Delhi Pollution: राष्ट्रीय राजधानी दिल्ली समेत पूरे एनसीआर में हवा की गुणवत्ता लगातार ‘गंभीर’ श्रेणी में बनी हुई है क्योंकि शहर में शुक्रवार को AQI 405 दर्ज किया गया, जो गुरुवार को दर्ज किए गए 419 से थोड़ा ही कम था. दिवाली के बाद से बढ़े प्रदूषण ने लोगों को परेशान कर दिया है. लोगों को सांस लेने में दिक्कत और आखों में जलन के अलावा गले में खराश की समस्या हो रही है.
रिपोर्ट्स के मुताबिक, दिल्ली का आज (18 नवंबर) सुबह का औसत AQI 398 के दर्ज किया गया है. इस वजह से कई इलाकों में धुंध की चादर छाई हुई है. SAFAR APP के आंकड़ों के मुताबिक, दिल्ली एयरपोर्ट टी3 पर AQI 459 गंभीर श्रेणी में है. दिल्ली विश्वविद्यालय क्षेत्र में AQI 438 दर्ज किया गया है, जो गंभीर श्रेणी में है. लोधी रोड AQI 372 बहुत खराब श्रेणी में है. मथुरा रोड में AQI 339 है. IIT दिल्ली क्षेत्र में AQI 407 दर्ज किया गया है, जो गंभीर श्रेणी में है. पूसा में ये AQI 398 दर्ज हुआ है जो बहुत खराब श्रेणी में है.
प्रदूषण को लेकर IIT Kanpur ने दिया ये प्रस्ताव
वहीं आइआइटी कानपुर ने इसे लेकर केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड (सीपीसीबी) और दिल्ली के उपराज्यपाल (एलजी) दोनों को अलग-अलग प्रस्ताव दिया है. इनमें उड्डयन व गृह मंत्रालय से मंजूरी का प्रस्ताव भी शामिल है. माना जा रहा है कि एक-दो दिनों में वायु गुणवत्ता की स्थिति में कोई सुधार नहीं हुआ तो इसकी मंजूरी दे दी जाएगी.
कृत्रित वर्षा कराने पर खर्च होंगे 50 लाख रुपये
वन एवं पर्यावरण मंत्रालय से जुड़े अधिकारियों के मुताबिक, कृत्रिम वर्षा कराने पर करीब 50 लाख रुपये खर्च होंगे. इनमें विमान का ईंधन, पायलट की फीस और बादलों के बीच छिड़के जाने वाले रसायन आदि शामिल हैं. कृत्रिम वर्षा में इस्तेमाल किया जाने वाला विशेष तरह का मॉडीफाइड विमान आइआइटी कानपुर के पास मौजूद है, जिसका वह अपने शोध परीक्षण में इस्तेमाल करता है.
इससे पहले ऐसा विशेष विमान सिर्फ इसरो के पास था लेकिन अब आइआइटी कानपुर ने खुद ऐसा एक विमान खरीद लिया है. कृत्रिम वर्षा अगर होती है तो इसे आइआइटी कानपुर के विज्ञानी ही अंजाम देंगे. आइआइटी कानपुर के विज्ञानियों का दल कृत्रिम वर्षा की तैयारियों में जुटा हुआ है. वह दिल्ली और आसपास के क्षेत्रों के ऊपर बादलों की मौजूदगी पर लगातार नजर रख रहा है. कृत्रिम वर्षा तभी होगी, जब बादल रहेंगे. ऐसे में वह मौसम विभाग से भी लगातार संपर्क में हैे.
ऐसे होती है कृत्रिम वर्षा
आइआइटी कानपुर के विशेषज्ञों के मुताबिक, कृत्रिम वर्षा के लिए आसमान में पहले से मौजूद बादलों में सिल्वर आयोडाइड, नमक और सूखे बर्फ को छिड़का जाता है. इस दौरान रासायनिक क्रिया होने से आसमान में मौजूद बादल बरस पड़ते हैं. चीन सहित कई देशों में वायु प्रदूषण की गंभीर स्थिति से निपटने में इसका इस्तेमाल किया जाता है. आइआइटी कानपुर के विशेषज्ञ कृत्रिम वर्षा को लेकर लगातार शोध पर जुटा है.
2018 में कराई थी कृत्रिम वर्षा
सूत्रों की मानें तो मौसम विभाग ने 24 नवंबर के आसपास दिल्ली के ऊपर बादलों का जमघट का अनुमान जताया है. ऐसे में एक-दो दिनों में वायु गुणवत्ता में कोई सुधार नहीं दिखा तो कृत्रिम वर्षा को हरी झंडी दी जा सकती है. उल्लेखनीय है कि दिल्ली में वायु प्रदूषण से निपटने के लिए कृत्रिम वर्षा कराने की योजना पांच वर्ष पहले 2018 में भी बनी थी. उस समय इसे लेकर सारी तैयारी कर ली गई थी, लेकिन बाद में बादल ही गच्चा दे गए थे.
-भारत एक्सप्रेस
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