सीजेआई डीवाई चंद्रचूड़. (फोटो: IANS)
CJI Chandrachud: क्या देश के बड़े सरकारी अधिकारियों व कर्मचारियों व जजों को सेवानिवृत्त होने के बाद राजनीति में आना चाहिए या नहीं, इस बात को लेकर लम्बे वक्त से बहस छिड़ी है. इसी के साथ ही इसको लेकर हर समय कुछ सवाल भी खड़े होते रहे हैं. फिलहाल हाल ही में सुप्रीम कोर्ट के मुख्य न्यायाधीश धनंजय यशवंत चंद्रचूड़ ने एक साक्षात्कार में जजों के राजनीति में आने के लिए कूलिंग पीरियड का जिक्र कर एक नई बहस छेड़ दी है.
मुख्य न्यायाधीश धनंजय यशवंत चंद्रचूड़ ने एक समाचार पत्र को दिए साक्षात्कार में कहा है कि जज के कोर्ट से रिटायर होने के बाद एक कूलिंग पीरियड होना चाहिए. उन्होंने कहा कि न्यायाधीश बनकर जब आप रिटायर होते हैं, तो आपको खुद को थोड़ा वक्त देना चाहिए. वहीं अगर राजनीति में जाते हैं, तो भी आपको पर्याप्त समय देना चाहिए. आपने देखा होगा कि कोई भी बड़े पद का व्यक्ति कभी भी राजनीति में प्रवेश कर लेता है. तो इसी के साथ ही ये भी देखा गया है कि कई डीएम, एसपी, डीजीपी समेत कई प्रशासनिक अधिकारी भी रिटायरमेंट या वॉलंटरी रिटायरमेंट के बाद राजनीति में आ जाते हैं. वह कहते हैं कि कई सरकारी अधिकारी भी समय से पहले नौकरी छोड़कर राजनीति में कभी भी आ सकते हैं लेकिन देश के सीएजी, गृह सचिव, कैबिनेट सचिव का राजनीति में आने के लिए एक कूलिंग पीरियड है, जिसके बाद ही वो राजनीति में प्रवेश कर सकते हैं.
नहीं है ये बहस का मुद्दा
मुख्य न्यायाधीश ने साक्षात्कार में अपनी बात को जारी रखते हुए कहा कि जजों को राजनीति में जाना चाहिए या नहीं, यह मामला अलग है. यह बहस का मुद्दा नहीं है. इसी के साथ ही उन्होंने कहा कि अगर वे राजनीति में जा रहे हैं, तो कूलिंग ऑफ पीरियड होना चाहिए. मुझे लगता है कि अगर आप एक बार जज नियुक्त हो जाते हैं, तो आजीवन जज ही रहते हैं. आप अदालत में कार्यरत हो या नहीं हो या फिर आप रिटायर हो जाएं लेकिन आम नागरिक आपको देखता है तो सोचता है कि आप तो जज ही है.
इसी के साथ ही सीजेआई चंद्रचूड़ ने ये भी कहा कि जज की बोलचाल, व्यवहार ये सब रिटायर होने के बाद भी वैसा ही दिखना चाहिए. मैं किसी और के फैसले की समीक्षा नहीं करना चाहता हूं. वह आगे बोले कि हम कहते हैं कि न्याय न केवल होना चाहिए, बल्कि होते हुए दिखना भी चाहिए. इसी के साथ ही उन्होंने एक सवाल खड़ा करते हुए कहा कि मान लीजिए कि आज जज साहब अदालत में थे और कल रिटायर होकर उन्होंने किसी राजनीतिक पार्टी को ज्वाइन कर ली तो आम आदमी क्या सोचेगा?
-भारत एक्सप्रेस