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Dantewada Naxal Attack: क्यों गर्मियों में बढ़ जाते हैं नक्सली हमले? 16 सालों के हमले का जानिए क्या है पैटर्न

Dantewada Naxal Attack: TCOC के चलते स्पॉट किए जाने और उनपर सुरक्षाबलों के हमले का खतरा बढ़ जाता है. ये लोग “ऑफेंस इज द बेस्ट डिफेंस” यानी हमला ही बचाव का बेहतर माध्यम है, वाली थ्यौरी अपनाते हैं.

Dantewada

दंतेवाड़ा नक्सली हमला

Dantewada Naxal Attack: “गर्मियों में हर साल नक्सलियों की हिंसक घटनाएं बढ़ जाती हैं. नक्सली 2002 में किसी बड़ी घटना को अंजाम नहीं दे पाए हैं, 2023 में भी हम उनकी कोशिश को नाकाम कर देंगे.” ये बयान बस्तर रेंज के आईजी सुंदरराज पी. के हैं. उनका यह बयान 20 अप्रैल को दिया गया था, लेकिन तमाम कोशिशों के बावजूद 26 अप्रैल को नक्सली अपने नापाक मंसूबे में कामयाब हो गए. छत्तीसगढ़ के दंतेवाड़ा में नक्सलियों के IED ब्लास्ट में एक ड्राइवर और 10 जवान शहीद हो गए. बस्तर रेंज के आई के बयान से साफ है कि सुरक्षबल की टुकड़ियां भी इस बात को लेकर तैयार थीं कि गर्मी का मौसम आ चुका है, लिहाजा कोई बड़ा अटैक हो सकता है.

अगर नक्सलियों के पैटर्न को देखें तो इन्होंने अधिकांश बड़े हमले गर्मियों के दिनों में ही किए हैं. खासकर अप्रैल और मई के महीनों में ही नक्सली अटैक का पैटर्न दिखता है. अब सवाल उठता है कि अधिकांश बड़े अटैक अप्रैल और मई के महीने में ही क्यों हुए हैं? दरअसल, इसका कोई ठोस और टेस्टेड जवाब तो नहीं है, लेकिन वारफेयर के जानकारों का मानना है कि नक्सली ऐसा एक रणनीति के तहत करते हैं. जिसे वे लोग ‘टेक्टिकल काउंटर अफेंसिव कैंपेन’ यानी TCOC कहते हैं. चूंकि, अप्रैल और मई के मौसम में जंगलों की पत्तियां सूख जाती हैं और पतझड़ के चलते जंगल खुला दिखने लगते हैं. ऐसे में नक्सलियों को छिपने की जगह नहीं मिलती.

TCOC के चलते स्पॉट किए जाने और उनपर सुरक्षाबलों के हमले का खतरा बढ़ जाता है. ये लोग “ऑफेंस इज द बेस्ट डिफेंस” यानी हमला ही बचाव का बेहतर माध्यम है, वाली थ्यौरी अपनाते हैं और अधिक आक्रामक होकर हमला बोलते हैं.

ये भी पढ़ें: Dantewada Naxal Attack: मार्च से जून तक 4 महीने… नक्सलियों का TCOC…13 साल में 200 से अधिक जवान हुए शहीद

नक्सलियों के बड़े अटैक

नक्सलियों हर साल गर्मियों के महीने में कई बड़े हमलों को अंजाम दिया. कई हमलों में उन्हें स्थानीय लोगों का भी साथ मिला. यहां तक कि इनमें राजनीतिक हत्याएं भी शामिल हैं. 2019 में बात चाहें बीजेपी नेता मंडावी की हत्या का हो या फिर सुकमा में कांग्रेसी नेताओं का काफिला उड़ाने का. गर्मियों में बस्तर की धरती लाल होती रही है.

23 मार्च 2021: नारायणपुर IED ब्लास्ट

छत्तीसगढ़ के नारायणपुर में नक्सलियों ने IED के जरिए जवानों की बस उड़ा दी. इसमें 5 जवान शहीद हुए जबकि 10 घायल हो गए. बस में DRG के जवान एक विशेष ऑपरेशन से वापस लौट रहे थे.

9 अप्रैल 2019: भीमा मंडावी की हत्या

लोकसभा चुनाव के दौरान दंतेवाड़ा में नक्सलियों ने बीजेपी विधायक भीमा मंडावी को मौत के घाट उथार दिया. नक्सलियों ने उनके कार पर हमला बोला, जिसमें 4 सुरक्षाकर्मी भी शहीद हो गए.

24 अप्रैल 2017: लंच करते जवानों पर हमला

सुकमा में जब सुरक्षाबल के जवान लंच कर रहे थे, उसी दौरान नक्सलियों ने हमला बोला और इसमें 25 से अधिक जवान शहीद हो गए. बताया जाता है कि हमला इतना तेज था कि जवानों को संभलने और पोजिशन लेने का मौका तक नहीं मिला.

1 मार्च 2017: CRPF के जवानों पर हमला

यह हमला सीआरपीएफ के जवानों पर तब घात लगाकर किया गया, जब वे एक सड़क पर लगे काम को पूरा करा रहे थे. इस हमले में 11 जवान शहीद हुए थे. जबकि कई घायल हुए.

11 मार्च 2014 : झीरम घाटी में जवनों पर हमला

सुरक्षाबलों पर यह हमला काफी प्लान्ड तरीके से था. इसमें 15 जवान शहीद हुए थे. जबकि, एक ग्रामीण की भी मौत हुई थी.

अप्रैल 2014: बीजापुर और दरभा घाटी IED ब्लास्ट

इस हमले के शिकार 5 जवान और 14 नागरिक हुए थे. इनमें 7 मतदानकर्मी शामिल थे.

25 मई 2013: झीरम घाटी हमला

इस हमले ने देश को हिला के रख दिया. क्योंकि, इसमें पहली बार बड़े पैमाने पर राजनीतिक हस्तियां मारी गईं. इसमें सभी कांग्रेस के नेता थे. हमले में कांग्रेस के 30 नेता और कार्यकर्ताओं की मौत हो गई थी. इनमें पूर्व केंद्रीय मंत्री विद्याचरण शुक्ल, तत्कालीन प्रदेश अध्यक्ष नंदकुमार पटेल, महेंद्र कर्मा, उदय मुदलियार, दिनेश पटेल और योगेंद्र शर्मा सहित कई अन्य कांग्रेसी नेता शामिल थे. इस हमले का टारगेट महेंद्र कर्मा था. नक्सलियों ने उन्हें निशाना बनाकर 100 गोलियां मारी थीं. दरअसल, महेंद्र कर्मा उस सलवा जुडूम का नेतृत्व कर चुके थे. सलवा जुडूम एक ऐसी सिविल मिलिशिया थी, जिसे नक्सलियों के खिलाफ तैयार किया गया था.

29 जून 2010: नारायणपुर नक्सली हमला

इस हमले में 27 जवान शहीद हो गए थे.

17 मई 2010: यात्री बस पर हमला

आम तौर नक्सली लोगों को अपना शिकार नहीं बनाते. लेकिन, इस बार के हमले ने सबको चौंकाकर रख दिया. उन्होंने एक यात्री बस पर हमला बोला. इस हमले में कुछ जवान सवार थे. लेकिन, बारूदी सुरंग लगाकर नक्सलियों ने इसे उड़ा दिया. हमले में 12 विशेष पुलिस अधिकारी समेत 36 लोग मारे गए थे.

6 अप्रैल 2010: दंतेवाड़ा तालमेटाला हमला

दंतेवाड़ा के तमाम हमलों में यह सबसे बड़ा और भीषण था. इस नक्सली हमले में सीआरपीएफ के 76 जवान शहीद हो गए.

12 जुलाई 2009: राजनांदगांव हमला

घात लगाकर किए गए नक्लली हमले में एसपी वीके चौबे समेत 29 जवान शहीद हुए थे.

15 मार्च 2007: रानीबोदली कैंप पर हमला

पहली बार नक्सलियों ने बीजापुर के रानीबोदली कैंप पर हमला बोल दिया. इस भीषण हमले में 44 जवान शहीद हो हुए.

क्या नक्सलवाद खत्म होगा?

शुरुआत में नक्सलवाद को एक विद्रोह के तौर पर देखा जाता था. सिस्टम से नाराज और एक खास विचाराधारा को लागू करने वालों ने सशस्त्र संघर्ष छेड़ा. बाद में इसे वंचितों की मिलिशिया कहा गया. लेकिन, आज के दौर में यह विशुद्ध बिजनेस बन गया है. ऐसे में सवाल ये उठता है कि नक्सलियों का समूल नाश भारत सरकार क्यों नहीं करती. तमाम ऑपरेशन चलाए जाते हैं. यूपीए के दौर में ऑपरेशन ग्रीन हंट चला… जो काफी विवादित भी रहा. लेकिन, ना नक्सली खत्म हुए और न ही नक्सलवाद. बीते सालों की घटनाओं पर नजर डालें तो लगता है यह चुनौती तमाम दावों के बीच आज भी कायम है.

-भारत एक्सप्रेस

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