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दिल्ली हाईकोर्ट ने दिया कर्नल आशीष खन्ना की पर्सनल ईमेल आईडी को बहाल करने का आदेश

दिल्ली हाईकोर्ट ने जिस मामले में फैसला दिया, वह मामला दिल्ली जिमखाना क्लब मामले में एनसीएलटी दिल्ली द्वारा पारित 10 सितंबर के आदेश से संबंधित है.

Delhi High Court

प्रतीकात्मक तस्वीर.

दिल्ली हाईकोर्ट ने सेना के एक दिग्गज कर्नल आशीष खन्ना की पर्सनल ईमेल आईडी को बहाल करने का आदेश दिया, जिसे ट्रिब्यूनल की रजिस्ट्री को भेजे गए अपमानजनक ईमेल के कारण राष्ट्रीय कंपनी कानून न्यायाधिकरण (एनसीएलटी) के आदेश पर ब्लॉक कर दिया गया था.

न्यायमूर्ति नीना बंसल कृष्णा ने कहा- ईमेल केवल संचार का एक तरीका है और अपमानजनक सामग्री के कारण इसे बंद नहीं किया जा सकता.उन्होंने कहा किसी व्यक्ति की ईमेल आईडी को इसलिए ब्लॉक नहीं किया जा सकता क्योंकि उसने अपमानजनक ईमेल भेजे हैं. इस कृत्य (अपमानजनक ईमेल भेजने) के खिलाफ कार्रवाई की जा सकती है, लेकिन उसकी व्यक्तिगत ईमेल आईडी को ब्लॉक नहीं किया जा सकता.

न्यायमूर्ति कृष्णा ने सुझाव दिया कि प्रभावित लोग आपराधिक शिकायत दर्ज कर सकते हैं या मानहानि का मुकदमा दायर कर सकते हैं. उन्होंने पूछा पहले के दिनों में लोग पत्र भेजते थे. क्या किसी व्यक्ति को डाक के माध्यम से पत्र भेजने से प्रतिबंधित किया जा सकता है क्योंकि उसमें अपमानजनक सामग्री है?

क्‍या है मामला

यह मामला दिल्ली जिमखाना क्लब मामले में एनसीएलटी दिल्ली द्वारा पारित 10 सितंबर के आदेश से संबंधित है. दिल्ली जिमखाना क्लब को 2022 में एनसीएलटी की मंजूरी के साथ केंद्र सरकार ने अपने अधीन ले लिया था. क्लब के पूर्व सचिव/सीईओ कर्नल खन्ना ने विभिन्न अवसरों पर एनसीएलटी की रजिस्ट्री को ईमेल भेजे थे. इनमें उन्होंने क्लब के कामकाज के संचालन और न्यायाधिकरण के समक्ष कार्यवाही में कथित खामियों की ओर इशारा किया.

एनसीएलटी ने कहा इससे आशीष खन्ना के मानसिक असंतुलन और उनकी भ्रमित मनःस्थिति का पता चलता है. वह अपने रास्ते में आने वाले लगभग हर व्यक्ति पर आरोप लगा रहे हैं. एनसीएलटी ने आगे पाया कि खन्ना के ईमेल रजिस्ट्री के काम को प्रभावित कर रहे थे, जिसके कारण एक ‘झगड़ालू वादी’ के कारण वास्तविक वादियों को परेशानी उठानी पड़ रही थी.

एनसीएलटी से मांगा था जवाब

अदालत ने पिछले महीने इस मामले में एनसीएलटी से जवाब मांगा था. आज प्रतिवादियों की ओर से पेश हुए वकीलों ने कहा कि उन्हें खन्ना की ईमेल आईडी को रद्द करने के आदेश पर अदालत द्वारा रोक लगाने पर कोई आपत्ति नहीं है.



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