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भोजशाला विवाद के बीच ASI का सर्वेक्षण शुरू, सुप्रीम कोर्ट ने मामले की तत्काल सुनवाई से किया इनकार

Dhar Bhojshala Dispute: मध्यप्रदेश के धार में स्थित वाग्देवी (सरस्वती) शारदा मंदिर का विवाद अब सुप्रीम कोर्ट पहुंच गया है. शुक्रवार (21 मार्च) से भोजशाला परिसर में एएसआई का साइंटिफिक सर्वेक्षण शुरू हो चुका है.

Dhar Bhojshala Dispute

मध्यप्रदेश के धार का भोजशाला.

Dhar Bhojshala Dispute:  धार में भोजशाला को लेकर मध्य प्रदेश हाईकोर्ट की इंदौर बैंच ने शुक्रवार को एएसआई सर्वेक्षण के आदेश के बाद अब वहां पुरातत्व सर्वेक्षण की टीम पहुंच चुकी है. जिसके बाद अब इस मामले को लेकर मुस्लिम पक्ष सुप्रीम कोर्ट पहुंच गया है. जिस पर शुक्रवार को सुनवाई हुई. इससे पहले मुस्लिम पक्ष की ओर से आज ही सुनवाई करने की मांग की गई थी.

बता दें कि मध्यप्रदेश हाईकोर्ट की इंदौर पीठ ने 11 मार्च को आदेश दिया था कि भोजशाला का एएसआई सर्वेक्षण कराकर 29 अप्रैल से पहले रिपोर्ट दाखिल की जाए. शुक्रवार (21 मार्च) को भोजशाला का सर्वेक्षण शुरू हुआ. जिसको लेकर भोजशाला परिसर की सुरक्षा व्यवस्था और भी अधिक चुस्त कर दी गई. एएसआई के विशेषज्ञों की देखरेख में खुदाई और सर्वेक्षण का काम चलेगा. सर्वेक्षण का काम पूरा होने के बाद रिपोर्ट हाई कोर्ट को सौंपी जाएगी.

सर्वेक्षण टीम किन चीजों का करेगी जांच?

सर्वे की टीम यह देखना चाहती है कि आखिर इस भोजशाला को कब बनाया गया था. साथ ही, जब उसका निर्माण हुआ तो उस वक्त भोजशाला का आकार कैसा था. इसके अलावा इसका निर्माण किस शैली में किया गया है. भोजशाला के निर्माण कार्य में किन पत्थरों के इस्तेमाल किए गए और उस पर क्या कुछ निशान थे. भोजशाला में खुदाई और सर्वेक्षण के बाद टीम अपनी रिपोर्ट हाईकोर्ट को सौंपेगी. जानकारी रहे कि भोजशाला का विवाद तकरीबन 1000 साल से चल रहा है.

हिंदू पक्ष का क्या है दावा

धार के कमाल मौलाना मस्जिद को लेकर हिंदू पक्ष का दावा है कि पहले वहां हिंदू मंदिर (वाग्देवी) हुआ करता था. साल 1030 में राजा भोज ने संस्कृत की पढ़ाई के लिए उस स्थान पर भोजशाला का निर्माण करवाया था. लेकिन, बाद में मुस्लिम आक्रांताओं ने उसे तोड़कर वहां मस्जिद बनवा दिया.

1951 में भोजशाला को किया गया था राष्ट्रीय स्मारक घोषित

भोजशाला को लेकर अंग्रेजों के शासन काल में भी विवाद खड़ा हुआ था. साल 1902 में लॉर्ड कर्जन धार और मांडू के दौरे पर आए थे. उन्होंने भोजशाला के रख-रखाव और अच्छी व्यवस्था के लिए 50 हजार रुपये खर्च करने की मंजूरी भी दी थी. उस दौरान सर्वे भी किया गया था. साल 1951 में धार के भोजशाला को राष्ट्रीय स्मारक घोषित किया गया था.

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