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Asad Ahmed: सवालों के घेरे में क्यों आ जाते हैं एनकाउंटर? जानिए भारत में पुलिस और बदमाशों के बीच होने वाले मुठभेड़ के लिए क्या है कानून

Police Encounter: यूपी एसटीएफ की टीम ने झांसी में माफिया अतीक अहमद (Atiq Ahmed) के बेटे असद अहमद (Asad Ahmad) और शूटर गुलाम (Gulam) को एनकाउंटर में ढ़ेर कर दिया है. पुलिस काफी समय से इन दोनों की तलाश कर रही थी. ये दोनों 24 फरवरी को प्रयागराज में हुए उमेश पाल हत्याकांड (Umesh Pal Murder Case) में मुख्य आरोपी थे. इस खूनी वारदात में दो पुलिसकर्मी भी शहीद हो गए थे. इस एनकाउंटर के बाद से ही सवाल उठने लगे हैं. वहीं प्रदेश में सपा अध्यक्ष अखिलेश यादव ने भी इस एनकाउंटर पर सवाल उठाए हैं. उन्होंने इसे फेक एनकाउंटर बताया था. तो जानते है आखिर भारत में एनकाउंटर के लिए कानून क्या है और इसके लिए क्या नियम हैं.

इसके साथ ही देश में इसको लेकर मानव अधिकारों के प्रति निगाह रखने वाली संस्था एनएचआरसी (NHRC) और सुप्रीम कोर्ट के पुलिस को क्या दिशा-निर्देश हैं.

भारत के संविधान में एनकाउंटर का जिक्र नहीं

हमारे देश में कानून की किताब में आईपीसी और सीआरपीसी या भारत के संविधान में कहीं भी एनकाउंटर शब्द का जिक्र नहीं है. लेकिन देश में कानून और व्यवस्था को बनाए रखने के लिए पुलिस को कुछ अधिकार दिए गए हैं. कई बार ऐसा होता है जब पुलिस किसी अपराध की जांच के लिए किसी व्यक्ति को अपनी कस्टडी में लेती है या लेने की कोशश करती है तो आदतन अपराधी कई बार पुलिस के सामने समर्पण करने से इनकार कर देते हैं ऐसे में पुलिस को उनके साथ बल प्रयोग करना पड़ता है. कानून आयोग यानी लॉ कमीशन (Law Commision) ने ऐसी स्थिति में दोनों पक्षों द्वारा इस्तेमाल किए गए बल प्रयोग के लिए एनकाउंटर शब्द का प्रयोग करते हैं.

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क्या हैं सुप्रीम कोर्ट के दिशा निर्देश ?

एनकाउंटर को लेकर देश की सबसे बड़ी अदालत सुप्रीम कोर्ट की गाइडलाइन कहती है कि जब भी पुलिस को कोई खुफिया जानकारी मिलती है तो कोई भी एक्शन लेने से पहले पुलिस इसे इलेक्ट्रानिक फॉर्म (Electronic Form) में दर्ज करना जरूरी है. अगर कोई भी शख्स पुलिस कार्रवाई में मारा जाता है तो कार्रवाई में शामिल पुलिसकर्मियों के खिलाफ तत्काल प्रभाव से आपराधिक FIR दर्ज की जानी चाहिए.

एफआईआर (FIR) दर्ज हो जाने के बाद हुई घटना की स्वतंत्र जांच हो. घटना की जांच सीआईडी (CID) या किसी दूसरे पुलिस स्टेशन की टीम द्वार की जानी चाहिए. जांच में पूरी घटना का पूरा विवरण लिखित में विस्तार से उपलब्ध होना चाहिए. सुप्रीम कोर्ट (Supreme Court) का निर्देश है कि किसी भी परिस्थिति में हुए पुलिस एनकाउंटर की स्वतंत्र मजिस्ट्रेट जांच बहुत जरूरी है. वहीं एनकाउंटर के बाद घटना की पूरी रिपोर्ट विस्तार से घटना के अधिकार क्षेत्र में आने वाली स्थानीय कोर्ट के साथ लिखित में साझा की जानी चाहिए.

क्या हैं NHRC के दिशा निर्देश ?

वैसे तो एनएचआरसी (NHRC) के दिशा निर्देश भी सुप्रीम कोर्ट से मिलते जुलते हैं, लेकिन कुछ अलग भी होते हैं. इसके दिशा निर्देश के मुताबिक, एनकाउंटर के अधिकार क्षेत्र में आने वाले थाने को घटना की सूचना मिलते ही तुरंत एफआईआर (FIR) दर्ज की जानी चाहिए, अगर इस पर तत्काल एफआईआर दर्ज नहीं की जाती है तो इसके लिए संबंधित थाने के थानाधिकारी सीधे तौर पर जिम्मेदार होंगे. शख्स की मौत से जुड़े हर तथ्य और परिस्थिति से जुड़ी हर बात को नोट किया जाना चाहिए और इससे जुड़े तत्काल कदम उठाए जाने चाहिए.

आयोग का निर्देश है, एनकाउंटर की जांच चार माहीने में पूरी हो जानी चाहिए और अगर इस जांच में पुलिस अधिकारी दोषी पाए जाते हैं तो उनको अपराधी मानकर उनके खिलाफ हत्या का मुकदमा चलाया जाना चाहिए.

– भारत एक्सप्रेस

Rahul Singh

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