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गीता प्रेस को गांधी शांति पुरस्कार देने के फैसले पर भड़की कांग्रेस, कहा- ये गोडसे और सावरकर को सम्मान देने जैसा, बीजेपी का पलटवार

Gita Press: जेपी सांसद मनोज तिवारी ने कहा कि गीता प्रेस के कारण रामचरितमानस और वाल्मिकि रामायण जैसे ग्रंथ घर-घर पहुंचे, ऐसे में कांग्रेस उसका समर्थन कैसे कर सकती है.

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गीता प्रेस व कांग्रेस नेता जयराम रमेश

Gita Press: वर्ष 2021 के लिए गांधी शांति पुरस्कार (Gandhi Peace Prize) गीता प्रेस (गोरखपुर) को प्रदान किया जाएगा. गीता प्रेस को यह पुरस्कार ‘‘अहिंसक और अन्य गांधीवादी तरीकों से सामाजिक, आर्थिक और राजनीतिक परिवर्तन की दिशा में उत्कृष्ट योगदान’’ के लिए दिया जायेगा. पीएम नरेन्द्र मोदी ने गीता प्रेस को पुरस्कार के लिए चुने जाने पर बधाई दी और क्षेत्र में उसके योगदान की सराहना की. वहीं कांग्रेस इस पर भड़की हुई है और गीता प्रेस को गांधी शांति पुरस्कार दिए जाने को गोडसे-सावरकर को सम्मान देने जैसा बताया है.

कांग्रेस महासचिव जयराम रमेश ने कहा, ‘‘2021 के लिए गांधी शांति पुरस्कार गोरखपुर में गीता प्रेस को प्रदान किया जा रहा है, जो इस वर्ष अपनी शताब्दी वर्ष मना रहा है.’’ जयराम रमेश ने कहा कि अक्षय मुकुल ने 2015 में इस संस्थान की एक बहुत अच्छी जीवनी लिखी है. इसमें उन्होंने इस संस्थान के महात्मा के साथ उतार-चढ़ाव वाले संबंधों और राजनीतिक, धार्मिक और सामाजिक एजेंडे पर उनके साथ चली लड़ाइयों का खुलासा किया है.

कांग्रेस के बयान पर बीजेपी का पलटवार

कांग्रेस नेता ने आगे कहा, ‘‘यह फैसला वास्तव में एक उपहास है और सावरकर और गोडसे को पुरस्कार देने जैसा है.’’ वहीं कांग्रेस के बयान पर बीजेपी ने पलटवार किया है. बीजेपी सांसद मनोज तिवारी ने कहा कि गीता प्रेस के कारण रामचरितमानस और वाल्मिकि रामायण जैसे ग्रंथ घर-घर पहुंचे, ऐसे में कांग्रेस उसका समर्थन कैसे कर सकती है. बीजेपी सांसद ने कांग्रेस पर हमला बोलते हुए कहा कि उसे को राम के नाम से ही चिढ़ है.

बता दें कि गीता प्रेस की शुरुआत वर्ष 1923 में हुई थी और यह दुनिया के सबसे बड़े प्रकाशकों में से एक है, जिसने 14 भाषाओं में 41.7 करोड़ पुस्तकें प्रकाशित की हैं, जिनमें श्रीमद्‍भगवद्‍गीता की 16.21 करोड़ प्रतियां शामिल हैं.

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शेख मुजीबुर रहमान को भी किया जा चुका है सम्मानित

संस्कृति मंत्रालय ने कहा कि पुरस्कार किसी भी व्यक्ति को दिया जा सकता है चाहे उसकी राष्ट्रीयता, नस्ल, भाषा, जाति, पंथ या लिंग कोई भी हो. मंत्रालय ने कहा कि पुरस्कार में एक करोड़ रुपये, एक प्रशस्ति पत्र, एक पट्टिका और एक उत्कृष्ट पारंपरिक हस्तकला/हथकरघा वस्तु शामिल है. हाल के समय में सुल्तान कबूस बिन सैद अल सैद, ओमान (2019) और बंगबंधु शेख मुजीबुर रहमान (2020), बांग्लादेश को इस पुरस्कार से सम्मानित किया गया है.

-भारत एक्सप्रेस

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