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जलतारा परियोजना बालासाहेब लोमटे जैसे किसानों के लिए कैसे बनी वरदान?

Jaltara Project: आर्ट ऑफ लिविंग की जलतारा परियोजना के अंतर्गत, केवल 2 वर्षों में 115 गांवों में 45,500 जलतारा पुनर्भरण संरचनाओं का निर्माण किया गया है जिससे लाखों लोगों को लाभ हुआ है. वहां जल स्तर में औसतन 14 फीट का सुधार हुआ है.

Jaltara project

जलतारा परियोजना.

Jaltara Project Art of Living Maharashtra: महाराष्ट्र में खेती के लिए आवश्यक जल की आपूर्ति के लिए एक सरल उपाय जिसने किसानों को आशा की एक नई किरण दिखाई है. ऐतिहासिक रूप से, मराठवाड़ा क्षेत्र के किसान अक्सर मानसून की अनियमितताओं से जूझते रहे हैं. पिछले कई दशकों तक उन्हें या तो गंभीर सूखे का सामना करना पड़ा या फिर अचानक आयी तेज बारिश और बाढ़ की आपदा से जूझना पड़ा. और इन्हीं कारणों से वहां के भूजल स्तर में गिरावट का सीधा असर उनकी फसलों की पैदावार पर पड़ा. जिससे उनकी फसलों के नुकसान दर में वृद्धि हुई और कृषि से होने वाली आय में भी भारी कमी होने लगी. कई किसान कर्ज़ के जाल में फंसते गये और उन्हें भीषण मानसिक तनाव और पीड़ा का सामना करना पड़ा.

लेकिन अब आर्ट ऑफ लिविंग की जलतारा परियोजना से इस क्षेत्र के किसानों के लिए चीजें सकारात्मक रूप से बदल रही हैं. जलतारा परियोजना द्वारा फसलों की पैदावर में बढ़ोत्तरी में मिले महत्वपूर्ण सहयोग द्वारा 42 वर्षीय बालासाहेब लोमटे जैसे किसानों ने कई वर्षों बाद अपने जीवन में आशा और उत्साह का उजाला देखा है.

महाराष्ट्र के सूखा प्रभावित जालना जिले के वरुद गांव के रहने वाले बालासाहेब लोमटे पानी की पर्याप्त उपलब्धता न होने के कारण वर्ष में केवल छह महीने ही खेती कर पाते थे और परिवार के पांच अन्य सदस्यों के भरण-पोषण के लिए साल के बाकी दिनों में उन्हें मजदूरी करने के लिए मुंबई जाना पड़ता था. लोमटे एक पहाड़ी इलाके में रहते हैं जहां आस-पास कोई झील या जल निकाय नहीं है. पिछले कुछ वर्षों में मौसम की अप्रत्याशित स्थिति और पानी की कमी के कारण, उनकी फसल की पैदावार धीरे-धीरे कम हो गई थी.

लोमटे जैसे-तैसे थोड़ी बहुत खेती और मजदूरी से अपना और परिवार का पालन पोषण कर रहे थे लेकिन तीन साल पहले उन्हें अपने निजी जीवन में सबसे बुरे दिन का सामना करना पड़ा. दिवाली की छुट्टियों के लिए घर वापस आते समय एक दुर्घटना में उन्होंने अपने सबसे बड़े बेटे को खो दिया, जो 24 साल का था और पास की एक फैक्ट्री में मजदूरी करता था. बालासाहेब लोमटे का बेटा परिवार का मुख्य कमाने वाला था और उसके निधन से उसके पूरे परिवार में शोक छा गया। लेकिन बालासाहेब लोमटे के पास शोक मनाने का समय नहीं था. अब उन्हें अपने परिवार का भरण-पोषण करने और इस कठिन समय से उबरने के लिए आवश्यक कदम उठाने थे. बालासाहेब 16 एकड़ भूमि पर खेती करते थे, जो पूरी तरह से बारिश पर निर्भर थी.

क्या पुनर्भरण संरचनाएं बालासाहेब लोमटे के लिए चमत्कारी सिद्ध होंगी?

यही वह समय था जब लोमटे को आर्ट ऑफ लिविंग के जलतारा परियोजना के बारे में पता चला, जिसका उद्देश्य भूजल स्तर को ऊपर उठाने के लिए एक पारिस्थितिकी तंत्र बनाना था; जिसमें वर्षा के जल को रोकने के लिए सरल पुनर्भरण संरचनाओं का निर्माण करना तथा जल रोकने के लिए पृथ्वी को एक स्पंज के रूप बदलकर पर्याप्त जल की उपस्थिति सुनिश्चित करना था. लोमटे ने अपने 16 एकड़ क्षेत्र में 4 रिचार्ज गड्ढे बनाए.

जलतारा पुनर्भरण संरचना क्या है?

पानी के बहाव और मिट्टी के कटाव की समस्या को रोकने के लिए, आर्ट ऑफ लिविंग के स्वयंसेवक किसान, अपनी कृषि योग्य भूमि के सबसे निचले तल पर 4x4x6 की पुनर्भरण संरचना का निर्माण करते हैं. वे संरचना को कंकड़ और बड़े पत्थरों से भर देते हैं, ताकि पानी उस गड्ढे के नीचे तक रिस सके और भूजल को रिचार्ज कर सके. ये पुनर्भरण संरचनाएं वर्षा के जल को मिट्टी की घनी, अभेद्य ऊपरी परतों को बायपास कर एक ‘पाइप’ के रूप में उपलब्ध हो जाती हैं जिससे जल इनमें प्रवाहित जाता है. जल के भूमिगत प्रवाह से बाढ़ को रोका जा सकता है, मिट्टी का कटाव कम किया जा सकता है, मिट्टी में पोषण बनाए रखा जा सकता है और किसानों की फसलों का बचाव किया जा सकता है.

जलतारा परियोजना का प्रभाव

आर्ट ऑफ लिविंग की जलतारा परियोजना के अंतर्गत, केवल 2 वर्षों में 115 गांवों में 45,500 जलतारा पुनर्भरण संरचनाओं का निर्माण किया गया है जिससे लाखों लोगों को लाभ हुआ है. वहां जल स्तर में औसतन 14 फीट का सुधार हुआ है। जहां किसानों की आय में औसतन 120% से अधिक की वृद्धि हुई है वहीं फसल की पैदावार में 42% से भी अधिक का सुधार हुआ है. महाराष्ट्र सरकार के साथ हाल ही में हस्ताक्षरित एक समझौता ज्ञापन के अन्तर्गत आर्ट ऑफ लिविंग महाराष्ट्र में 1.3 मिलियन हेक्टेयर से अधिक क्षेत्र में हजारों किसानों को प्राकृतिक खेती का प्रशिक्षण भी दे रहा है. आर्ट ऑफ लिविंग का श्री श्री इंस्टीट्यूट ऑफ एग्रीकल्चरल साइंसेज एंड टेक्नोलॉजी ट्रस्ट, बिचौलियों को हटाकर किसानों को अपनी रसायन-मुक्त उपज बेचने के लिए सीधे बाजार की सुविधा प्रदान कर रहा है.

जलतारा परियोजना भारत में भूजल पुनर्भरण में मदद करने वाली एक कुशल जल संरक्षण परियोजना के रूप में उभरी है, जिससे देश भर के ग्रामीण क्षेत्रों में किसानों के लिए अधिक फसलें उगाना और अपनी भूमि का अधिकतम लाभ उठाना संभव हो गया है, जिससे उनकी उपज और आय में वृद्धि हुई है.

लोमटे के लिए व्यक्तिगत रूप से, अपने खेत में पुनर्भरण संरचनाओं के निर्माण के बाद, जल का भूमिगत रिसाव शुरू हो गया जिसके कारण वहां भूजल का स्तर बढ़ने लगा है. जलतारा गड्ढों ने इसमें उनकी बहुत सहायता की है. आज बालासाहेब लोमटे के पास तीन बोरवेल हैं जो गर्मियों के दौरान भी भरे रहते हैं.

शीघ्र ही 5 क्विंटल सोयाबीन, 3 क्विंटल ज्वार, कपास और कई अन्य फसलों के उत्पादन तथा नई खेती के तरीकों द्वारा उनकी जिंदगी वापस पटरी पर लौट आई है और अब वे आराम से अपने परिवार का भरण-पोषण करने में सक्षम हो गये हैं.

“हम सूखे के आदी थे, लेकिन बारिश के बाद हमारे गाँव में पानी की स्थिति और भी ख़राब हो जाती थी क्योंकि हमारे खेतों में हर जगह कीचड़ भर जाता था. और ठीक उसी हमें समय फसलें उगाने के लिए अधिक पानी की आवश्यकता होती थी. जलतारा परियोजना के कार्यान्वयन के बाद, स्थिति में बहुत सुधार हुआ है क्योंकि वर्षा का सारा जल पुनर्भरण संरचनाओं में चला जाता है. अब वहां कोई कीचड़ नहीं होता है और पानी का स्तर बढ़ जाता है.”

आज लोमटे की आय दोगुनी हो गई है। अब उन्हें अतिरिक्त काम ढूंढने के लिए मुंबई नहीं जाना पड़ेगा. अब उनके पास पूरे वर्ष के लिए पानी उपलब्ध है और वह पहले की तुलना में तीन गुना अधिक फसल लेने में सक्षम हैं.

लोमटे मुस्कुराते हुए कहते हैं, “मैं मानसिक रूप से प्रसन्न हूं क्योंकि मेरे कुएं में जल है! मैं अपना सारा समय अपने खेत में बिताता हूं. पिछले कुछ वर्षों में मैं अपनी दोनों बेटियों की शादी कराने में भी सक्षम हो गया.”

आज वे प्याज, ज्वार, गेहूं और सोयाबीन भी उगा रहे हैं. पहले जब कम पानी उपलब्ध रहता था, तो वे केवल ज्वार और गेहूं का ही प्रबंधन कर पाते थे, जिसका अर्थ था कि उनकी आय केवल इन दो फसलों की मांग और आपूर्ति की गतिशीलता पर ही सीमित रहती थी। वे अब कृषि वानिकी को अपनाने की भी योजना बना रहे हैं, जो कि एक ऐसा मॉडल हैं जहां किसानों को अपने खेतों में फलों के पेड़ लगाने के लिए प्रशिक्षित किया जाता है। कृषि वानिकी पुनर्वनीकरण में सहायता करता है, किसानों को अतिरिक्त आय देता है और मिट्टी के लिए पानी की उपलब्धता में सुधार करता है. लोमटे ने पानी की उपलब्धता के कारण तरबूज उगाने की योजना भी बनाई है.

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