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2024 के चुनावी रण पर कितना असर डालेंगे जातीय आंकड़े? जानिए 1931 के बाद बिहार में कैसे बदला गणित

बिहार में जातीय सर्वे कराकर नीतीश कुमार ने जाति वाली सियासत को धार दे दी है. जिसका असर 2024 के चुनाव में पड़ना तय माना जा रहा है.

जातीय गणना से कितनी बदलेगी सियासी तस्वीर?

जातीय गणना से कितनी बदलेगी सियासी तस्वीर?

Bihar Caste Census Report: देश के पांच राज्यों में होने वाले विधानसभा चुनाव से ठीक पहले बिहार की नीतीश सरकार ने जातीय गणना के आंकड़े जारी कर दिए हैं. जातीय गणना का डेटा जारी होते ही सियासी दलों में हड़कंप मच गया है. इस गणना ने 2024 के चुनाव के लिए एक सियासी लकीर खींच दी है. जो देश में नई राजनीति का केंद्र बनने वाली है. जारी किए गए आंकड़ों में कई बातें निकलकर सामने आई हैं. जिसने केंद्र से लेकर राज्य की सियासत को नया मोड़ दे दिया है.

अनुमानों के इर्द-गिर्द घूम रहे हैं आंकड़े

देश में आखिरी बार जातीय जनगणना 1931 में हुई थी. उसी को आधार बनाकर अब तक बिहार में जातियों की जनसंख्या का अनुमान लगाया जाता रहा है. जो अनुमान लगाए जा रहे थे. आंकड़े भी उसी के इर्द-गिर्द घूम रहे हैं. पहले अगड़ी जातियों को 15 फीसदी के साथ देखा जाता था, जो 15.52 प्रतिशत हैं.

अगड़ी जातियों में मुख्य रूप से चार जातियां हैं. राजपूत, ब्राह्मण, कायस्थ और भूमिहार हैं. भूमिहार चार फीसदी बताए जा रहे थे, जिसकी संख्या 2.86 फीसदी है. राजपूतों को 5 फीसदी बताया जाता था, लेकिन वो 3.45 फीसदी हैं. कायस्थों की संख्या को लेकर कहा जाता था कि ये एक फीसदी हैं, लेकिन आंकड़े बताते हैं कि उनकी संख्या .6 प्रतिशत है. ब्राह्मणों के 5 फीसदी का अनुमान था, जो 3.65 प्रतिशत है.

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पिछड़ों की बात करें तो अंदाजा लगाया जाता था कि 26-28 प्रतिशत होंगे, जो 27.12 फीसदी हैं. यादवों के 12 से 14 फीसदी होने की बात कही जाती थी, ये 14.26 प्रतिशत हैं. कुर्मी चार फीसदी का अनुमान था, लेकिन वो सिर्फ 2.8 प्रतिशत ही निकले. इसी तरह कोयरी का 4-6% अनुमान था वे भी 4.2% हैं. अति पिछड़ों की बात करें तो इनको 26 फीसदी माना जा रहा था, जो 36 फीसदी हैं. दलित 19%, लेकिन आंकड़ों में 19.65 प्रतिशत हैं.

घट गई हिंदुओं की संख्या, मुस्लिम बढ़े

वहीं धर्म के आधार पर आंकड़ों को देखें तो हिंदू 2011 की जनगणना में 82.7 फीसदी थी, जो घटकर 82 प्रतिशत के नीचे पहुंच गए. मुस्लिमों को देखें तो 2011 में ये 16.9 फीसदी थे, अब 17.7% हो गए हैं. ऐसे में अब सवाल उठता है कि इन आंकड़ों से कौन से दलों को फायदा होगा और कैसे? क्योंकि बिहार में हमेशा से जाति के आधार पर वोटिंग होती रही है. इस बात से इनकार नहीं किया जा सकता है.

आंकड़ों ने 2024 के चुनावी संग्राम की रूपरेखा तैयार कर दी है

बिहार सरकार की तरफ से जारी किए गए आंकड़ों ने 2024 के चुनावी संग्राम की पिच तैयार कर दी है. इसी पर अब सभी दल बैटिंग के लिए उतरेंगे, लेकिन ये जातिगत सर्वे इस चुनाव पर कितना असर डालेंगे और बीजेपी इसकी क्या काट निकालेगी, इसपर भी गौर करना होगा? बिहार में सियासत पर जातीय असर को अनदेखा नहीं कर सकते हैं. इसीलिए बीजेपी अब आंकड़े जारी होने के बाद आर्थिक सर्वे की बात करने लगी है. बिहार में जातीय सर्वे कराकर नीतीश कुमार ने जाति वाली सियासत को धार दे दी है. जिसका असर 2024 के चुनाव में पड़ना तय माना जा रहा है, लेकिन उससे पहले 5 राज्यों में होने वाले विधानसभा चुनाव में भी सियासी समीकरण ऊपर-नीचे हो सकते हैं.

पूरे देश में जातीय जनगणना कराए जाने की उठी मांग

विधानसभा चुनावों के प्रचार में जुटे कांग्रेस नेता राहुल गांधी बार-बार ओबीसी के प्रतिनिधित्व का मुद्दा उछाल रहे हैं. दूसरी तरफ इस जातीय गणना के आए आंकड़ों का असर विपक्षी इंडिया की पॉलिटिक्स पर भी पड़ना तय है. राहुल गांधी से पहले अखिलेश यादव इस मुद्दे को उठाते रहे हैं, लेकिन JDU के नेता नीतीश कुमार को ओबीसी का असल अगुवा बताने में लगे हुए हैं. आंकड़े जारी होने के बाद विपक्ष के सारे दल एक सुर में बोल रहे हैं. वो पूरे देश में जातीय जनगणना की मांग करने लगे हैं. जिसकी शुरुआत बिहार की नीतीश सरकार ने सर्वे कराकर कर दी है.

-भारत एक्सप्रेस



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