अलगाववादी नेता यासीन मलिक.
Yasin Malik Terror Funding Case: आतंकवादियों को धन मुहैया कराने के आरोप में आजीवन कारावास की सजा काट रहे कश्मीरी अलगाववादी नेता यासीन मलिक को फांसी की सजा दिए जाने की मांग वाली एनआईए की याचिका पर दिल्ली हाई कोर्ट 15 सितंबर को सुनवाई करेगा. मामले की सुनवाई के दौरान यासीन मलिक ने दिल्ली हाई कोर्ट को बताया कि वह मामले में खुद बहस करेंगे. वह किसी वकील के माध्यम से बहस करना नहीं चाहते हैं. बल्कि व्यक्तिगत रूप से मामले पर बहस करेंगे.
खुद बहस करेगा यासीन मलिक
हाईकोर्ट ने यासीन मलिक से पूछा कि क्या वह केस कानूनों और दस्तावेजों पर जवाब दाखिल करना चाहते हैं. यासीन मलिक ने कोर्ट से यह भी कहा कि उन्हें इस बारे में सोचने के लिए कुछ समय चाहिए. जिसके बाद कोर्ट ने यासीन मलिक को समय दे दिया है. याचिका में कहा गया था कि ओसामा बिन लादेन की तर्ज पर यासीन मलिक को फांसी की सजा होनी चाहिए. जस्टिस सुरेश कैत की अध्यक्षता वाली बेंच एनआईए की ओर से दायर याचिका पर सुनवाई कर रही है.
फांसी की सजा से बचने के लिए कबूल किया अपराध
इससे पहले 11 जुलाई को हाई कोर्ट के जज जस्टिस अमित शर्मा ने मामले से खुद को अलग कर लिया था. क्योंकि वो एनआईए की तरफ से 2010 में बतौर अभियोजक के तौर पर पेश हो चुके है. जिसके बाद मामले को हाई कोर्ट के मुख्य न्यायाधीश के पास भेज दिया गया था. पिछली सुनवाई में एनआईए की ओर से पेश सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने कहा था कि यासीन मलिक ने फांसी की सजा से बचने के लिए बड़ी चालाकी से अपना अपराध कबूल कर लिया और अदालत ने उसे आजीवन कारावास की सजा सुना दी, जबकि उसके खिलाफ इस तरह का अपराध है जिसके तहत फांसी की सजा होती है. इस तरह से कोई आतंकवादी वारदात करने के बाद गुनाह कबूल कर लेगा और फांसी की सजा से बच जाएगा.
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बता दें कि 25 मई 2022 को पटियाला हाउस कोर्ट ने हत्या और टेरर फंडिंग के मामले में यासीन मलिक को आजीवन कारावास की सजा सुनाई थी. कोर्ट ने यासीन मलिक पर यूएपीए की धारा 17 के तहत आजीवन कारावास और 10 लाख रुपये का जुर्माना भी लगाया था. 10 मई 2022 को यासीन मलिक ने अपना गुनाह कबूल कर लिया था.
-भारत एक्सप्रेस
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