पंजाब सरकार को सुप्रीम कोर्ट से झटका.
आर्थिक रूप से कमजोर वर्ग (EWS) को सरकारी नौकरियों और उच्च शिक्षण संस्थानों में प्रवेश में 10 प्रतिशत आरक्षण पर सुप्रीम कोर्ट ने अपनी मुहर लगा दी है. संविधान पीठ ने 3: 2 के बहुमत से संवैधानिक और वैध बताया है. जस्टिस बेला एम त्रिवेदी और जस्टिस जेबी पारदीवाला ने बहुमत का फैसला लिया है. 2019 के संविधान में 103 वां संशोधन संवैधानिक और वैध माना गया है. सुप्रीम कोर्ट ने कहा – EWS कोटे से संविधान का उल्लंघन नहीं करती है. इसी के साथआरक्षण के खिलाफ याचिकाएं खारिज कर दी गई हैं.
अदालत ने कहा कि ईडब्ल्यूएस (EWS) कोटा सामाजिक और आर्थिक रूप से पिछड़े वर्गों के लिए 50% कोटा देता है. ईडब्ल्यूएस (EWS) कोटे से सामान्य वर्ग के गरीबों को लाभ होगा. ईडब्ल्यूएस कोटा कानून के सामने समानता और धर्म, जाति, वर्ग, लिंग या जन्म स्थान के आधार पर और सार्वजनिक रोजगार में समान अवसर के अधिकार देता है. वहीं जस्टिस रविंन्द्र भट्ट का कहना है कि इस 10% रिजर्वेशन में से एससी/एसटी/ ओबीसी को अलग करना उनके साथ भेदभाव करने के समान होगा.
सीजेआई ललित ने इसे असंवैधानिक बताया था. जस्टिस एस रवींद्र भट्ट ने भी इस पर असहमति जताते हुए इसे अंसवैधानिक बताया है. जस्टिस रविंन्द्र भट्ट का कहना कि 103 वां संशोधन भेदभाव पूर्ण है. दोनों ने इल बहुमत के फैसले पर अपनी असहमति जताई है.
इस फैसले को लेकर जस्टिस पारदीवाला ने कहा कि बहुमत के विचारों से सहमत होकर और संशोधन की वैधता को बरकरार रखते हुए, मैं कहता हूं कि आरक्षण आर्थिक न्याय को सुरक्षित करने का एक साधन है और इसमें निहित स्वार्थ की अनुमति नहीं दी जानी चाहिए. इस कारण को मिटाने की यह कवायद आजादी के बाद से ही शुरू हो चुकी है और आज तक जारी है.
जस्टिस दिनेश माहेश्वरी ने EWS आरक्षण को संवैधानिक बताते हुए कहा कि ये संविधान के किसी प्रावधान का उल्लंघन नहीं करता है. इस आरक्षण से संविधान को कोई नुकसान नहीं होगा. ये समानता संहिता का उल्लंघन नहीं करती है.
जस्टिस बेला त्रिवेदी ने भी आरक्षण को सही बताया है. इस पर जस्टिस माहेश्वरी ने भी अपनी सहमति दी है. जस्टिस त्रिवेदी का कहना हैं कि अगर राज्य सरकार इसे सही ठहरा सकता है तो उसे भेदभावपूर्ण नहीं मान सकते हैं. EWS आरक्षण लोगों की उन्नति के लिए आवश्यक है.
-भारत एक्सप्रेस
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