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पहले पाकिस्तान के लिए जासूसी करने का लगा आरोप, फिर गए जेल… अब बनने जा रहे जज

प्रदीप कुमार का सफर आसान नहीं था. जासूसी के आरोपों का बोझ, समाज का ताना और 12 साल लंबी कानूनी लड़ाई- इन सबके बीच उन्होंने हार नहीं मानी. आज वो अपने सपने के बेहद करीब हैं.

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सांकेतिक फोटो

कभी कानपुर की गलियों में बेरोजगार एक युवक पर जासूसी का आरोप लगा था. वह जेल गया, दो मुकदमों का सामना किया और सालों तक अपनी बेगुनाही की लड़ाई लड़ता रहा. आज वही युवक, प्रदीप कुमार, न्याय की कुर्सी पर बैठने के लिए तैयार है. इलाहाबाद हाईकोर्ट ने उत्तर प्रदेश सरकार को आदेश दिया है कि 46 वर्षीय प्रदीप कुमार को अपर जिला न्यायाधीश (Additional District Judge) के पद पर नियुक्ति पत्र जारी किया जाए.

जब लगा जासूसी का कलंक

साल 2002 की बात है. कानपुर के रहने वाले प्रदीप कुमार तब 24 साल के थे और कानून में ग्रेजुएशन कर चुके थे लेकिन उनके पास कोई नौकरी नहीं थी. जून 2002 में उन्हें पाकिस्तान के लिए जासूसी करने के आरोप में गिरफ्तार किया गया. स्पेशल टास्क फोर्स (एसटीएफ) और मिलिट्री इंटेलिजेंस ने उन्हें एक संयुक्त ऑपरेशन में गिरफ्तार किया था. उन पर राजद्रोह, साजिश और सरकारी गोपनीयता अधिनियम के तहत मुकदमा दर्ज किया गया था. प्रदीप को जेल भी जाना पड़ा और दो मुकदमों का सामना करना पड़ा.

कानपुर जिला मजिस्ट्रेट को “सैन्य प्राधिकरण” की जुलाई 2019 की रिपोर्ट के अनुसार प्रदीप पर आरोप था कि वह आसानी से पैसा कमाने के तरीके की तलाश में फैजान इल्लाही नाम के व्यक्ति के संपर्क में आए. फैजान एक फोटोकॉपी की दुकान चलाता था और उसने कथित तौर पर कुमार से पैसे के बदले फोन पर कुछ जानकारी देने के लिए कहा. रिपोर्ट में यह भी आरोप लगाया गया कि कुमार ने पैसे के बदले कानपुर कैंटोनमेंट से जुड़ी गोपनीय जानकारी उसे दी.

न्यायाधीश बनने का सपना

प्रदीप पर लगे आरोपों की जांच और मुकदमा 12 साल तक चला. आखिरकार 2014 में कानपुर की अदालत ने उन्हें सभी आरोपों से बरी कर दिया. अदालत ने कहा कि अभियोजन पक्ष यह साबित करने में नाकाम रहा कि प्रदीप कुमार ने सरकार के खिलाफ कोई आपत्तिजनक गतिविधि की.

बरी होने के दो साल बाद, प्रदीप कुमार ने 2016 में यूपी उच्च न्यायिक सेवा (UP Higher Judicial Service) परीक्षा दी. अपनी मेहनत के दम पर उन्होंने मेरिट लिस्ट में 27वां स्थान हासिल किया. अगस्त 2017 में इलाहाबाद हाईकोर्ट ने उनकी नियुक्ति की सिफारिश की. लेकिन राज्य सरकार ने उनकी नियुक्ति को लटकाए रखा.

हाईकोर्ट का हस्तक्षेप

निराश होकर प्रदीप ने इसके खिलाफ हाईकोर्ट का दरवाजा खटखटाया. अदालत ने राज्य सरकार को आदेश दिया कि दो हफ्ते के भीतर यह मामला राज्यपाल के पास भेजा जाए. इसके बाद भी राज्य सरकार ने सितंबर 2019 में एक आदेश जारी कर कुमार की नियुक्ति से इनकार कर दिया.

प्रदीप कुमार ने फिर से इलाहाबाद हाईकोर्ट में याचिका दायर की. 6 दिसंबर 2023 को अदालत ने राज्य सरकार के 2019 के आदेश को रद्द कर दिया. जस्टिस सौमित्र दयाल सिंह और जस्टिस डोनाडी रमेश की बेंच ने कहा,

“राज्य सरकार के पास ऐसा कोई सबूत नहीं है जिससे यह साबित हो कि याचिकाकर्ता ने किसी विदेशी खुफिया एजेंसी के लिए काम किया. सिर्फ शक के आधार पर किसी व्यक्ति को अपराधी नहीं ठहराया जा सकता. अदालत से सम्मानजनक रूप से बरी हुए व्यक्ति को उसके अधिकार से वंचित करना संविधान द्वारा गारंटीकृत कानून के शासन के खिलाफ है.”

अदालत ने राज्य सरकार को आदेश दिया कि दो हफ्तों के भीतर प्रदीप कुमार का चरित्र सत्यापन पूरा किया जाए. अदालत ने कहा कि 15 जनवरी 2025 तक प्रदीप कुमार को मौजूदा रिक्तियों में नियुक्ति पत्र जारी किया जाए.

-भारत एक्सप्रेस



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