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शव के साथ दुष्कर्म अपराध नहीं, कहकर आरोपी को हाईकोर्ट ने किया बरी, अब देश में छिड़ी बहस

भारत में दुष्कर्म के अपराध को लेकर सख्त सजा का कानून के तहत प्रावधान है. लेकिन आपको ये जानकर काफी हैरानी होगी कि नेक्रोफीलिया के लिए सजा का कोई प्रावधान नहीं हैं.

कर्नाटक हाईकोर्ट (फाइल फोटो)

भारत में दुष्कर्म के अपराध को लेकर सख्त सजा का कानून के तहत प्रावधान है. लेकिन आपको ये जानकर काफी हैरानी होगी कि नेक्रोफीलिया के लिए सजा का कोई प्रावधान नहीं हैं. अगर कोई भी हैवान शव के साथ शारीरिक संबंध बनाता है तो उसके खिलाफ कोई भी मामला दर्ज नहीं किया जा सकता है. जिसको लेकर पूरे देश में आजकल बहस छिड़ी हुई है. कर्नाटक हाईकोर्ट ने ऐसे ही एक मामले में आरोपी को बरी करते हुए इस तथ्य को उजागर किया है. साथ ही केंद्र सरकार से देश में नया कानून बनाने की जरूरत भी कही है.

शव के साथ दुष्कर्म अपराध नहीं

दरअसल, कर्नाटक की हाईकोर्ट ने बीती 30 मई को अपने एक फैसले में कहा था कि शव के साथ यौन उत्पीड़न आईपीसी के तहत दुष्कर्म या आप्राकृतिक अपराध के दायरे में नहीं आता है. जिसके बाद पूरे देश में इस बात को लेकर बहस छिड़ गई है. बता दें कि साल 2015 में कर्नाटक के तुमकुरु जिले में 21 साल की लड़की का मर्डर करने के बाद उसके साथ दुष्कर्म किया गया था. सेशन कोर्ट ने आरोपी को हत्या और दुष्कर्म का दोषी करार दिया था. जिसको हाईकोर्ट में चुनौती दी गई थी. जिसे सिंगल बेंच ने निचली अदालत के फैसले को बरकरार रखा था. मामला जब डबल बेंच में पहुंचा तो कोर्ट ने हत्या का चार्ज तो बरकरार रखा, लेकिन रेप के आरोप से बरी कर दिया.

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मृत शरीर को इंसान या व्यक्ति नहीं कहा जा सकता- हाईकोर्ट

कोर्ट ने आरोपी को बरी करते हुए अपने फैसले में कहा कि आरोपी ने जो किया है वो नेक्रोफीलिया की श्रेणी में आता है और ये आईपीसी के तहत अपराध नहीं है. डबल बेंच में सुनवाई कर रहे जजों जस्टिस बी वीरप्पा और जस्टिस वेंकटेश नाइक ने कहा कि ये देश का दुर्भाग्य है कि नेक्रोफीलिया के लिए देश में कोई कोई सजा का प्रावधान नहीं है. जजों ने केंद्र सरकार से आईपीसी में बदलाव कर इस अपराध के लिए कानून बनाने को कहा है. कोर्ट ने अपनी टिप्पणी में कहा कि यह मामला 377 के तहत अप्राकृतिक अपराध की श्रेणी में भी नहीं आएगा. बेंच ने कहा, पीठ ने कहा, “आईपीसी की धारा 375 और 377 को सावधानीपूर्वक पढ़ने से यह स्पष्ट होता है कि एक मृत शरीर को इंसान या व्यक्ति नहीं कहा जा सकता है।. इसलिए, धारा 375 या 377 के प्रावधान लागू नहीं होंगे.”

-भारत एक्सप्रेस

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