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“महिला प्रधान के पति को ग्रामसभा के काम में हस्तक्षेप करने का कोई अधिकार नहीं”- इलाहाबाद हाईकोर्ट, जानें किस मामले में दी हिदायत

Bijnor: कोर्ट ने ये भी कहा कि, सभी प्रमुख निर्णय तथाकथित ‘प्रधानपति’ द्वारा लिए जाते हैं और निर्वाचित प्रतिनिधि (महिला प्रधान) सिर्फ मूक दर्शक की तरह काम करते हैं.

UP News

फोटो- सोशल मीडिया

Allahabad High Court: इलाहाबाद हाईकोर्ट ने उत्तर प्रदेश में अपनी प्रधान पत्नी की जगह पर सारा काम-काज देखने वाले उनके पतियों को लेकर नाराजगी जाहिर की है और इस प्रथा की आलोचना की है. मंगलवार को उत्तर प्रदेश में महिला प्रधानों के लिए पतियों द्वारा प्रतिनिधि के रूप में काम करने की प्रथा की आलोचना की. इसी के साथ कोर्ट ने टिप्पणी करते हुए कहा कि, इस तरह का हस्तक्षेप राजनीति में महिलाओं के लिए आरक्षण प्रदान करने के उद्देश्य को कमजोर करता है.

कोर्ट ने एक मामले में टिप्पणी करते हुए एक ‘प्रधानपति’ यानी एक महिला ग्राम प्रधान के पति द्वारा दायर रिट याचिका को खारिज कर दिया. इसी के साथ न्यायमूर्ति सौरभ श्याम शमशेरी ने कहा कि, एक प्रधानपति के पास ग्राम सभा के कामकाज में हस्तक्षेप करने का कोई अधिकार नहीं है. इसी के साथ ही कोर्ट ने ये भी कहा कि, “प्रधानपति’ शब्द उत्तर प्रदेश में बहुत लोकप्रिय और व्यापक रूप से उपयोग किया जाता है. इसका उपयोग एक महिला प्रधान के पति के लिए किया जाता है. एक अनधिकृत प्राधिकारी होने के बावजूद, ‘प्रधानपति’ अनाधिकृत रूप से आमतौर पर महिला प्रधान यानी अपनी पत्नी का काम करता है.”

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महिला प्रधान करती हैं केवल रबर स्टांप का काम

कोर्ट ने आगे टिप्पणी करते हुए कहा कि, “ऐसे कई उदाहरण हैं जहां एक महिला प्रधान केवल रबर स्टांप की तरह काम करती है और सभी व्यावहारिक उद्देश्यों के लिए, सभी प्रमुख निर्णय तथाकथित ‘प्रधानपति’ द्वारा लिए जाते हैं और निर्वाचित प्रतिनिधि (महिला प्रधान) सिर्फ मूक दर्शक की तरह काम करते हैं. वर्तमान रिट याचिका ऐसी स्थिति का एक एक ज्वलंत उदाहरण है.”

 

जानें पूरा मामला

मालूम हो कि, एक रिट याचिका बिजनौर जिले की नगीना तहसील के मदपुरी गांव की प्रधान कर्मजीत कौर के माध्यम से दायर की गई थी. खबरों के मुताबिक, रिट याचिका के साथ निर्वाचित प्रधान द्वारा अपने पति को यह रिट याचिका दायर करने के लिए अधिकृत करने के पक्ष में कोई प्रस्ताव नहीं दिया गया था, लेकिन याचिका के साथ हलफनामे में कौर के पति सुखदेव सिंह ने शपथ ली थी. इसी मामले को लेकर कोर्ट ने टिप्पणी की है और कहा है कि “प्रधान की हैसियत से याचिकाकर्ता के पास अपने निर्वाचित पद से उत्पन्न अपने अधिकारों, कर्तव्यों और दायित्वों को अपने पति या किसी अन्य व्यक्ति को सौंपने की कोई शक्ति नहीं है. इसी के साथ कोर्ट ने ये भी कहा कि, “पैरोकार, यानि प्रधानपति को काम में हस्तक्षेप करने का कोई अधिकार नहीं है.” मालूम हो कि यूपी में ये चलन आम है कि अगर महिला किसी गांव की प्रधान है तो ग्राम प्रधान का जो काम होता है, उसे उसका पति ही सम्भालता है, महिला प्रधान केवल हस्ताक्षर करने का काम करती हैं और घर का काम सम्भालती हैं. इस तरह की तमाम खबरें सामने आती रहती हैं.

-भारत एक्सप्रेस

 

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