्रधानमंत्री नरसिम्हा राव जी ने भारत का पक्ष रखने के लिए मुझे विरोधी दल के नेता के नाते जेनेवा भेजा था और पाकिस्तानी उसे देखकर चमत्कृत रह गए, उन्होंने कहा कि ये कहा से आए हैं, क्योंकि उनके यहां विरोधी दल का नेता ऐसे राष्ट्रीय कार्य में भी सहयोग देने के लिए तैयार नहीं होता, वो हर जगह अपनी सरकार को गिराने के काम में लगा रहता है.
ये हमारी परंपरा नहीं है, ये हमारी प्रकृति रही है. और मैं चाहता हूं कि ये परंपरा बनी रहे, ये प्रकृति बनी रहे. सत्ता का तो खेल चलेगा, सरकारें आएंगी-जाएंगी, पार्टियां बनेंगी-बिगड़ेंगी, मगर ये देश रहना चाहिए, इस देश का लोकतंत्र अमर रहना चाहिए.
विश्राम से नहीं बैठेंगे
हमारी शुभकामनाएं आपके साथ हैं. हम अपने देश की सेवा के कार्य में जुटे रहेंगे. हम संख्या बल के सामने सर झुकाते हैं और आपको विश्वास दिलाते हैं कि जो कार्य हमने अपने हाथ में लिया है, वो जब तक राष्ट्र उद्देश्य पूरा नहीं कर लेंगे, तब तक विश्राम से नहीं बैठेंगे, तब तक आराम से नहीं बैठेंगे. अध्यक्ष महोदय मैं अपना त्याग-पत्र राष्ट्रपति महोदय को देने जा रहा हूं.
-भारत एक्सप्रेस
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