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“बच्चों से संवाद करना बेहद सरल भी है और बेहद कठिन भी”, अंतरराष्ट्रीय बाल फिल्मोत्सव के समापन समारोह पर बोले भारत एक्सप्रेस न्यूज नेटवर्क के चेयरमैन उपेन्द्र राय

लखनऊ में कानपुर रोड स्थित सिटी मोंटेसरी स्कूल के ऑडिटोरियम में 10 से 18 अप्रैल तक अन्तर्राष्ट्रीय बाल फिल्म महोत्सव का आयोजन किया गया था.

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अंतरराष्ट्रीय बाल फिल्मोत्सव के समापन समारोह में भारत एक्सप्रेस के चेयरमैन उपेन्द्र राय व अन्य

उत्तर प्रदेश की राजधानी लखनऊ के सिटी मोंटेसरी स्कूल (सीएमएस) में पिछले नौ दिनों से चल रहे अंतरराष्ट्रीय बाल फिल्मोत्सव का आज समापन समारोह है. समापन समारोह का उद्घाटन भारत एक्सप्रेस न्यूज नेटवर्क के चेयरमैन, एमडी और एडिटर इन चीफ उपेन्द्र राय ने किया.

सीएमएस कानपुर रोड स्थित ऑडिटोरियम में चल रहे नौ-दिवसीय अन्तर्राष्ट्रीय बाल फिल्मोत्सव के समापन समारोह के मौके पर भारत एक्सप्रेस न्यूज नेटवर्क के चेयरमैन, एमडी और एडिटर इन चीफ उपेन्द्र राय ने कहा कि “कहा जाता है कि बच्चों से संवाद करना बेहद सरल भी और बेहद कठिन भी है. सरल इन अर्थों में कि जब आप बच्चों से संवाद कर रहे होते हैं तो किसी ऐसे निर्दोष आत्मा से जिसके अंदर, जिस-जिस की आंखों में वैसी ही चमक और झलक दिखती है जैसा बुद्ध-महावीर की आंखों में देखते हैं. लेकिन कठिन इन अर्थों में कि जितनी परतें हमारे उपर चढ़ चुकी होती हैं, बच्चे बहुत ही अबूझ होते हैं, बहुत ही निर्मल होते हैं. कोरे कागज की तरह होते हैं.”

“वरिष्ठ पत्रकार उपेन्द्र राय ने कहा कि “किसी ने बहुत ठीक ही कहा है जब कोई बुद्ध और महावीर हो जाता है तो वो पलट कर बच्चा हो जाता है. और मैंने अक्सर ये देखा है कि पूरी दुनिया में करीब 60 देश मैं घूम चुका हूं. और बुहत जगहों पर जाने का मौका मिला. 26 देश तो मैंने प्रधानमंत्री के साथ घूमा है. एक चीज मैंने ऑब्जर्व किया, आप सबने भी किया होगा. कि दुनिया के हर बच्चे में दो गुण बहुत ही कॉमन होते हैं. एक कि बच्चा बिना काम के भी व्यस्त रहता है. और बिना किसी मोटिवेशन के, बिना किसी बात के खुश रहता है. तो बच्चे तो बातचीत में व्यस्त हैं लेकिन आज मौका मिला है और इनकी उपस्थिति है तो मान कर चल रहा हूं कि बच्चों की उपस्थिति ईश्वर की उपस्थिति होती है. बच्चे तो बड़ों की बातों पर बहुत कम ही ध्यान देते हैं और वो अच्छा ही करते हैं.”

भारत एक्सप्रेस न्यूज नेटवर्क के चेयरमैन, एमडी और एडिटर इन चीफ उपेन्द्र राय ने कहा कि “यहां पर टीचर्स हैं, बड़े लोग हैं. बच्चों की परवरिश में कुछ बातें बहुत महत्वपूर्ण होती हैं. एक उदाहरण से मैं समझाना चाहूंगा. मैं रात में एक किताब पढ़ रहा था, हम लोग देखते हैं डिसकवरी पर, इधर-उधर लेकिन ये बात नहीं पता थी कि बाज एक ऐसा पक्षी है जो अपने वजन से 10 गुना ज्यादा वजन के जानवरों का शिकार करता है. और वो कैसे करता है कैसे एक बाज तैयार होता है. कैसे एक मां अपने बच्चे को तैयार करती है. एक मादा बाज अपने बच्चे को कैसे ट्रेनिंग देती है. तो मादा बाज अपने बच्चे को 12 किलोमीटर की उंचाई पर ले जाती है. जितनी उंचाई पर इंटरनेशनल प्लेन उड़ती है. 42 हजार फीट की उंचाई पर. और वहां ले जाकर अपने 7 दिन के बच्चे को छोड़ देती है. पहले वो बच्चा 7 किलोमीटर तक लगातार गिरता रहता है. तब तक उसके पंख भी नहीं खुल पाते हैं. तीन किलोमीटर जब वो उपर रहता है पृथ्वी से तो उसके पंख खुलते हैं. उसके बाद पंख फैलाकर वो गिरने लगता है. पंख हिला नहीं पाता है. और जब पृथ्वी से 9 सौ मीटर की दूरी पर बाज का बच्चा रहता है तो एक मजबूत पंजा आता है. फिर वो पंजे में दबाकर उड़ जाता है आसमान में…वो इसकी मां होती है. मादा बाज और इस तरह की ट्रेनिंग उसके बच्चे की लगातार चलती रहती है. तब जाकर एक बाज तैयार होता है.”

उन्होंने कहा कि “इस कहानी से मैं ये जरुर कहना चाहूंगा कि मेरे भी दो बच्चे हैं एक बेटी है अब सितंबर 18 साल की हो जाएगी. पढ़ने जा रही है यूके. और बेटा है अभी 11 साल का हो जाएगा, 21 मई को. लेकिन हम अभिभावक अपने बच्चों की परवरिश में बुनियादी भूले करते हैं. और वो बुनियादी भूले क्या हैं. जैसे मादा बाज अपने बच्चे को ट्रेंड कर लेती है तो दोबोरा जीवन में कभी ट्रेड नहीं करती है. अपना सहारा दे देती है. लेकिन उस सहारे को कभी आदत नहीं बनने देती है.”

उन्होंने आगे कहा कि “जैसे बच्चे बीमार पड़ते हैं तो मनोवैज्ञानिकों का कहना है कि आप क्षमतावान हैं तो उस वक्त में नर्स रख दीजिए. मां को बच्चे की बहुत सेवा नहीं करनी चाहिए उस वक्त में. रिसर्च बताती हैं कि जब उस वक्त आप बच्चे की पैर में तेल लगाते हैं, गले से चिपकाते हैं सर दबाते हैं तो बच्चे को एक आदत सी हो जाती है. जब वो बीमार नहीं रहता है तो भी मां का सहारा ढूंढने के लिए बीमार होने लगता है. तो इस पर पूरी दुनिया में बड़ी गहरी रिसर्च है बच्चों को लेकर. कि बच्चों की परवरिश कैसे की जाए. ठीक वैसे ही जैसे हम एक छोटा पेड़ लगाते हैं तो उसके साथ एक बांस लगा देते हैं उसको सहारे के लिए लेकिन जब वो पेड़ अपने उपर खड़ा हो जाता है तो खड़ा होने के बाद उस बांस को हटा दिया जाता है. तो इसी तरह से बच्चों को बहुत सहारा देकर के हम पालते हैं.

भारत एक्सप्रेस न्यूज नेटवर्क के चेयरमैन, एमडी और एडिटर इन चीफ उपेन्द्र राय ने कहा कि “एक बात और है जब हेनरी फोर्ड से पूछा गया कि आपने अपने बच्चों को इतने मेजरेबल कंडीशन में क्यों पाला ? तो उन्होंने कहा कि मैं पहले जूता भी पॉलिश किया करता था. तो मुझे पता है कि अमेरिका के तमाम अमीरों के बच्चों का क्या हाल है. ये देखने के बाद मैंने तय किया मुझे अपने बच्चों को सामान्य स्कूल में पढ़ाना है. और मेरे बच्चे अगर काबिल होंगे तो आगे पढ़ जाएंगे. तो इतना जरुर है कि जब बच्चे बहुत सुविधा में, बहुत ऐशों आराम में, बहुत उस तरह के माहौल में पढ़ते हैं तो आप देखिए तमाम बड़े अमीरों के बच्चे पप्पू हो कर रह जाते हैं, लेकिन जिन बच्चों के अंदर आग होती हैं, चुनौती जो लेते हैं वहीं आगे बढ़ते हैं. वही सेल करते हैं.”

बता दें कि लखनऊ में कानपुर रोड स्थित सिटी मोंटेसरी स्कूल के ऑडिटोरियम में 10 से 18 अप्रैल तक अन्तर्राष्ट्रीय बाल फिल्म महोत्सव का आयोजन किया गया था.

सीएमएस के संस्थापक डॉ. जगदीश गांधी ने बताया कि “10 से 18 अप्रैल तक आयोजित अंतर्राष्ट्रीय बाल फिल्म महोत्सव सभी के लिए निःशुल्क था. बाल फिल्मोत्सव में रोजाना 9 बजे से 12 बजे तक और 12 बजे से 3 बजे तक दो शो का आयोजन किया गया. अंतराष्ट्रीय बाल फिल्म महोत्सव में विभिन्न देशों की सर्वश्रेष्ठ बाल फिल्मों को अलग अलग श्रेणियों में 10 लाख रुपये दिए जाएंगे. सर्वश्रेष्ठ बाल फिल्मों का चयन एक पांच सदस्यीय अंतराष्ट्रीय ज्यूरी द्वारा किया गया है. इसके अलावा सीएमएस से 3 छात्र भी ज्यूरी के सदस्य हैं.”

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इस अवसर पर गायक विवेक प्रकाश, अभिनेत्री रेनिता कपूर एवं अभिनेता व थियेटर आर्टिस्ट अनिल रस्तोगी हजारों की संख्या में उपस्थित बच्चों का उत्साहवर्धन किया.

-भारत एक्सप्रेस

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